आगरा/ प्रयागराज, 7 जून, 2025:
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने महाकुंभ 2025 (मौनी अमावस्या, 29 जनवरी) में हुई भगदड़ के पीड़ितों को मुआवजा देने में हुई देरी को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार की जमकर खिंचाई की है।
अवकाश पीठ के न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति संदीप जैन की खंडपीठ ने सरकार के रवैये को ‘अस्थिर’ और ‘नागरिकों की पीड़ा के प्रति उदासीन’ करार दिया।
यह सख्त टिप्पणी उदय प्रताप सिंह की याचिका पर सुनवाई के दौरान की गई, जिनकी 52 वर्षीय पत्नी सुनैना देवी की भगदड़ में गंभीर चोटों से मृत्यु हो गई थी। चौंकाने वाली बात यह है कि सुनैना देवी के शव का न तो पोस्टमार्टम किया गया और न ही परिवार को उनके अस्पताल में भर्ती होने की कोई जानकारी दी गई। अदालत ने इसे सरकारी संस्थानों की गंभीर चूक मानते हुए उनकी कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए।
पीठ ने स्पष्ट किया कि जब सरकार ने मुआवजे की घोषणा की थी, तो उसका समयबद्ध और गरिमापूर्ण वितरण राज्य का कर्तव्य बन जाता है। न्यायालय ने जोर दिया कि नागरिकों की कोई गलती नहीं थी, और ऐसी त्रासदियों में राज्य का यह कर्तव्य है कि वह पीड़ित परिवारों की देखभाल और सहायता सुनिश्चित करे।
मामले की गंभीरता को देखते हुए, कोर्ट ने चिकित्सा संस्थानों, जिला प्रशासन और अन्य संबंधित अधिकारियों को मामले में पक्षकार बनाते हुए एक विस्तृत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है। इस हलफनामे में 28 जनवरी से मेला समाप्ति तक उनके नियंत्रण में आने वाले सभी शवों और मरीजों की तिथि-वार जानकारी के साथ-साथ घायलों का उपचार करने वाले या मृत घोषित करने वाले डॉक्टरों का विवरण भी शामिल होना चाहिए।
इसके अतिरिक्त, न्यायालय ने राज्य सरकार को मुआवजे से संबंधित प्राप्त और लंबित सभी दावों का ब्योरा प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने यह भी कहा कि राज्य सरकार नागरिकों के ट्रस्टी के रूप में कार्य करती है और उसे पीड़ितों के प्रति संवेदनशीलता दिखानी चाहिए। इस फटकार से उत्तर प्रदेश सरकार पर पीड़ितों को शीघ्र मुआवजा दिलाने का दबाव बढ़ गया है।
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