इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पत्रकार मोहम्मद ज़ुबैर को बड़ी राहत देते हुए, डासना मंदिर पर हमले को भड़काने वाले ट्वीट के मामले में उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर में हस्तक्षेप करने से किया इंकार

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कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि विवेचना पूरी होने तक उनकी गिरफ्तारी नहीं की जाएगी, बशर्ते वह विवेचना में करें पूरा सहयोग

आगरा/प्रयागराज २३ मई ।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पत्रकार मोहम्मद ज़ुबैर को बड़ी राहत देते हुए, डासना मंदिर पर हमले को भड़काने वाले ट्वीट के मामले में उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर में हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया है।

हालांकि, कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि विवेचना पूरी होने तक उनकी गिरफ्तारी नहीं की जाएगी, बशर्ते वह विवेचना में पूरा सहयोग करें। इसके साथ ही, कोर्ट ने विवेचना के दौरान ज़ुबैर के देश छोड़ने पर भी रोक लगा दी है।

न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा तथा न्यायमूर्ति डॉ. वाई. के. श्रीवास्तव की खंडपीठ ने मोहम्मद ज़ुबैर की याचिका का निस्तारण करते हुए यह आदेश दिया। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि एफआईआर से प्रथमदृष्टया अपराध का खुलासा होता प्रतीत हो रहा है और किसी के साथ अन्याय न हो, इसके लिए विवेचना जरूरी है।

कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि याची को पहले भी अंतरिम राहत मिली थी और उसने उसका दुरुपयोग नहीं किया है, इसलिए उसे विवेचना पूरी होने तक संरक्षण दिया जा रहा है।

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मामले की पृष्ठभूमि:

गाजियाबाद के कविनगर थाने में उदिता त्यागी ने 7 अक्टूबर 2024 को मोहम्मद ज़ुबैर के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी। आरोप लगाया गया था कि ज़ुबैर ने कई बार ट्वीट कर स्वामी यति नरसिंहा नंद गिरी के बयान को लेकर लोगों को डासना मंदिर पर हमले के लिए भड़काया, जिसके परिणामस्वरूप सैकड़ों लोगों ने मंदिर पर हमला किया। शिकायतकर्ता और यति नरसिंहा नंद उस समय मंदिर में मौजूद थे।

पुलिस ने 3 अक्टूबर 2024 को नरसिंहा नंद के 29 सितंबर 2024 के बयान को लेकर एफआईआर दर्ज की थी। हालांकि, इस कार्रवाई को नाकाफी मानते हुए याची (मोहम्मद ज़ुबैर) पर पब्लिक को हमले के लिए भड़काने और हमला करने का आरोप लगाया गया था। शिकायतकर्ता को धमकी देने की बात भी कही गई थी।

ज़ुबैर का बचाव:

ज़ुबैर के अधिवक्ता का कहना था कि उनके मुवक्किल के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता की धारा 152 का अपराध नहीं बनता। उन्होंने तर्क दिया कि ज़ुबैर ने केवल तथ्यों की जांच (फैक्ट चेक) की थी और अभिव्यक्ति की आज़ादी का इस्तेमाल किया था। उन्होंने यह भी कहा कि कुछ लोगों के मंदिर पर हमले को उनके ट्वीट से नहीं जोड़ा जा सकता, क्योंकि देश की 142.80 करोड़ की आबादी में केवल 536.7 हज़ार लोगों ने ही उनकी ट्वीट देखी है। यह “भीड़ भरे थिएटर में आग का टेस्ट करने” जैसा मामला नहीं है।

कोर्ट का रुख:

हालांकि, कोर्ट ने कहा कि तथ्यों से प्रथमदृष्टया अपराध का खुलासा होता प्रतीत हो रहा है, जिसकी विवेचना आवश्यक है। इस फैसले के साथ ही, मोहम्मद ज़ुबैर को विवेचना में सहयोग करना होगा और वह जांच पूरी होने तक विदेश यात्रा नहीं कर पाएंगे।

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मनीष वर्मा
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