आगरा /प्रयागराज 22 अक्टूबर ।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वर्ष 2009 के एक कथित बलात्कार मामले में चार आरोपियों को सत्र अदालत से बरी करने के फैसले के खिलाफ अपील खारिज कर दी है और ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा है।
कोर्ट ने कहा पीड़िता की सहमति के साक्ष्य मौजूद हैं। मेडिकल जांच में भी यौन उत्पीड़न के आरोप की पुष्टि नहीं हो सकी हैं। साथ ही एफआईआर दर्ज करने में 15 दिन की देरी का कारण स्पष्ट नहीं है। मालूम हो कि पीड़िता 25-26 दिन आरोपी के साथ रही लेकिन उसने अपने बचाव के लिए किसी से मदद नहीं मांगी।
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न्यायमूर्ति राजीव गुप्ता और न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्र की खंडपीठ ने राज्य सरकार की अपील खारिज कर दी।
कानपुर देहात थाने में 22 अप्रैल 2009 को नाबालिग बेटी के साथ दुष्कर्म व अपहरण की एफआईआर दर्ज करायी गई। आरोप लगाया कि 7 अप्रैल 2009 को आरोपी बलवान सिंह, अखिलेश, सिया राम और विमल चंद्र तिवारी ने उसकी बेटी का अपहरण किया।
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पुलिस ने पीड़िता को 3 मई 2009 को आरोपी बलवान सिंह के साथ बरामद कर लिया। ट्रायल कोर्ट ने सबूतों के आधार पर पाया कि पीड़िता बालिग है। उसने आरोपी के साथ अपनी मर्जी से अपना घर छोड़ दिया था। मदद मांगने का अवसर मिलने के बावजूद उसने किसी से मदद नहीं मांगी। ऐसे में अपहरण की बात उचित नहीं लगती।
इससे साबित हुआ कि वह स्वेच्छा से आरोपी के साथ गई थी। उसकी इच्छा के विरुद्ध संबंध बनाए गए यह भी साबित नहीं होता है। आरोपियों को आरोपों से बरी कर दिया गया। राज्य ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी ।
खंडपीठ ने मामले के तथ्यों की जांच की, तो पाया कि घटना के 15 दिन बाद एफआईआर दर्ज की गई थी और अभियोजन पक्ष ने इस देरी का उचित कारण नहीं बताया।
अदालत ने आगे कहा कि पीड़िता अपनी गवाही के अनुसार 25-26 दिनों तक आरोपी बलवान के साथ रही। फिर भी उसने यात्रा के दौरान राहगीरों से सहायता मांगने के लिए कभी भी कोशिश नहीं की।
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मेडिको-लीगल जांच रिपोर्ट यौन उत्पीड़न के आरोपों की पुष्टि नहीं करते। अदालत ने ट्रायल कोर्ट के फैसले पर संदेह करने का कोई कारण नहीं पाते हुए राज्य की अपील को खारिज कर दिया।
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