हत्या आरोप में अभियुक्त के मजिस्ट्रेट के समक्ष समर्पण बगैर नहीं हो सकता सत्र अदालत में केस कमिट

उच्च न्यायालय मुख्य सुर्खियां
दहेज हत्या आरोपी याचियों को अदालत में समर्पण करने व मजिस्ट्रेट को केस कमिट करने का निर्देश
सत्र अदालत से डिस्चार्ज अर्जी तय होने तक याचियों की गिरफ्तारी व उत्पीड़न पर रोक

आगरा /प्रयागराज 6 सितंबर।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि बिना अभियुक्त के समर्पण के मजिस्ट्रेट सत्र अदालत को केस कमिट नहीं कर सकते।

ऐसे में सीजेएम द्वारा अपराध से उन्मोचित करने की अभियुक्त की अर्जी निरस्त करने के आदेश पर हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता।

हालांकि कोर्ट ने जांच एजेंसियों द्वारा तीन बार विवेचना के बाद अंतिम रिपोर्ट दाखिल करने के कारण याची अभियुक्तों को बड़ी राहत दी है।

 

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कोर्ट ने याचीगण को मजिस्ट्रेट के समक्ष तीन हफ्ते में समर्पण करने का निर्देश दिया है और मजिस्ट्रेट को अगले दो हफ्ते में केस सत्र विचारण के लिए भेजने को कहा है।

कोर्ट ने याचीगण को चार हफ्ते में सत्र अदालत में डिस्चार्ज अर्जी दाखिल करने तथा उसे तय करने का आदेश देते हुए तब तक याचियों की गिरफ्तारी व उत्पीड़नात्मक कार्रवाई पर रोक लगा दी है।

यह आदेश न्यायमूर्ति अनीस कुमार गुप्ता ने श्रीमती अनीता व 6 अन्य की याचिका को निस्तारित करते हुए दिया है।

याचिका पर शिकायतकर्ता की तरफ से अधिवक्ता बी.के.एस रघुवंशी व अक्षय रघुवंशी ने पक्ष रखा। मालूम हो कि एक याची रंजीत की पत्नी की मौत हो गई।

जिसपर धारा 498 ए, 304 बी, 506 भारतीय दंड संहिता व 3/4 दहेज उत्पीड़न एक्ट के तहत जसराजपुर थाने में कोर्ट के आदेश पर एफआईआर दर्ज की गई। पुलिस ने विवेचना कर अंतिम रिपोर्ट दाखिल की।

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शिकायतकर्ता के प्रोटेस्ट पर मजिस्ट्रेट ने फिर से विवेचना का आदेश दिया। पुलिस ने दुबारा अंतिम रिपोर्ट दाखिल की। प्रोटेस्ट अर्जी को सीजेएम एटा ने कंप्लेंट केस माना ।

इसी बीच मानवाधिकार आयोग के आदेश पर सीबीसीआईडी जांच की गई। उसने भी अंतिम रिपोर्ट दाखिल कर शिकायतकर्ता के खिलाफ ऐक्शन लेने की शिफारिश की।

कहा कि मौत बिजली के कारण हुई है, याचियो ने अपराध नहीं किया है। मजिस्ट्रेट ने कंप्लेंट केस मे याचियों को सम्मन जारी किया। जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई।

कोर्ट ने सम्मन पर हस्तक्षेप नहीं किया किन्तु कहा याची डिस्चार्ज अर्जी दे। जिसे मजिस्ट्रेट ने यह कहते हुए निरस्त कर दिया कि जब तक सत्र विचारण शुरू नहीं होता तब तक डिस्चार्ज की सुनवाई नहीं की जा सकती।

इस आदेश को चुनौती दी गई थी। विपक्षी व सरकारी वकील का तर्क था कि जब तक अभियुक्त हाजिर नहीं होंगे केस सत्र विचारण के लिए मजिस्ट्रेट भेज नहीं सकते और तब तक डिस्चार्ज की सुनवाई नहीं की जा सकती। मजिस्ट्रेट को डिस्चार्ज अर्जी सुनने का अधिकार नहीं है। अर्जी समय पूर्व दाखिल की गई है।

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कोर्ट ने कहा

सी जे एम डिस्चार्ज अर्जी सुनने के लिए सक्षम नहीं है। इसलिए याचीगण समर्पण करें और केस कमिट होने पर सत्र अदालत में डिस्चार्ज अर्जी दाखिल करें।

 

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मनीष वर्मा
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