बीमा कंपनी ने बिना वैधानिक आधार के पीड़ित के दावे को कर दिया था खारिज
आगरा: २ जुलाई ।
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग-द्वितीय आगरा के अध्यक्ष माननीय आशुतोष और आयोग की सदस्य माननीय पारुल कौशिक ने ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड को सुनील कुमार गर्ग की फर्म, मैसर्स सुनील प्लास्टिक इंडस्ट्रीज को ₹2,54,37,595/- का भुगतान करने का आदेश दिया है।
यह आदेश 23 जून, 2025 को पारित किया गया, जिसमें कंपनी को 30 दिनों के भीतर भुगतान करने का निर्देश दिया गया है, अन्यथा 6% वार्षिक साधारण ब्याज अतिरिक्त रूप से देय होगा।
मामले के पृष्ठभूमि के अनुसार सुनील कुमार गर्ग, जो मैसर्स सुनील प्लास्टिक इंडस्ट्रीज के प्रोपराइटर हैं और प्लास्टिक वस्तुओं के निर्माण में लगे हुए हैं, ने ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड (विपक्षी संख्या-1 और 2), मिलेनियल्स इंश्योरेंस ब्रोकर्स प्राइवेट लिमिटेड (विपक्षी संख्या-3), और प्रोटोकॉल इंश्योरेंस सर्वेयर्स एंड लॉस असेसर्स प्राइवेट लिमिटेड (विपक्षी संख्या-4) के खिलाफ उपभोक्ता आयोग में शिकायत दर्ज की थी।
परिवादी ने दावा किया कि उनकी फर्म ने मिलेनियल्स इंश्योरेंस ब्रोकर्स प्राइवेट लिमिटेड के माध्यम से ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड से 14 मई, 2019 से 13 मई, 2020 तक वैध एक स्टैंडर्ड फायर एंड स्पेशल पेरिल्स पॉलिसी ली थी।इस पॉलिसी में ₹1.10 करोड़ का स्टॉक, ₹1 करोड़ की प्लांट और मशीनरी, और ₹70 लाख की बिल्डिंग (प्लिंथ और फाउंडेशन सहित) का बीमा किया गया था।
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घटनाक्रम के अनुसार 25 सितंबर, 2019 को सुबह करीब 4:00 बजे परिवादी की निर्माण इकाई में आग लग गई, जिससे बिल्डिंग, मशीनरी और स्टॉक बुरी तरह जल गए।आग बुझाने के लिए फिरोजाबाद और मथुरा जिलों से भी फायर ब्रिगेड बुलानी पड़ी और कुल 32 फायर ब्रिगेड टैंकर का इस्तेमाल किया गया।
आग लगने की सूचना तुरंत ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड को दी गई, जिसने प्रोटोकॉल इंश्योरेंस सर्वेयर्स एंड लॉस असेसर्स प्राइवेट लिमिटेड को सर्वे के लिए नियुक्त किया।परिवादी को ₹2,54,37,595/- की प्रत्यक्ष क्षति हुई, जिसके लिए उन्होंने अपना दावा बीमा कंपनी के पास दायर किया।
बीमा कंपनी के सर्वेयर ने 3 अक्टूबर, 2019 को परिवादी को एक पत्र भेजा जिसमें कहा गया कि बीमा पॉलिसी निर्माण इकाई के लिए थी, जबकि क्षति गोदाम में हुई, जो पॉलिसी में कवर नहीं थी।बीमा कंपनी ने 19 मार्च, 2020 को परिवादी के दावे को ‘नो क्लेम’ के रूप में निपटा दिया।कंपनी ने यह यह दावा किया कि जोखिम स्थान पॉलिसी में कवर नहीं था।
आयोग ने मामले की सुनवाई की और पाया कि परिवादी बीमा कंपनी का उपभोक्ता था। आयोग ने इस बात पर जोर दिया कि बीमा कंपनी द्वारा जारी प्रस्ताव प्रपत्र (प्रपोजल फॉर्म) में कवर किए जाने वाले स्थान का पूरा विवरण (खसरा नंबर-104, प्लॉट नंबर-82 से 87, 127 और 128, खसरा नंबर-1955 प्लॉट नंबर-86ए + मुख्य कार्यालय) स्पष्ट रूप से वर्णित था।
आयोग ने कहा कि प्रस्ताव प्रपत्र ही बीमा पॉलिसी में अंकित किए जाने वाले तथ्यों की पुष्टि का एकमात्र माध्यम है, और चूंकि प्रस्ताव प्रपत्र भी बीमा कंपनी द्वारा ही जारी किया गया था, इसलिए उनके अपने ही प्रपत्र को अविश्वसनीय नहीं माना जा सकता।आयोग ने यह भी पाया कि बीमा कंपनी ने पॉलिसी में गलत जोखिम स्थान अंकित करके गंभीर त्रुटि की है, जो सेवा में कमी को दर्शाता है।
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इसके अतिरिक्त, आयोग ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 की धारा 106 का उल्लेख किया, जिसके तहत किसी विशिष्ट तथ्य को साबित करने का भार उस व्यक्ति पर होता है जो न्यायालय से उसके अस्तित्व में विश्वास करने का अनुरोध करता है।इस मामले में, यह साबित करने का भार बीमा कंपनी पर था कि विवादित स्थान बीमा में कवर नहीं था, क्योंकि उन्होंने इसी आधार पर दावे को ‘नो क्लेम’ कर दिया था।
उपर्युक्त तथ्यों और कानूनी विश्लेषण के आधार पर, आयोग ने पाया कि परिवादी अपने दावे को सुसंगत साक्ष्यों के माध्यम से एकपक्षीय रूप से साबित करने में सफल रहा है। परिणामस्वरूप, आयोग ने परिवादी के दावे को स्वीकार कर लिया और ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड को परिवादी को ₹2,54,37,595/- का भुगतान करने का आदेश दिया।
Attachment/Order/Judgement – CC192022
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