पैदल चलने वालों को मिली बड़ी राहतः सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले से दिया देश के हर नागरिक को बाधारहित और दिव्यांग-समर्थ फुटपाथ पर चलने का अधिकार

उच्चतम न्यायालय मुख्य सुर्खियां
सुप्रीम कोर्ट ने कहा फुटपाथ केवल यातायात का मुद्दा नहीं, यह है जीवन का अधिकार
दिव्यांगों को मिला उनका हक ,अब हर फुटपाथ होगा बाधारहित और सुलभ।

आगरा /नई दिल्ली १४ मई ।

एक ऐतिहासिक और जनसरोकार से जुड़ा फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि साफ, सुरक्षित और दिव्यांग-समर्थ फुटपाथों पर चलना हर नागरिक का मौलिक अधिकार है, जिसे संविधान के अनुच्छेद 21 के अन्तर्गत जीने के अधिकार के तहत संरक्षण प्राप्त है।

इस अत्यंत संवेदनशील और मानवीय पहल को सुप्रीम कोर्ट तक पहुँचाने का श्रेय आगरा के युवा उद्यमी और सामाजिक कार्यकर्ता हेमंत जैन को जाता है, जिन्होंने यह याचिका दाखिल की तथा इस पूरे मामले में सुप्रीम कोर्ट में उनकी ओर से बहस आगरा के वरिष्ठ अधिवक्ता के0सी0 जैन ने की। जिसमें देशभर में फुटपाथों की दुर्दशा, अतिक्रमण और दिव्यांगों के लिए उनकी अनुपलब्धता की ओर ध्यान दिलाया गया था।

न्यायमूर्ति ए.एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुआन की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा कि सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को दो महीने के भीतर यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके शहरों और गांवों में पैदल चलने वालों के लिए साफ, अतिक्रमण मुक्त और दिव्यांगों के अनुकूल फुटपाथ हों और यह भी कहा कि सभी सार्वजनिक सड़कों पर उपयुक्त फुटपाथ बनाए जाएं।

फुटपाथों से अतिक्रमण हटाना अनिवार्य है।फुटपाथों को इस तरह से बनाया और बनाए रखा जाए कि दिव्यांगजन भी आसानी से उनका उपयोग कर सकें।राज्य सरकारें और केंद्रशासित प्रदेश, इस संबंध में नीति बनाकर दो महीने में रिपोर्ट दाखिल करें। भारत सरकार भी यह बताए कि पैदल यात्रियों के अधिकारों की रक्षा के लिए उसके पास क्या नीति है।

सुप्रीम कोर्ट ने बंबई हाईकोर्ट द्वारा पहले से जारी दिशा-निर्देशों को आदर्श मानते हुए सभी राज्यों को उन्हें अपनाने को कहा।

न्यायालय का मत था कि

“जब फुटपाथ नहीं होते, तो गरीब, बुजुर्ग, बच्चे और दिव्यांगजन मजबूर होकर सड़क पर चलते हैं और हादसों का शिकार होते हैं। यह केवल यातायात का मुद्दा नहीं, यह जीवन का अधिकार है।”

यह निर्णय उन लाखों भारतीयों के लिए एक उम्मीद की किरण है जो आज भी फुटपाथ के अभाव में जान जोखिम में डालकर सड़क पर चलते हैं। अब हर कदम सुरक्षित होगा, हर जीवन की अहमियत होगी।

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याचिका की पृष्ठभूमि

भारत में हर वर्ष हजारों पैदल यात्री सड़कों पर अपनी जान गंवा देते हैं। 2022 में 32,825 पैदल यात्रियों की मौत हुई, जो कि देश में सड़क दुर्घटनाओं में हुई कुल मौतों का 19.5 प्रतिशत है। इस समस्या को गंभीरता से उठाते हुए हेमंत जैन द्वारा सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गयी जिसमें कोर्ट से तत्काल हस्तक्षेप की माँग की गई है।

याचिका में कहा गया कि पैदल चलना कोई विशेषाधिकार नहीं बल्कि एक मौलिक मानवीय अधिकार है। भारत में सड़कों को केवल वाहनों के लिए नहीं, लोगों के लिए भी सुरक्षित बनाया जाना आवश्यक है। यदि सुप्रीम कोर्ट आज हस्तक्षेप करता है, तो कल हजारों जिंदगियाँ बचाई जा सकती हैं। यह याचिका एक सार्वजनिक हित में किया गया प्रयास है, ताकि हर नागरिक को सुरक्षित चलने का अधिकार प्राप्त हो, विशेष रूप से बच्चों, बुजुर्गों, महिलाओं और दिव्यांगजनों को।

याचिका में दिये तथ्य व आंकड़ेः

वर्ष                         पैदल यात्री                  कुल सड़क हादसों में मृतक यात्री                मृतक प्रतिशत
2016                       1,50,785                                       15,746                                        10.44 प्रतिशत

2017                        1,47,913                                       20,457                                        13.83 प्रतिशत

2018                        1,51,417                                       22,656                                         14.96 प्रतिशत

2019                        1,51,113                                       25,858                                         17.11 प्रतिशत

2020                       1,31,714                                       23,483                                         17.83 प्रतिशत

2021                        1,53,972                                      29,124                                          18.9 प्रतिशत

2022                       1,68,491                                       32,825                                         19.5 प्रतिशत

याचिका में बताया गया कि वर्ष 2023 में 77,004 पैदल यात्रियों के साथ दुर्घटनाएँ हुईं, जिनमें से 32,797 की मृत्यु हुई, 34,055 गंभीर रूप से घायल हुए, 30,809 को मामूली चोटें आईं

याचिका में उठायी गई समस्याएंः

* फुटपाथों पर अतिक्रमण, टूटी अवस्था या गैर-सुलभ डिजाइन।
* सड़क किनारे दोपहिया वाहनों की अवैध पार्किंग।
* दृष्टिबाधितों एवं दिव्यांगों के लिए कोई सुविधा नहीं।
* नियमों की अवहेलना, जैसे कि वाहन चालकों द्वारा पैदल यात्रियों को जेब्रा क्रॉसिंग पर रास्ता न देना।
* ट्रैफिक पुलिस और नगर निकायों की निष्क्रियता।

याचिका के कानून व संवैधानिक आधारः

*  अनुच्छेद 21 :जीवन जीने का अधिकार, जिसमें सुरक्षित चलने का अधिकार भी शामिल है।
* दृष्टिबाधित अधिकार अधिनियम, 2016:दिव्यांगों के लिए बाधारहित पथ अनिवार्य करता है।
* मोटर वाहन अधिनियम व ड्राइविंग रेगुलेशन, 2017: जेब्रा क्रॉसिंग पर पैदल यात्री को प्राथमिकता।
* ओलगा टेलिस का निर्णय (1985): सुप्रीम कोर्ट ने इस निर्णय में पैदल यात्रियों का मौलिक अधिकार माना है।

याचिका में अदालत से मांगी गयी राहतः

* सभी शहरों में भारतीय सड़क कांग्रेस (आई.आर.सी- 103 वर्ष 2012) मानकों के अनुसार फुटपाथ बनाए जाएं।
* दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम के अनुसार हर फुटपाथ पर रैंप, टैक्टाइल पैविंग, ऑडियो सिग्नल और ब्रेल संकेत अनिवार्य हों।
* स्मार्ट सिटी के कमांड सेंटर्स को अतिक्रमण की निगरानी और रिपोर्टिंग हेतु उपयोग में लाया जाए।
* जिला सड़क सुरक्षा समितियों को प्रत्येक बैठक में पैदल यात्री सुरक्षा पर चर्चा व रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश।
* अवैध अतिक्रमणों का चरणबद्ध हटाव, हेल्पलाइन पोर्टल, और शिकायत समाधान ट्रैकिंग सिस्टम लागू किया जाए।
* नई सड़क परियोजनाओं में पैदल यात्री प्रभाव मूल्यांकन अनिवार्य किया जाए।
* जन-जागरूकता अभियान चलाकर नागरिकों और चालकों को पैदल यात्रियों के अधिकारों के प्रति संवेदनशील बनाया जाए।

याची हेमंत जैन का वक्तव्यः

“यह सिर्फ एक याचिका नहीं थी, यह उन करोड़ों पैदल चलने वालों की आवाज थी, जिन्हें कभी सुना नहीं गया। मैंने यह दर्द नजदीक से देखा है – जब बच्चे, बुजुर्ग, महिलाएं और दिव्यांगजन जान जोखिम में डालकर सड़कों पर चलते हैं, क्योंकि हमारे शहरों में उनके लिए कोई जगह नहीं छोड़ी गई। यह फैसला उन सभी के नाम है, जिन्होंने चुपचाप हादसों को सहा, और अब उनकी चुप्पी को एक संवैधानिक आवाज मिल गई है।

के0सी0 जैन (याची के अधिवक्ता) का वक्तव्यः

“सड़क पर चलना कोई विशेषाधिकार नहीं, बल्कि प्रत्येक नागरिक का मौलिक अधिकार है – यह बात सुप्रीम कोर्ट ने आज संविधान की भावना के अनुरूप स्पष्ट कर दी है। इस फैसले में न केवल पैदल चलने वालों की गरिमा को पुर्न्स्थापित किया है, बल्कि शासन व्यवस्था को एक स्पष्ट दिशा भी दी गई है – कि विकास का मतलब केवल चौड़ी सड़कें नहीं, बल्कि सुरक्षित और समावेशी रास्ते भी हैं। इस मामले में न्यायालय द्वारा दिखाई गई संवेदनशीलता और दृढ़ता एक मिसाल है।

अब वक्त है, कि सड़क सिर्फ गाड़ियों की नहीं, बल्कि इंसानों की भी हो।

हर शहर – हर गली – हर रास्ता बोलेः चलो, बेखौफ चलो।

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विवेक कुमार जैन
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