आगरा/प्रयागराज: २५ जुलाई ।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने चिकित्सा में लापरवाही के एक मामले में सख्त टिप्पणी करते हुए कहा है कि निजी अस्पताल और नर्सिंग होम मरीजों को पैसे निकालने के लिए ‘एटीएम’ की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं। कोर्ट ने सर्जरी में देरी के आरोपी एक डॉक्टर की याचिका खारिज कर दी है, जिसमें उसने अपने खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले को रद्द करने की मांग की थी।
न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार ने कहा कि एक डॉक्टर को अपना पेशा ईमानदारी और सावधानी से निभाना चाहिए। उन्होंने उन डॉक्टरों की आलोचना की, जो बिना उचित सुविधाओं और बुनियादी ढांचे के नर्सिंग होम चला रहे हैं और मरीजों को सिर्फ पैसा कमाने के लिए लुभाते हैं।
क्या था मामला ?
यह मामला 2007 का है, जिसमें एक गर्भवती महिला को देवरिया में डॉ. अशोक कुमार राय के नर्सिंग होम में भर्ती कराया गया था। महिला के परिवार ने सुबह 11 बजे सिजेरियन सर्जरी के लिए सहमति दी थी, लेकिन कथित तौर पर सर्जरी शाम 5:30 बजे की गई।
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इस देरी के कारण भ्रूण की मौत हो गई। इसके बाद, जब परिवार ने विरोध किया, तो डॉक्टर के कर्मचारियों ने कथित तौर पर उनके साथ मारपीट की और अतिरिक्त पैसे भी मांगे।
डॉक्टर ने अपनी याचिका में तर्क दिया था कि उसके खिलाफ कोई चिकित्सकीय लापरवाही साबित नहीं हुई है। हालांकि, शिकायतकर्ता के वकील ने बताया कि डॉक्टर के नर्सिंग होम में एनेस्थेटिस्ट नहीं था, जिसके कारण सर्जरी में देरी हुई। मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट पर भी सवाल उठाए गए, क्योंकि उसमें महत्वपूर्ण दस्तावेज शामिल नहीं थे।
कोर्ट का फैसला:
कोर्ट ने पाया कि डॉक्टर ने सर्जरी के लिए सहमति लेने के बाद भी 4-5 घंटे की देरी की, जिसे वह सही साबित नहीं कर पाए। कोर्ट ने कहा कि यह लापरवाही का एक स्पष्ट मामला है, जहां डॉक्टर ने मरीज को भर्ती तो कर लिया, लेकिन उनके पास ऑपरेशन करने के लिए जरूरी डॉक्टर (एनेस्थेटिस्ट) नहीं था।
अदालत ने कहा कि डॉक्टरों को तभी सुरक्षा मिलनी चाहिए जब उन्होंने अपना कर्तव्य कुशलतापूर्वक निभाया हो। यदि डॉक्टर द्वारा सामान्य देखभाल नहीं की जाती है, तो आपराधिक दायित्व बनता है।
कोर्ट ने डॉक्टर अशोक कुमार राय की याचिका खारिज करते हुए कहा कि उनके खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले को सबूत पेश करने के बाद ही देखा जाना चाहिए। यह फैसला निजी स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में लापरवाही के बढ़ते मामलों पर एक महत्वपूर्ण टिप्पणी है।
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