सुप्रीम कोर्ट ने 100% दिव्यांगता वाले दावेदार को दर्द और पीड़ा के लिए 15 लाख रुपये का मोटर दुर्घटना मुआवजा दिया

उच्चतम न्यायालय मुख्य सुर्खियां
अपीलकर्ता ने 10 लाख रुपये की प्रार्थना की थी लेकिन अदालत ने उसका मुआवजा बढ़ाकर पंद्रह लाख किया

आगरा/नई दिल्ली 24 नवंबर ।

मोटर दुर्घटना में घायल हुए एक व्यक्ति के मामले से निपटते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में दर्द और पीड़ा (मोटर दुर्घटना पीड़ितों को मुआवजा देने के लिए दिए जाने वाले मदों में से एक) पर न्यायशास्त्र का विश्लेषण किया और दिए जाने वाले मुआवजे की राशि को प्रार्थना की गई राशि से अधिक बढ़ा कर दिया है।

जस्टिस सीटी रविकुमार और जस्टिस संजय करोल की पीठ ने घायल अपीलकर्ता की अपील को स्वीकार करते हुए दर्द और पीड़ा मद के तहत 15 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया भले ही अपीलकर्ता ने 10 लाख रुपये की प्रार्थना की थी।

“उपर्युक्त संदर्भित निर्णयों, लगी चोटों, उत्पन्न ‘दर्द और पीड़ा’ तथा दावेदार-अपीलकर्ता को आजीवन दिव्यांगता की प्रकृति, तथा ऊपर पुनरुत्पादित डॉक्टर के कथन को ध्यान में रखते हुए हम दावेदार अपीलकर्ता के अनुरोध को न्यायोचित पाते हैं। इस प्रकार ‘दर्द और पीड़ा टाइटल के अंतर्गत 15,00,000/- रुपए का अवार्ड देते हैं। इस तथ्य को पूरी तरह से जानते हुए कि दावेदार/अपीलकर्ता ने मुआवजे में 10,00,000/- रुपए की वृद्धि के लिए प्रार्थना की थी, हम इस प्रकार प्रदान की गई राशि पर मुआवजे को न्यायसंगत और उचित पाते हैं।”

Also Read – सुप्रीम कोर्ट ने आरजी कर प्रदर्शनकारियों द्वारा हिरासत में यातना के आरोपों की जांच के लिए गठित किया विशेष जाँच दल

विभिन्न विषयों (जैव नैतिकता, चिकित्सा नैतिकता, मनो-ऑन्कोलॉजी, एनेस्थिसियोलॉजी, दर्शन, समाजशास्त्र) में न्यायिक मिसालों और अन्य विद्वानों की सामग्री के ढेरों को देखते हुए न्यायालय ने समानता पाई कि लगातार पीड़ा के कारण व्यक्ति की खुद के बारे में समझ हिल जाती है या समझौता कर लेती है।

“वर्तमान तथ्यों में यह निर्विवाद है कि जीवन में कुछ अपूरणीय रूप से गलत होने की भावना, जैसा कि फ्रैंक (सुप्रा) ने कहा है, भेद्यता और व्यर्थता, जैसा कि एडगर ने कहा, मौजूद है और ऐसी भावना उसके प्राकृतिक जीवन के शेष समय में मौजूद रहेगी।”

मामले के तथ्यों को संक्षेप में बताने के लिए अपीलकर्ता अपनी कंपनी के वाहन में यात्रा कर रहा था, जब उसकी टक्कर लापरवाही से चलाए जा रहे कंटेनर लॉरी से हो गई।

उसे 90% स्थायी दिव्यांगता का सामना करना पड़ा। मोटर दुर्घटना दावा ट्रिब्यूनल ने अपीलकर्ता की कार्यात्मक अक्षमता को 100% माना और बीमा कंपनी को 6% वार्षिक ब्याज (1,00,000/-  रुपये के भविष्य के मेडिकल व्यय को छोड़कर) के साथ 58,09,930/- रुपये का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी ठहराया।

Also Read – सुप्रीम कोर्ट ने संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों को चुनौती देने वाली याचिका की खारिज

एम ए सी टी के आदेश से व्यथित होकर अपीलकर्ता और बीमा कंपनी दोनों ने कर्नाटक हाईकोर्ट में अपील की। हाईकोर्ट ने मुआवजे की राशि को 58,09,930/- रुपये से बढ़ाकर 78,16,390/- रुपये कर दिया।

हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए अपीलकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और भविष्य के मेडिकल व्यय, भविष्य की संभावनाओं और दर्द और पीड़ा के शीर्षकों के तहत दिए गए मुआवजे में वृद्धि की मांग की।

सुप्रीम कोर्ट ने दो बिंदुओं भविष्य की संभावनाओं और’दर्द और पीड़ा पर मुआवजे के अवार्ड को संशोधित किया। अपीलकर्ता को भुगतान की जाने वाली कुल राशि 1,02,29,241/- रुपये मानी गई।

दर्द और पीड़ा टाइटल के तहत मुआवज़ा बढ़ाते हुए न्यायालय ने कहा कि अपीलकर्ता को लगी चोटें गंभीर थीं। उनके जीवन पर उनका प्रभाव लंबे समय तक रहने वाला था, इस बारे में कोई विवाद नहीं था।

उन्होंने एक डॉक्टर की गवाही को ध्यान में रखा, जिसमें दर्ज किया गया था कि अपीलकर्ता व्हीलचेयर पर था, कोई काम नहीं कर सकता उसे अपने सभी दिन-प्रतिदिन के कामों के लिए मदद की ज़रूरत होगी और यह दिव्यांगता संभवतः स्थायी थी।

न्यायालय ने आगे काजल बनाम जगदीश चंद (2020) 4 एससीसी 413, आयुष बनाम रिलायंस जनरल इंश्योरेंस (2022) 7 एससीसी 738 और लालन डी. बनाम ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड (2020) 9 एससीसी 805 के फैसलों का हवाला दिया, जहां दर्द और पीड़ा टाइटल के तहत मुआवज़ा बढ़ाया गया और 3-15 लाख रुपये के बीच दिया गया था।

Also Read – दिल्ली कोर्ट ने जज को आपत्तिजनक तरीके से संबोधित करने पर ईडी के विशेष निदेशक को किया तलब

कर्नाटक एसआरटीसी बनाम महादेव शेट्टी (2003) 7 एससीसी 197 से निम्नलिखित उद्धरण भी निर्णय में उद्धृत किया गया,

“एक व्यक्ति न केवल दुर्घटना के कारण चोटों का सामना करता है बल्कि अपने पूरे जीवन में दुर्घटना के कारण मन और शरीर में भी पीड़ा झेलता है। उसके मन में यह भावना विकसित हो जाती है कि वह अब एक सामान्य व्यक्ति नहीं रह गया। वह जीवन की सुविधाओं का आनंद नहीं ले सकता, जैसा कि कोई अन्य सामान्य व्यक्ति ले सकता है। दर्द और पीड़ा के लिए मुआवज़ा तय करते समय और सुविधाओं के नुकसान के लिए, उसकी उम्र, वैवाहिक स्थिति और उसके जीवन में उसके द्वारा उठाए गए असामान्य अभाव जैसी विशेषताओं को ध्यान में रखना होगा।”

केस टाइटल: के.एस. मुरलीधर बनाम आर. सुब्बुलक्ष्मी और अन्य

Stay Updated With Latest News Join Our WhatsApp  – Group BulletinChannel Bulletin

 

साभार: लाइव लॉ

विवेक कुमार जैन
Follow me

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *