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रिटायरमेंट करीब आने पर सर्वोच्च न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ हुए भावुक:

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बोले इस बारे में सोच रहा हूं कि इतिहास उनके कार्यकाल का मूल्यांकन कैसे करेगा ?
क्या मैंने वह सब हासिल किया जो मैंने करने का लक्ष्य रखा था ?
क्या मैं कुछ अलग कर सकता था ?
मैं न्यायाधीशों और कानूनी पेशेवरों की भावी पीढ़ियों के लिए क्या विरासत छोड़ूंगा ?

आगरा/नई दिल्ली 09 अक्टूबर ।

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने हाल ही में सार्वजनिक संबोधन में अपने कार्यकाल पर विचार करते हुए कहा कि वे जजों और वकीलों की भावी पीढ़ी के लिए जो विरासत छोड़ेंगे, उसके बारे में सोच रहे हैं।

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भूटान में जेएसडब्ल्यू लॉ स्कूल के दीक्षांत समारोह में बोलते हुए सीजेआई ने कहा:

“मैं दो साल तक देश की सेवा करने के बाद इस साल नवंबर में सीजेआई के रूप में पद छोड़ दूंगा। चूंकि मेरा कार्यकाल समाप्त होने वाला है। इसलिए मेरा मन भविष्य और अतीत के बारे में आशंकाओं से बहुत अधिक घिरा हुआ है। मैं खुद को ऐसे सवालों पर विचार करते हुए पाता हूं मसलन क्या मैंने वह सब हासिल किया जो मैंने करने का लक्ष्य रखा था ?
इतिहास मेरे कार्यकाल का कैसे मूल्यांकन करेगा ?
क्या मैं कुछ अलग कर सकता था?
मैं न्यायाधीशों और कानूनी पेशेवरों की भावी पीढ़ियों के लिए क्या विरासत छोड़ूंगा ?।”

सीजेआई ने कहा कि उन्होंने अपने काम को पूरी तरह से निभाने का प्रयास किया और उन्हें देश की पूरी निष्ठा से सेवा करने का संतोष है।

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उन्होंने कहा,

“इनमें से ज़्यादातर सवालों के जवाब मेरे नियंत्रण से बाहर हैं। शायद मैं इनमें से कुछ सवालों के जवाब कभी नहीं पा सकूंगा। हालांकि, मैं जानता हूं कि पिछले दो सालों में मैं हर सुबह इस प्रतिबद्धता के साथ जागता हूं कि मैं अपना काम पूरी तरह से करूंगा। इस संतुष्टि के साथ सोता हूं कि मैंने अपने देश की पूरी लगन से सेवा की है। इसी में मुझे सुकून मिलता है। एक बार जब आपको अपने इरादों और क्षमताओं पर भरोसा हो जाता है तो नतीजों के बारे में सोचना बंद करना आसान हो जाता है। आप इस प्रक्रिया और इन नतीजों की ओर बढ़ने की यात्रा को महत्व देना शुरू कर देते हैं।”

भूटान की राजकुमारी सोनम देचन वांगचुक और भूटान के चीफ जस्टिस ल्योनपो चोग्याल दागो रिगडज़िन उन गणमान्य व्यक्तियों में शामिल थे जो समारोह में मौजूद थे।

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अपने संबोधन में सीजेआई ने बताया कि एक बच्चे के रूप में वह दुनिया में बदलाव लाने के अथक जुनून के साथ बड़े हुए। इस अतृप्त उत्साह से प्रेरित होकर उन्होंने अक्सर खुद को चरम सीमा तक धकेल दिया, आदतन लंबे समय तक काम किया और भारी बोझ उठाया। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में उन्होंने महसूस किया कि हमारे समुदाय में योगदान करने की किसी की क्षमता व्यक्ति की आत्म-धारणा और आत्म-देखभाल की क्षमता में गहराई से निहित है।

सीजेआई ने कहा,

“अपनी भलाई को प्राथमिकता देना और इस प्रक्रिया में आनंद प्राप्त करना महत्वपूर्ण है। हम अक्सर किसी प्रोजेक्ट में अपना दिल और आत्मा लगा देते हैं, लेकिन यात्रा का आनंद लेने में विफल हो जाते हैं, क्योंकि हम गंतव्य तक पहुंचने के डर में फंस जाते हैं। आपसे कुछ दशक बड़े होने के नाते मैं आपको बता सकता हूं कि इन डरों को दूर करना आसान नहीं है। हालांकि, व्यक्तिगत विकास उन्हें संबोधित करने और उनका सामना करने में सक्षम होने में निहित है।”

सीजेआई ने युवा ग्रेजुएट को सलाह दी कि वे अपने युवाओं के जुनून और आदर्शवाद को अपने प्रशिक्षण के परिष्कार और विशेषज्ञता के साथ मिलाएं। उन्होंने वैश्वीकरण के युग में हमारी विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान के संरक्षण को प्राथमिकता देने की आवश्यकता के बारे में भी बात की।

उन्होंने कहा,

“अक्सर एक गलत धारणा होती है कि हमारे समुदायों के पारंपरिक मूल्य स्वतंत्रता, समानता और असहमति जैसे आधुनिक लोकतांत्रिक विचारों के विपरीत हैं।”

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सीजेआई ने कहा,

“भूटान और भारत जैसे देश अक्सर खुद को विविध प्रभावों, खासकर पश्चिम से, के साथ चौराहे पर पाते हैं। हालांकि, हमारे जैसे अद्वितीय ऐतिहासिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भों में स्थित राष्ट्रों को लगातार इस धारणा को चुनौती देनी चाहिए कि ये मूल्य और सिद्धांत सार्वभौमिक हैं या हमेशा सही उत्तर देते हैं। “मानवाधिकारों” की पारंपरिक पश्चिमी परिभाषा, जो समुदाय पर व्यक्ति को प्राथमिकता देती है, भले ही अच्छी मंशा वाली हो, लेकिन न्याय की हमारी समझ को आकार देने वाले विविध दृष्टिकोणों और सांस्कृतिक बारीकियों को ध्यान में रखने में विफल रहती है। उदाहरण के लिए, भारत और भूटान दोनों ही ऐसे समुदायों के घर हैं जो पारंपरिक समुदाय-आधारित विवाद समाधान और शासन तंत्र पर निर्भर हैं। ऐसे तंत्रों को पारंपरिक और पुरातन मानकर त्याग नहीं किया जाना चाहिए। इसके बजाय उन्हें आधुनिक संवैधानिक विचारों द्वारा पूरक बनाया जाना चाहिए। भारत में हमारे संविधान में ही ऐसे प्रावधान हैं जो ग्राम पंचायतों और ग्राम सभाओं से निपटते हैं, जिससे ऐसी प्रक्रियाओं को संस्थागत बनाया जाता है। उन्हें आधुनिक राजनीतिक विचार और प्रक्रिया से जोड़ा जाता है।”

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साभार: लाइव लॉ

विवेक कुमार जैन
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