आगरा:
विद्युत विभाग के एक संविदाकर्मी की हत्या, आपराधिक षड्यंत्र और सबूत नष्ट करने के आरोप में उसकी पत्नी और उसके कथित प्रेमी को अपर जिला जज-8 ने बरी कर दिया है।
अदालत ने पाया कि चिकित्सक की गवाही और परिस्थितिजन्य साक्ष्यों की कड़ियां आपस में नहीं जुड़ पा रही थीं, जिसके कारण आरोपियों को संदेह का लाभ दिया गया।
यह मामला अक्टूबर 2018 का है, जब चंद्रपाल नामक व्यक्ति, जो विद्युत विभाग में कार्यरत था, घर से लापता हो गया था। उसके भाई पूरन चंद्र ने गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई थी।
बाद में, चंद्रपाल के 8 वर्षीय बेटे ने बताया कि उसने अपने पिता को आरोपी अशोक दिवाकर के साथ देखा था। पूरन चंद्र ने आरोप लगाया कि उसके भाई की पत्नी अनिता और अशोक दिवाकर के बीच अवैध संबंध थे और उन्होंने मिलकर चंद्रपाल की हत्या कर दी।
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पुलिस ने जांच के दौरान अशोक दिवाकर और अनिता को हिरासत में लिया। अशोक की निशानदेही पर 23 अक्टूबर 2018 को रेलवे लाइन के पास एक कूड़े के ढेर से एक नर कंकाल बरामद किया गया। कंकाल के पास मिले कपड़ों से पूरन चंद्र ने उसकी पहचान अपने भाई के रूप में की।
कमजोर पड़ी अभियोजन की दलीलें
इस मामले में अभियोजन पक्ष ने कुल 8 गवाह पेश किए, जिनमें पूरन चंद्र और मृतक का बेटा हर्ष भी शामिल थे। हालांकि, बचाव पक्ष के तर्क और डॉक्टर की गवाही ने अभियोजन पक्ष के दावे को कमजोर कर दिया।
* डॉक्टर की गवाही: डॉक्टर ने अदालत में कहा कि 17 अक्टूबर को हुई घटना के बाद 23 अक्टूबर को कंकाल का मिलना संभव नहीं है। एक मानव शरीर को कंकाल बनने में कम से कम 3-4 महीने का समय लगता है, और अगर शव कूड़े में दबा हो तो इसमें और भी अधिक समय लग सकता है।
* डीएनए टेस्ट का अभाव: पुलिस ने बरामद कंकाल का मृतक के परिवार से डीएनए टेस्ट नहीं कराया, जिससे कंकाल की पहचान को लेकर संदेह बना रहा।
* अवैध संबंधों का अभाव: अभियोजन पक्ष कोई भी ऐसा गवाह पेश नहीं कर सका जो यह साबित कर सके कि अनिता और अशोक के बीच कोई अवैध संबंध थे।
अपर जिला जज-8 ने इन सभी तथ्यों और आरोपियों के अधिवक्ताओं नारायण सिंह वर्मा और राजेंद्र कुमार सैनी के तर्कों को ध्यान में रखते हुए अनिता और अशोक दिवाकर को बरी करने का आदेश दिया।
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