कोर्ट ने कहा यह कानून का सुस्थापित सिद्धांत है कि जहां सरकारी विभाग की कार्रवाई से पीड़ित कोई नागरिक अदालत जाता है और अपने पक्ष में कानून की घोषणा प्राप्त करता है, वहीं समान स्थिति वाले अन्य लोगों को भी अदालत जाने की आवश्यकता के बिना दिया जाना चाहिए लाभ
आगरा /नई दिल्ली 10 दिसंबर ।
सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि व्यक्तियों को उसी राहत के लिए अलग से मुकदमा करने की जरूरत नहीं है, जो सरकारी विभाग की कार्रवाई के खिलाफ समान स्थिति वाले अन्य व्यक्तियों को मिली थी। यह कहते हुए उन्होंने महिला सैन्य अधिकारी को स्थायी कमीशन देने का निर्देश देते हुए राहत प्रदान की ।
लेफ्टिनेंट कर्नल सुप्रिता चंदेल बनाम भारत संघ और अन्य मामले में सुनवाई करते हुए अदालत ने कहा कि समान स्थिति वाले व्यक्तियों को दी गई राहतें स्वचालित रूप से उन व्यक्तियों को भी मिल जाएंगी जिन्होंने अपने मामले नहीं लड़े हैं। उन्हें इसके लिए अदालत आने की आवश्यकता नहीं होगी ।
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की खंडपीठ ने कहा,
“यह कानून का सुस्थापित सिद्धांत है कि जहां सरकारी विभाग की कार्रवाई से पीड़ित कोई नागरिक अदालत जाता है और अपने पक्ष में कानून की घोषणा प्राप्त करता है, वहीं समान स्थिति वाले अन्य लोगों को भी अदालत जाने की आवश्यकता के बिना लाभ दिया जाना चाहिए।”
न्यायालय ने कहा,
“इसमें कोई संदेह नहीं कि ऐसे अपवादात्मक मामलों में जहां न्यायालय ने उन लोगों को लाभ देने पर स्पष्ट रूप से रोक लगाई, जिन्होंने तब तक न्यायालय का दरवाजा नहीं खटखटाया है या ऐसे मामलों में, जहां व्यक्तिगत शिकायत का निवारण किया गया है, मामला अलग आयाम प्राप्त कर सकता है, और विभाग द्वारा उक्त निर्णय के लाभ के विस्तार का दावा करने वाले व्यक्ति को राहत देने से इनकार करना उचित हो सकता है।”
2008 में आर्मी डेंटल कोर में शॉर्ट-सर्विस कमीशन अधिकारी अपीलकर्ता ने अन्य समान स्थिति वाले अधिकारियों के साथ समानता का दावा किया, जिन्हें स्थायी कमीशन दिया गया। कमीशन प्राप्त करने के लिए उनके पास तीन मौके थे। हालांकि, मूल नीति में 2013 में संशोधन के बाद अपीलकर्ता को स्थायी कमीशन के लिए तीसरा अवसर नहीं दिया गया, जो समान स्थिति वाले अन्य अधिकारियों को दिया गया।
सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (ए एफ टी ) ने अन्य आवेदकों को एक बार आयु में छूट देकर राहत प्रदान की। हालांकि, अपीलकर्ता को लाभ देने से मना कर दिया गया, क्योंकि वह व्यक्तिगत कठिनाइयों के कारण मूल मामले में पक्षकार नहीं थी।
ए एफ टी के आदेश को दरकिनार करते हुए जस्टिस विश्वनाथन द्वारा लिखित निर्णय में कहा गया कि जब ए एफ टी द्वारा अन्य समान स्थिति वाले अधिकारियों को राहत प्रदान की गई तो अपीलकर्ता के लिए अलग से अपना मामला दायर करना आवश्यक नहीं था।
न्यायालय ने कहा कि ए एफ टी द्वारा अन्य समान स्थिति वाले अधिकारियों को स्थायी कमीशन प्रदान करने के निर्णय का लाभ अपीलकर्ता को भी मिलना चाहिए, बिना उसे उसी मुद्दे पर अलग से अपना मामला दायर करने के लिए बाध्य किए।
समर्थन में न्यायालय ने अमृत लाल बेरी बनाम कलेक्टर ऑफ सेंट्रल एक्साइज, नई दिल्ली और अन्य (1975) और के.आई. शेफर्ड और अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य (1987) के मामलों का उल्लेख करते हुए कहा कि उन व्यक्तियों को दंडित करना स्वीकार्य नहीं होगा, जिन्होंने अपने मामले को आगे बढ़ाने के लिए न्यायालय का दरवाजा नहीं खटखटाया, जबकि अन्य समान स्थिति वाले व्यक्तियों ने उनके पक्ष में राहत प्राप्त कर ली। वही लाभ गैर-मुकदमेबाजी करने वाले व्यक्तियों को भी दिए जाने चाहिए।
तदनुसार, अपील को अनुमति दी गई तथा समान स्थिति वाले अन्य अधिकारियों को दिए गए लाभ अपीलकर्ता को भी दिए गए।
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साभार: लाइव लॉ
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