आखिर क्या था वो रहस्य ? जिसके कारण कलकत्ता उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश बन गए तंत्र साधक और तंत्र शास्त्र के विश्व प्रसिद्ध लेखक ? ? ?

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इस रहस्य से पर्दा उठा रहें है ज्योतिषी प्रमोद गौतम….

आगरा 29 सितंबर।

आगरा के प्रसिद्ध वैदिक सूत्रम के चेयरमैन एवम “द टाइम्स ऑफ एस्ट्रोलॉजी” के संस्थापक एवम प्रधान सम्पादक पंडित प्रमोद गौतम ने कलकत्ता के एक पूर्व न्यायाधीश के जीवन के महत्त्वपूर्ण घटनाक्रम के संदर्भ में राज खोलते हुए बताया कि आखिर कलकत्ता उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश सर जॉन जॉर्ज वुडरोफ कैसे बन गए एक तंत्र साधक और तंत्र शास्त्र लेखक ?

आखिर ऐसा क्या घटा उनके जीवन में कि उनकी लिखी तंत्र शास्त्र की पुस्तकें अंग्रेजी में लिखी गई सबसे प्रामाणिक और विश्वसनीय साबित हुई है ?

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पंडित गौतम ने बताया इस भौतिक मायावी संसार में हममें से बहुत से व्यक्ति उच्च पदों पर पहुंचने के बाद भी आध्यात्मिक परिवर्तन चाहते हैं। लेकिन बहुत कम लोग उस परिवर्तन की ओर यात्रा करते हैं। यात्रा और व्यक्ति के आधार पर, पौराणिक शास्त्रों ने चुने हुए मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए अलग-अलग पद्धतियाँ अर्थात (तकनीकें) दी हैं।

आध्यात्मिक यात्रा के लिए सबसे प्रभावी मार्गों में से एक तंत्र अभ्यास (साधना) है। जिसके माध्यम से व्यक्ति आत्म साक्षात्कार कर आध्यात्मिक क्षेत्र की गहराई में जाकर वास्तविक मोक्ष प्राप्ति की तरफ स्वतः ही अग्रसर होने लगता है। तंत्र साधना में आध्यात्मिकता के एक निश्चित स्तर को प्राप्त करने की तकनीकों को पूर्ण करने के लिए साधक को वर्षों तक अभ्यास करना पड़ता है ।

हमनें शायद ही कभी किसी विदेशी नागरिक को, खासकर किसी उच्च न्यायालय के वर्तमान न्यायाधीश को भारत में इस तरह की यात्रा करते हुए पाया हैं। कलकत्ता उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश सर जॉन जॉर्ज वुडरोफ ऐसे ही एक प्रतिष्ठित साधक एवम उपासक हैं। पूर्व न्यायाधीश ने न केवल संस्कृत सीखी, बल्कि तंत्र साधना को भी सम्पूर्ण किया, संस्कृत ग्रंथों का अंग्रेजी में अनुवाद किया और कुंडलिनी योग और तंत्र साधना के विभिन्न सैद्धांतिक और व्यावहारिक पहलुओं पर प्रामाणिक टिप्पणियां और पुस्तकें लिखीं।

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15 दिसंबर, 1865 को जन्मे जॉन वुडरोफ़ ने वोबर्न पार्क स्कूल और यूनिवर्सिटी कॉलेज, ऑक्सफ़ोर्ड से शिक्षा प्राप्त की, जहाँ उन्होंने न्याय शास्त्र में स्नातक की उपाधि प्राप्त की और सिविल लॉ की परीक्षा उत्तीर्ण की।1890 में वे भारत आ गए और कलकत्ता उच्च न्यायालय में एक वकील के रूप में नामांकित हुए। उन्हें जल्द ही कलकत्ता विश्वविद्यालय का फैलो बना दिया गया और वहाँ उन्हें कानून का प्रोफेसर भी नियुक्त किया गया। बाद में उन्हें 1902 में भारत सरकार का स्थायी वकील नियुक्त किया गया और दो साल बाद उन्हें कलकत्ता में उच्च न्यायालय की बेंच में पदोन्नत किया गया।

कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान वुडरोफ़ तंत्र साधना में रुचि रखने लगे और बाद में उन्होंने इस विषय पर कई ग्रंथों के अनुवाद और लेखन में तल्लीनता दिखाई। वे तंत्र साधना में कैसे दीक्षित हुए यह भी बहुत रोचक है। प्रतिदिन की तरह न्यायालयों में काम चल रहा था जज वुडरोफ अपने न्यायालय में थे और उन्हें एक महत्वपूर्ण मामले में निर्णय सुनाना था, जो उनके न्यायिक कौशल के कारण आसानी से निर्णित किया जा सकता था।

हालाँकि, जब उन्होंने निर्णय सुनाने की कोशिश की, तो उन्हें लगा कि उनका दिमाग बहुत ज़्यादा भ्रमित है और वे ठीक से निर्णय सुनाने में असमर्थ हैं। पूछताछ करने पर, उन्होंने पाया कि उस मुकदमे के एक पक्ष ने एक तांत्रिक साधक को अपनी तरफ से शामिल किया था जो उनके न्यायालय अर्थात कक्ष से बाहर था और अपनी साधना से उसने जज वुडरोफ़ के दिमाग को भ्रमित कर दिया था, जिससे वे मामले का निर्णय लेने में असमर्थ हो गए। जैसे ही वुडरोफ़ को इसकी जानकारी हुई उन्होंने तंत्र साधक को अपने कर्मचारियों से कहकर बाहर

दौड़ाया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। इससे वुडरोफ़ को तंत्र साधकों की क्षमताओं के बारे में जिज्ञासा हुई।

इस तरह की साधना तंत्र साधना में अभिचार की श्रेणी में आती है और इसे स्तंभन के रूप में जाना जाता है।

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वुडरोफ की जिज्ञासा बढ़ने लगी और उनको तंत्र साधना को सीखने और गहराई से समझने की इच्छा पैदा हुई। साधना के पहलुओं को समझने के लिए वुडरोफ़ ने बहुत से लोगों के साथ जानकारी प्राप्त की तब उनको तंत्र (विशेष रूप से शाक्त तंत्र ) और कुंडलिनी योग शक्ति की गहराई का पता चला।

जब उन्होंने इस संबध में उपलब्ध साहित्य का अध्ययन करने का प्रयास किया तो पाया कि अधिकांश ग्रंथ संस्कृत में लिखे गए थे, तो उन्होंने संस्कृत भाषा सीखने के लिए प्रयास प्रारंभ किए ताकि वे स्वयं ग्रंथों को पढ़ सकें।

वुडरोफ़ ने किताबें और अनुवाद लिखने के लिए उप-नाम के रूप में आर्थर एवलॉन नाम चुना। ‘तंत्र-शास्त्र का परिचय’ नामक पुस्तक, तंत्र शास्त्र की मूल बातें और आधारभूत सिद्धांतों को समझने के लिए शुरुआती लोगों के लिए आज भी अग्रणी पुस्तकों में से एक है।

उन्होंने आगे ‘द सर्पेंट पावर’, ‘द गारलैंड ऑफ़ लेटर्स’, ‘प्रिंसिपल्स ऑफ़ तंत्र’, ‘शक्ति और शक्ति’, ‘द वर्ल्ड ऐज़ पावर’ और ‘द ग्रेट लिबरेशन- महा-निर्वाण तंत्र’ जैसी अन्य पुस्तकें भी लिखीं। वुडरोफ ने इसके साथ ही तांत्रिक साधना में दीक्षा भी ली और विभिन्न गुरुओं के तत्वावधान में एक उल्लेखनीय साधक बन गए, जिनमें प्रसिद्ध लाहिड़ी महाशय भी शामिल थे, जिन्होंने उन्हें क्रिया योग के अभ्यास में दीक्षित किया ।

पंडित गौतम ने बताया तंत्र साधना में लिंग, जाति या पंथ आदि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाता। बल्कि यह हमें बताता है कि पुरुष और महिला केवल प्रतिशत का मामला है और कोई भी व्यक्ति तंत्र साधना का अभ्यास कर सकता है और गुरु बन सकता है। इसने वुडरोफ़ को उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए तंत्र साधना के आध्यात्मिक क्षेत्र में प्रवेश करने में सक्षम बनाया।

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कुंडलिनी योग और तंत्र साधना पर वुडरोफ़ की लेखन कला न केवल जटिल सिद्धांतों का सरलीकृत संस्करण प्रस्तुत करते हैं, बल्कि एक उत्साही व्यक्ति को उस मार्ग पर अंतर्दृष्टि भी प्रदान करते हैं जिसे उसे चुनना चाहिए। “आर्थर एवलॉन” के छद्म नाम से वुडरोफ़ द्वारा लिखी गई पुस्तकें तंत्र साधना के प्रति उत्साही लोगों के लिए अंग्रेजी में लिखी गई सबसे भरोसेमंद पुस्तकें हैं। “इंट्रोडक्शन टू तंत्र शास्त्र “, “द सर्पेंट पावर” , ‘प्रिंसिपल्स ऑफ़ तंत्र शक्ति”, “शक्ति एंड सक्ता”, “द गारलैंड ऑफ लैटर्स” ,”द वर्ल्ड एज पावर” और “द ग्रेट लिबरेशन महानिर्वाणा तंत्र ” जैसी किताबें भी लिखी।

वह शायद उच्च न्यायालय के एकमात्र अंग्रेज न्यायाधीश हैं जो तंत्र साधना ग्रंथों के क्षेत्र में एक अग्रणी नाम बन गए।

पंडित प्रमोद गौतम ने अपने 25 वर्षों के ज्योतिषीय क्षेत्र के अनुभवों के आधार पर बताते हुए कहा कि कलकत्ता उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश सर जॉन जॉर्ज वुडरोफ एक रहस्यमयी घटनाक्रम से प्रभावित होकर वह तंत्र के साधक कैसे बन गए इसके पीछे उनकी जो भी जन्मकुंडली रही हो, उसमें देवगुरु बृहस्पति एवम शनि ग्रह की उच्च अवस्था एक महत्वपूर्ण रहस्यमयी भूमिका अदा करती है।

क्योंकि वैदिक हिन्दू ज्योतिष एवम तंत्र साधना के ये दोनों कारक ग्रह हैं, जब ये दोनों ग्रह किसी भी व्यक्ति की जन्मकुंडली में जिसमें देवगुरु बृहस्पति अपनी उच्च राशि कर्क में या अपनी स्वराशि धनु एवम मीन का मार्गी अवस्था में स्थित होकर ब्रह्मांड के न्यायाधीश शनि ग्रह के साथ एक साथ युति बनाकर जन्मकुंडली के शुभ भावों प्रथम, चतुर्थ, पंचम, नवम, एवम दशम भाव में स्थित हो, तब व्यक्ति उपरोक्त दोनों ग्रहों में से उसके जीवन में किसी भी ग्रह की महादशा अवधि चलने पर ऐसा व्यक्ति आध्यात्मिक पथ की गहराइयों को समझने निकल पड़ता है।

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चाहे वो कितने बड़े उच्च पद पर ही क्यों न विराजमान हो, इसका एक उदाहरण भारत के पूर्व महामहिम राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम हैं क्योंकि वो एक पेशे से वैज्ञानिक थे लेकिन धर्म की आध्यात्मिक गहराइयों को समझने की उनमें अदभुत क्षमता भी मौजूद थी, ये बात सार्वजनिक रूप से जगजाहिर है, क्योंकि उनकी जन्मकुंडली में देवगुरु बृहस्पति ग्रह जन्मकुंडली के शुभ भाव में अपनी उच्च राशि कर्क में मौजूद था।

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विवेक कुमार जैन
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