आगरा / नई दिल्ली 27 सितंबर।
सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार द्वारा आयुर्वेदिक डॉक्टरों के साथ किए गए ‘सौतेले व्यवहार’ पर नाराजगी जताई, क्योंकि हाईकोर्ट के आदेश के बाद बहाल किए गए डॉक्टरों का वेतन जारी करने में 5 महीने की देरी की गई।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच राजस्थान राज्य द्वारा राजस्थान हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें आयुर्वेदिक डॉक्टरों को एलोपैथिक डॉक्टरों के बराबर बढ़ी हुई सेवानिवृत्ति देने का निर्देश दिया गया था।
डॉक्टरों के वकील ने बताया कि हाईकोर्ट के आदेश के बाद आयुर्वेदिक डॉक्टरों को बहाल कर दिया गया, लेकिन उन्हें पिछले 5 महीने से वेतन नहीं मिला है।
आयुर्वेदिक डॉक्टरों के वेतन जारी करने में देरी को गंभीरता से लेते हुए सीजेआई ने टिप्पणी की,
“वे सभी डॉक्टर के रूप में काम कर रहे हैं, आयुर्वेद (डॉक्टरों) के साथ यह सौतेला व्यवहार क्यों है? आपने आयुर्वेदिक डॉक्टरों का वेतन क्यों नहीं जारी किया?”
पीठ ने राज्य सरकार को प्रतिवादियों और सभी समान पदों पर कार्यरत डॉक्टरों का वेतन एक सप्ताह के भीतर जारी करने का निर्देश दिया, क्योंकि हाईकोर्ट के आदेश के क्रियान्वयन पर कोई रोक नहीं थी।
“पिछले 5 महीनों में प्रतिवादियों को हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद उनका वेतन नहीं दिया गया। हम स्पष्ट करते हैं कि हाईकोर्ट के निर्णय के अवलोकन पर कोई रोक नहीं है। यदि वेतन के लिए बकाया राशि का भुगतान नहीं किया गया तो उन्हें न केवल प्रतिवादियों के मामले में बल्कि सभी समान पदों पर कार्यरत डॉक्टरों के मामले में एक सप्ताह की अवधि के भीतर चुकाया जाना चाहिए।”
अदालत ने पहले भी इसी तरह के एक मामले में नोटिस जारी किया था।
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पीठ ने वकीलों से कहा कि वे कानून के एक ही प्रश्न से उत्पन्न होने वाले ऐसे सभी मामलों की सूची तैयार करें – क्या आयुर्वेदिक डॉक्टरों की रिटायरमेंट की आयु एलोपैथिक डॉक्टरों के समान होनी चाहिए।
केस टाइटल: राजस्थान राज्य और अन्य बनाम प्यारे लाल मीना और अन्य।
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साभार: लाइव लॉ
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