आगरा जातीय हिंसा: 35 साल पुराने मामले में 32 दोषियों को मिली जमानत

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दी राहत, जुर्माने की राशि जमा करने का आदेश

आगरा/प्रयागराज ।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आगरा के 35 साल पुराने जातीय संघर्ष के मामले में 32 दोषियों की जमानत याचिका स्वीकार कर ली है।

न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव की एकल पीठ ने यह फैसला सुनाया। कोर्ट ने दोषियों को राहत देते हुए कहा कि उन्हें रिहाई की तारीख से 15 दिन के भीतर ट्रायल कोर्ट द्वारा लगाए गए जुर्माने की राशि जमा करनी होगी।

यह मामला 21 जून 1990 और 24 जून 1990 को आगरा के सिकंदरा और अकोला गांवों में हुई जातीय हिंसा से जुड़ा है। इसी साल 30 मई को एससी-एसटी विशेष अदालत ने 32 दोषियों को पांच-पांच साल की कैद और 41-41 हजार रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई थी। इसके बाद दोषियों ने इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दायर की थी।

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हाईकोर्ट में रखी गई ये दलीलें:

दोषियों की ओर से अधिवक्ता राजीव लोचन शुक्ला ने अदालत में तर्क दिया कि उनके मुवक्किलों को झूठा फंसाया गया है।

उन्होंने बताया कि अभियोजन पक्ष के करीब 27 गवाहों के बयानों में विरोधाभास थे, जिन पर निचली अदालत ने ध्यान नहीं दिया।

उन्होंने यह भी कहा कि ज्यादातर अपीलकर्ता 65 वर्ष से अधिक उम्र के हैं और कई बीमारियों से पीड़ित हैं।

अधिवक्ता ने कोर्ट को यह भी बताया कि दोषियों ने मुकदमे के दौरान कभी भी अपनी जमानत का दुरुपयोग नहीं किया।

वे सभी 28 मई 2025 से जेल में हैं और भविष्य में अपील की सुनवाई जल्द होने की कोई संभावना नहीं है। इसलिए, अपील लंबित रहने तक उन्हें जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए।

कोर्ट का फैसला:

कोर्ट ने इन दलीलों को मानते हुए कहा कि अपील के अंतिम निपटारे में समय लग सकता है, और इस मामले के गुण-दोष पर कोई टिप्पणी किए बिना दोषियों को जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए।

कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि लगभग 95 वर्षीय अपीलकर्ता देवी सिंह पहले से ही अल्पकालिक जमानत पर हैं और आगरा के जेल अस्पताल में भर्ती हैं।

यह था पूरा मामला:

21 जून 1990 को सिकंदरा के पनवारी गांव में भरत सिंह कर्दम की बहन की बारात को लेकर जातीय हिंसा भड़क गई थी। यह विवाद इतना बढ़ गया कि कुछ लोगों की जान भी चली गई।

कुछ दिन बाद, 24 जून 1990 को, हिंसा की आग कागारौल के अकोला गांव तक पहुँच गई, जहाँ करीब 200 से 250 लोगों की भीड़ ने जाटव बस्ती पर हमला कर दिया था।

तत्कालीन थानाध्यक्ष ओमपाल सिंह ने इस मामले में मुकदमा दर्ज कराया था और 4 जून 1991 को 79 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई थी।

निचली अदालत के फैसले के बाद, क्षेत्रीय विधायक चौ. बाबूलाल ने दोषियों की ओर से हाईकोर्ट में जमानत याचिका दायर करवाई थी।

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विवेक कुमार जैन
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