हिंदू विवाह अनुबंध नहीं जिसे सहमति से भंग किया जा सके – हाईकोर्ट

उच्च न्यायालय मुख्य सुर्खियां
अदालत किसी पक्षकार को अपने मूल बयान पर कायम रहने का दबाव नहीं डाल सकती
बदली परिस्थितियों में सहमति वापस लेने के बाद सहमति से विवाह भंग का आदेश अवैध करार ,विवाह विच्छेद की डिक्री रद्द
नये सिरे से आदेश पारित करने का निर्देश

आगरा / प्रयागराज 17 सितंबर

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि हिंदू विवाह अनुबंध नहीं है जिसे सहमति से भंग किया जा सके। कानूनी प्रक्रिया के तहत ही सीमित आधारों पर हिंदू विवाह भंग या समाप्त किया जा सकता है।

कोर्ट ने कहा यदि दोनों में से किसी पर नपुंसकता का आरोप है तो अदालत साक्ष्य लेकर विवाह को शून्य घोषित कर सकती थी किन्तु इस मामले में अदालत ने इसकी उपेक्षा की।

कोर्ट ने कहा विवाह विच्छेद वाद दायर होने के बाद तीन साल केस लंबित रहा । पत्नी ने अपने पहले लिखित कथन में विवाह विच्छेद पर सहमति जताई। इसके बाद मिडिएशन विफल होने और दूसरा बच्चा पैदा होने से परिस्थितियों में बदलाव के कारण पत्नी ने दूसरा लिखित कथन दाखिल कर विवाह विच्छेद की सहमति वापस ले ली।

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अदालत को पति की आपत्ति व जवाब सुनकर गुण-दोष पर वाद तय करना चाहिए था। अदालत ने पत्नी के दूसरे लिखित कथन पर पति की आपत्ति की सुनवाई की तिथि तय की और विवाह विच्छेद की डिक्री पारित कर गलती की है।

कोर्ट ने अपर जिला जज बुलंदशहर के 30 मार्च 11 के आदेश व विवाह विच्छेद की डिक्री रद कर दी है और अधीनस्थ अदालत को विवाह बनाये रखने का मिडिएशन विफल होने की दशा में नियमानुसार नये सिरे से पत्नी के दूसरे जवाब पर पति का जवाब लेकर आदेश पारित करने का निर्देश दिया है।

यह आदेश न्यायमूर्ति एस.डी. सिंह तथा न्यायमूर्ति डोनादी रमेश की खंडपीठ ने श्रीमती पिंकी की अपील को स्वीकार करते हुए दिया है।

अपील पर अधिवक्ता महेश शर्मा ने बहस की। मालूम हो कि अपीलार्थी की शादी पुष्पेंद्र कुमार के साथ 2फरवरी 2006मे हुई। पति सैनिक था।पेट में बच्चा था तो पत्नी 31दिसंबर 2007 को अपने मायके आ गई।

लेकिन पति ने 11फरवरी 2008 को विवाह विच्छेद का वाद दायर किया। पत्नी ने भी सहमति जताई कहा पति की पाबंदी के साथ नहीं रहना चाहती।केस लंबित रहा।

मिडिएशन का प्रयास सफल नहीं हुआ। इसी बीच एक बच्चा और पैदा हुआ तो पत्नी ने यह कहते हुए विवाह विच्छेद की सहमति वापस ले ली कि साबित हो गया कि वह बच्चा पैदा कर सकती है, दूसरा जवाब दाखिल किया।

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पति ने दूसरे जवाब पर आपत्ति की। जिसकी सुनवाई की तिथि तय हुई किन्तु अदालत ने विवाह विच्छेद की डिक्री पारित कर दी। जिसे अपील में चुनौती दी गई थी।

कोर्ट ने कहा कि

विपक्षी विवाह विच्छेद के आधार साबित नहीं कर सका है परिस्थितियां बदलीं पत्नी ने दाखिल पहले जवाब का समर्थन न कर दूसरा जवाब दाखिल किया।जिसपर अदालत ने विचार नहीं किया। जिस समय सहमति से अदालत ने‌ विवाह विच्छेद का आदेश दिया, पत्नी की सहमति मौजूद नहीं थी। ऐसे में सहमति पर विवाह भंग नहीं किया जा सकता था। निचली अदालत को पक्षकार को अपने मूल बयान पर कायम रहने के लिए बाध्य करने का अधिकार नहीं है। अदालत ने गलती की है।

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मनीष वर्मा
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