इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नाबालिग साली के साथ ‘अवैध’ संबंध के आरोपी को जमानत देने से किया मना

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कोर्ट ने कहा- ‘पारिवारिक भरोसे को तोड़ा गया’

आगरा /प्रयागराज 28 जनवरी ।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक व्यक्ति को जमानत देने से इंकार कर दिया, जिस पर अपनी पत्नी (शिकायतकर्ता/सूचनाकर्ता) को दहेज के लिए परेशान करने के साथ-साथ उसकी नाबालिग बहन को बहला-फुसलाकर भगा ले जाने और उसके साथ यौन उत्पीड़न करने के आरोप में पॉक्सो अधिनियम, भारतीय दंड संहिता और दहेज निषेध अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया था।

जस्टिस संजय कुमार सिंह की पीठ ने कहा कि आरोपी का कथित आचरण न केवल विवाह के पवित्र बंधन का उल्लंघन है, बल्कि पारिवारिक विश्वास और नैतिक अखंडता का भी गंभीर उल्लंघन है।

न्यायालय ने आवेदक के कार्यों की गंभीरता पर भी प्रकाश डाला, जिस पर अपनी नाबालिग साली के साथ “अवैध” संबंध बनाने का आरोप लगाया गया है।

इसके अलावा, सामाजिक और पारिवारिक सद्भाव की आधारशिला के रूप में विवाह के महत्व पर जोर देते हुए, न्यायालय ने कहा कि इसे कमजोर करने वाला कोई भी कार्य गहरा भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक नुकसान पहुंचाता है।

न्यायालय ने कहा कि आवेदक के कार्यों ने उसकी पत्नी को गंभीर आघात पहुंचाया, उसके विश्वास और सम्मान को तोड़ दिया और दोनों बहनों के बीच के बंधन को अपूरणीय रूप से खराब कर दिया।

एकल न्यायाधीश ने अपने आदेश में टिप्पणी की,

“यह न्यायालय इस बात पर गौर करता है कि इस तरह का व्यवहार न केवल वैवाहिक संबंधों को बल्कि व्यापक पारिवारिक इकाई को भी बाधित करता है, जिससे कलह और अस्थिरता पैदा होती है। आवेदक का कृत्य इन मूलभूत सिद्धांतों और पति तथा परिवार के सदस्य के रूप में अपनी जिम्मेदारियों के प्रति उपेक्षा को दर्शाता है। इस तरह के आचरण की सामाजिक मानदंडों और कानून दोनों द्वारा स्पष्ट रूप से निंदा की जाती है।”

इस मामले में, आरोपी पर पत्नी द्वारा आईपीसी की धारा 498-ए, 323, 504, 506, 363, 366ए, 427 और 376(2)(एन), पॉक्सो अधिनियम की धारा 5(एल)/6 और दहेज निषेध अधिनियम कीधारा 3/4 के तहत दर्ज कराई गई एफआईआर का सामना करना पड़ रहा है।

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शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि उसकी शादी आवेदक से करीब छह साल पहले हुई थी। जब से उसने बेटी को जन्म दिया है, उसका पति नाराज और दुखी रहता था, जिसके कारण वह कम दहेज लाने के बहाने उसे परेशान करता था और उसके लगातार उत्पीड़न के कारण वह अपने मायके में रहने लगी थी।

उसका यह भी आरोप था कि पति फरवरी 2023 में उसके मायके आया और उसकी नाबालिग बहन, उम्र करीब 16 साल को बहला-फुसलाकर भगा ले गया, जिसके संबंध में एफआईआर दर्ज कराई गई और पति को जेल भेज दिया गया। हालांकि, अगस्त 2023 में जमानत पर रिहा होने के बाद वह फिर से उसकी नाबालिग बहन को बहला-फुसलाकर ले गया।

मामले में जमानत की मांग करते हुए आरोपी ने हाईकोर्ट का रुख किया, जिसमें उसके वकील ने तर्क दिया कि पीड़िता ने धारा 161 और 164 सीआरपीसी के तहत अपना बयान दर्ज कराया था, जिसमें कहा गया था कि वह अपनी मर्जी से पति के साथ गई थी। उसने पति के पक्ष में निचली अदालत में हलफनामा भी दिया था।

यह भी प्रस्तुत किया गया कि 2,00,000 रुपये को लेकर विवाद है, जो शिकायतकर्ता के पिता ने आवेदक से उधार लिया था, जिसके कारण उसे इस मामले में झूठा फंसाया गया था।

उसकी जमानत याचिका का विरोध करते हुए, राज्य के अतिरिक्त सरकारी अधिवक्ता, साथ ही शिकायतकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि आवेदक अपनी पत्नी को अतिरिक्त दहेज के लिए लगातार परेशान और प्रताड़ित कर रहा था और उसने एक नाबालिग लड़की को बहला-फुसलाकर भगाया था, जिसकी सहमति अप्रासंगिक थी।

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पक्षों के वकील को सुनने और मामले की पूरी तरह से जांच करने के बाद, अदालत ने पाया कि पीड़िता लगभग 17 वर्ष की नाबालिग है ।जिसकी सहमति कानून के तहत अप्रासंगिक है।

अदालत ने यह भी माना कि नाबालिग पीड़िता को बहला-फुसलाकर भगाने की यह दूसरी घटना थी, और पॉक्सो अधिनियम की धारा 29 को देखते हुए, जब तक कि आरोपी द्वारा इसके विपरीत साबित नहीं किया जाता, तब तक आरोपी-आवेदक के खिलाफ अनुमान लगाया जाना था।

इन टिप्पणियों के मद्देनजर, मामले के समग्र तथ्यों और परिस्थितियों के साथ-साथ पक्षों की ओर से प्रस्तुत किए गए तर्कों, अपराध की गंभीरता और सजा की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए, न्यायालय ने उसे जमानत देने से इंकार कर दिया।

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साभार: लाइव लॉ

विवेक कुमार जैन
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