इलाहाबाद हाईकोर्ट ने डीएलएड दो वर्षीय प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में प्रवेश की योग्यता इंटर से बढ़ाकर स्नातक करने के राज्य सरकार के शासनादेश के क्लॉज चार को असंवैधानिक करार देते हुए किया रद्द

उच्च न्यायालय मुख्य सुर्खियां

आगरा/ प्रयागराज 01 अक्टूबर।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने डायट द्वारा संचालित डीएलएड दो वर्षीय प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में प्रवेश की योग्यता इंटर से बढ़ाकर स्नातक करने के राज्य सरकार के 9 सितंबर 24 के शासनादेश के क्लॉज चार को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया है।

कोर्ट ने राज्य सरकार के निर्णय को असंवैधानिक, मनमाना और भेदभावपूर्ण करार दिया है।

यह आदेश न्यायमूर्ति मनीष कुमार ने यशांक खंडेलवाल और नौ अन्य की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है।

Also Read – सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने वकीलों से ऐसा क्यों कहा कि “मेरी विश्वसनीयता दांव पर है” ?

कोर्ट ने कहा कि पूरे देश में डीएलएड प्रशिक्षण कोर्स में प्रवेश की योग्यता इंटरमीडिएट रखी गई है और राज्य सरकार ने प्रवेश योग्यता को दो भागों में बांटते हुए स्पेशल शिक्षा कोर्स के लिए इंटरमीडिएट और सरकारी संस्थाओं जैसे डायट में प्रशिक्षण कोर्स में प्रवेश के लिए स्नातक अनिवार्य कर दिया है जिसको मनमाना व विभेदकारी मानते हुए चुनौती दी गई थी।

राज्य सरकार का कहना था कि प्रवेश की प्रक्रिया जारी है, इसलिए बीच में बदलाव किया जाना सही नहीं है।

कोर्ट ने कहा कि याचिका 26 जुलाई 24 को दाखिल की गई है और प्रवेश प्रक्रिया 18 सितंबर से 12 दिसंबर तक चलेगी। इसलिए इंटरमीडिएट योग्यता रखने वाले याचियों को प्रवेश प्रक्रिया में भाग लेने की अनुमति दी जाए।

Also Read – 1984 के सिख विरोधी दंगे मामले में कांग्रेस के नेता जगदीश टायलर के विरुद्ध लगे हत्या के आरोप के खिलाफ याचिका पर 29 नवंबर को होगी दिल्ली हाई कोर्ट में सुनवाई

याचिका में नौ सितंबर 2024 के शासनादेश को यह कहते हुए चुनौती दी गई कि इस शासनादेश में डायट द्वारा संचालित डीएलएड दो वर्षीय पाठ्यक्रम के प्रवेश की योग्यता को राज्य सरकार ने इंटर से बढ़ाकर स्नातक कर दिया है जबकि दिव्यांग बच्चों को पढ़ाने का प्रशिक्षण डीएलएड (स्पेशल कोर्स) की योग्यता इंटर ही है। एनसीटी द्वारा मान्यता प्राप्त संस्थानों में इस पाठ्यक्रम में प्रवेश की योग्यता 50 प्रतिशत अंक के साथ इंटर उत्तीर्ण है।

याचियों का कहना था कि इस आदेश से कुछ वर्ग के अभ्यर्थियों के साथ भेदभाव होगा जो डीएलएड पाठ्यक्रम में प्रवेश लेना चाहते हैं क्योंकि इसी पाठ्यक्रम के स्पेशल कोर्स की योग्यता अब भी इंटर है।

याचियों का कहना है कि पुरानी व्यवस्था से तीन वर्ष में सहायक अध्यापक की नियुक्ति की जा सकती है।

जबकि राज्य सरकार की व्यवस्था से स्नातक के बाद दो वर्षीय पाठ्यक्रम करने में पांच वर्ष लगेगा। इस प्रकार अभ्यर्थियों का दो वर्ष का समय अतिरिक्त देना होगा।

राज्य सरकार का कहना था कि सरकार को एनसीटीई द्वारा तय योग्यता से उच्च योग्यता निर्धारित करने का अधिकार है। इसमें कोई अवैधानिकता नहीं है।

Also Read – केवल इसलिए तोड़फोड़ नहीं की जा सकती कि कोई व्यक्ति आरोपी/दोषी है: सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित किया

यह भी कहा गया कि यह सरकार का नीतिगत निर्णय है जिसका न्यायिक पुनरावलोकन संभव नहीं है क्योंकि न्यायिक पुनरावलोकन तभी हो सकता है, जब आदेश असंवैधानिक हो।

कोर्ट ने कहा कि इस बात में कोई विवाद नहीं है कि प्राइवेट संस्थानों में इसी पाठ्यक्रम की योग्यता इंटर है।

राज्य सरकार द्वारा डीएलएड और डीएलएड स्पेशल कोर्स के लिए अलग-अलग योग्यता तय करना वर्ग के भीतर वर्ग उत्पन्न करना है जबकि दोनों पाठ्यक्रमों में कोई तात्विक फर्क नहीं है।

कोर्ट ने कहा कानून व नीति के विपरीत कार्यपालक नीति नहीं हो सकती।

Stay Updated With Latest News Join Our WhatsApp  – Group BulletinChannel Bulletin

 

मनीष वर्मा
Follow Me

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *