आजीवन कारावास की सजा काट रहे स्वामी श्रद्धानंद अपनी दया याचिका पर शीघ्र निर्णय के लिए पहुँचे सुप्रीम कोर्ट

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अपनी पत्नी की हत्या के लिए दोषी ठहराए जाने के बाद लगभग 30 वर्षों से जेल में बंद हैं स्वामी श्रद्धानंद

आगरा /नई दिल्ली 26 जनवरी ।

अपनी पत्नी के हत्या के जुर्म में आजीवन कारावास की सजा काट रहे अस्सी वर्षीय स्वामी श्रद्धानंद उर्फ मुरली मनोहर मिश्रा ने अपनी दया याचिका पर शीघ्र निर्णय के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है ।

स्वामी श्रद्धानंद अपनी पत्नी शाकेरेह खलीली (मैसूर के दीवान सर मिर्जा इस्माइल की पोती) की हत्या के लिए दोषी ठहराए जाने के बाद लगभग 30 वर्षों से जेल में बंद हैं।

जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की खंडपीठ के समक्ष यह मामला 24 जनवरी को सूचीबद्ध किया गया, जिसने एडिशनल सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज (केंद्र की ओर से) के अनुरोध पर इसे स्थगित कर दिया और उन्हें निर्देश प्राप्त करने के लिए 2 सप्ताह का समय दिया।

स्वामी श्रद्धानंद की ओर से एडवोकेट वरुण ठाकुर पेश हुए और उन्होंने तर्क दिया कि स्वयंभू धर्मगुरु 30 वर्षों से अधिक समय से एक भी दिन पैरोल के बिना लगातार जेल में हैं। उन्होंने आगे आग्रह किया कि श्रद्धानंद विभिन्न बीमारियों से पीड़ित हैं। वर्तमान याचिका इसलिए दायर की गई, जिससे दया याचिका पर जल्द से जल्द निर्णय लिया जा सके।

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जस्टिस गवई ने जब यह टिप्पणी की कि यह न्यायालय के समक्ष श्रद्धानंद की 7 वीं या 8 वीं याचिका है तो ठाकुर ने स्पष्ट किया कि ऐसा नहीं है। उन्होंने पहले दायर याचिकाओं का विवरण दिया।

इनमें शामिल हैं –

(i) श्रद्धानंद को आजीवन कारावास (बिना किसी छूट के) देने वाले फैसले पर पुनर्विचार के लिए दायर की गई पुनर्विचार याचिका।

(ii) 2014 में पैरोल और अमेजन प्राइम की डॉक्यूसीरीज ‘डांसिंग ऑन द ग्रेव’ (खलीली की हत्या से संबंधित) पर रोक लगाने की मांग करने वाली रिट याचिका, जिस पर विचार नहीं किया गया। अंततः उसे वापस ले लिया गया।

(iii) पैरोल की मांग करने वाली अन्य रिट याचिका जिसे सितंबर, 2024 में खारिज कर दिया गया।

ऊपर उल्लिखित कार्यवाही में से एक के दौरान, सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया गया कि श्रद्धानंद ने संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत भारत के राष्ट्रपति के समक्ष क्षमा के लिए अभ्यावेदन किया।

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वकील की बात सुनने के बाद जस्टिस गवई ने टिप्पणी की,

“आपको (श्रद्धानंद) इस न्यायालय को धन्यवाद देना चाहिए कि उस समय आप बच गए।”

न्यायाधीश ने यह भी कहा कि श्रद्धानंद का मामला ही “मध्य मार्ग कानून” का मूल था – यानी बिना किसी छूट के आजीवन कारावास से लेकर मृत्यु तक की सजा (पारंपरिक आजीवन कारावास और मृत्यु दंड के बीच का एक मध्य मार्ग)।

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साभार: लाइव लॉ

विवेक कुमार जैन
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