इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति शेखर यादव के समर्थन में आये संगठन

उच्च न्यायालय मुख्य सुर्खियां
महाभियोग को गंदी राजनीति बता की कड़ी निंदा

आगरा /प्रयागराज 14 दिसंबर ।

विश्व हिन्दू परिषद की विधि प्रकोष्ठ द्वारा आयोजित कार्यक्रम में न्यायमूर्ति डॉ शेखर कुमार यादव द्वारा दिए गए वक्तव्य में कठमुल्ला शब्द के प्रयोग को लेकर उठे विवाद के बीच हाईकोर्ट के कई अधिवक्ता संगठन और संस्थाएं उनके समर्थन बढ़ता जा रहा है। भारतीय भाषा अभियान काशी प्रांत की बैठक में प्रदेश के अपर महाधिवक्ता और भारतीय भाषा अभियान के राष्ट्रीय संरक्षक अशोक मेहता ने न्यायमूर्ति यादव का बचाव करते हुए कहा कि उन्होंने अपने वक्तव्य में डेमेक्रेसी की व्याख्या करते हुए कहा कि भारत में बहुसंख्यक वाद का राज है।

इसके साथ साथ यूनिफार्म सिविल कोड लागू किए जाने पर जोर दिया। उन्होंने बहुत ही सभ्य शब्दों में अपने विचारों को व्यक्त किया और संयमित तरीके से कठमुल्ला शब्द का प्रयोग किया। उनके भाषण के किसी एक छोटे से खंड या शब्द को पकड़ कर राजनैतिक लाभ के लिए हल्ला मचाना किसी भी सभ्य समाज के लिए सही नहीं है। मेहता ने कहा कि किसी भी सम्भाषण को उसकी पूर्णता में देखा जाना चाहिए, टुकड़ों में तोड़ मरोड़ कर उनका अर्थ का अनर्थ नहीं करना चाहिए।

उन्होंने कहा कि कठमुल्ला शब्द जब संसदीय शब्दकोश में ढूंढा जाता है तो पाते हैं कि यह शब्द अशोभनीय एवं असंसदीय शब्द नहीं है।

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उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष कपिल सिब्बल एक छोटी सी घटना को बड़ा करके दिखा रहे हैं। कांग्रेस और कपिल सिब्बल की यह पुरानी आदत है।

श्री मेहता ने कहा कि न्यायमूर्ति जेसी शाह भारत के पूर्व न्यायाधीश के विरूद्ध भी 60 के दशक में ऐसा ही प्रयास कांग्रेस ने किया था और अभी कुछ समय पहले भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के विरूद्ध भी कपिल सिब्बल की अगुआई में इसी प्रकार का प्रयास किया गया था।

यही नहीं कपिल सिब्बल ने ही महाभियोजन के दोषी न्यायाधीश रामास्वामी का संसद में बचाव किया था और पूरी की पूरी कांग्रेस ने संसद का बहिष्कार करके रामास्वामी को महाभियोग से बचाया था। 196 सांसदों ने रामास्वामी को महाभियोग का दोषी पाया था जबकि एक भी सांसद इस पक्ष में एक भी वोट नहीं किया कि रामास्वामी निर्दोष है।

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मेहता का कहना है कि जब तक भारत केवल और केवल पाश्चात्य डेमोक्रेसी की तरफ देखेगा तब तक मेजोरिटिज्म बहुसंख्यक वाद ही राज करेगा। जिसकी लाठी उसकी भैंस और पिछले 60 सालों में भारतीय संविधान के अंदर उसका यूज मिसयूज और एव्यूज जिस रुप में किया गया है। वह दुनिया से छुपा नही है। लेकिन आज की आवश्यकता है कि भारतीय गणतंत्र के 75 वें वर्ष पर हम प्रजातंत्र लोकतंत्र एवं गणतंत्र की परिभाषाओं पर वृहद रुप से विचार करें और नागरिक मूल्य इस प्रकार से पारिवारिक मूल्यों से होते हुए राष्ट्रीय मूल्य बनें। आज बहस इस बात पर होनी चाहिए।

भारतीय भाषा अभियान न्यायमूर्ति डॉ शेखर कुमार यादव के समर्थन में खड़ा है और महाभियोग जैसे कुत्सित प्रयासों का विरोध एवं निंदा करता है।

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मनीष वर्मा
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