आगरा/प्रयागराज: २७ जून
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बागपत जिले के जिलाधिकारी (डीएम ), उप-विभागीय मजिस्ट्रेट (एसडीएम ) और तहसीलदार को न्यायिक आदेशों की खुलेआम अवहेलना करने के लिए कड़ी फटकार लगाई है।
कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि राज्य में अधिकारियों को न्यायिक निर्देशों का उल्लंघन करने में “उपलब्धि की भावना” महसूस होती है। यह मामला एक महिला के घर को अंतरिम रोक के बावजूद ध्वस्त करने से जुड़ा है।
न्यायमूर्ति जे.जे. मुनीर की पीठ ने इस गंभीर मामले का संज्ञान लेते हुए तीनों अधिकारियों को 7 जुलाई, 2025 तक व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है।
कोर्ट ने उनसे स्पष्टीकरण मांगा है कि ध्वस्त की गई इमारत को सरकारी खर्च पर क्यों न फिर से बनाया जाए और उसे उसकी मूल स्थिति में बहाल किया जाए ?
याचिकाकर्ता श्रीमती छामा ने 15 मई, 2025 को हाई कोर्ट से अंतरिम निषेधाज्ञा प्राप्त की थी, जिसमें उनके खिलाफ चल रही बेदखली और ध्वस्तीकरण की कार्यवाही पर रोक लगा दी गई थी। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से निर्देश दिया था कि “याचिकाकर्ता के निर्माण को ध्वस्त नहीं किया जाएगा”।
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हालांकि, अगले ही दिन, 16 मई, 2025 को, एसडीएम और तहसीलदार के नेतृत्व में राजस्व अधिकारियों की एक टीम ने कोर्ट के आदेश की भौतिक प्रति दिखाए जाने के बावजूद घर को ध्वस्त कर दिया। अदालत ने अधिकारियों के इस कृत्य को न्यायपालिका के प्रति अनादर करार दिया है। कोर्ट ने यह भी कहा कि अधिकारी ध्वस्तीकरण के दौरान आदेश पढ़ रहे थे, इसके बाद भी उन्होंने ध्वस्तीकरण की कार्रवाई की।
पीठ ने प्रथम दृष्टया यह माना है कि यह ध्वस्तीकरण हाई कोर्ट के अंतरिम आदेश का स्पष्ट उल्लंघन था। अब कोर्ट इस मामले में अधिकारियों द्वारा ध्वस्त किए गए घर के पुनर्निर्माण का आदेश देने पर विचार कर रहा है, जिसके लिए संबंधित अधिकारियों से जवाब मांगा गया है। मामले की अगली सुनवाई 7 जुलाई को दोपहर 2 बजे होगी।
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