कोर्ट ने कहा, भविष्य में रहे सतर्क और कोर्ट की गरिमा का रखें खयाल
आगरा /प्रयागराज 13 सितंबर ।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने चुनावी प्रक्रिया में वीडियोग्राफी की प्रामाणिकता, अखंडता, सुरक्षा और सत्यापन को लेकर याचिका दायर करके अदालत का कीमती समय बर्बाद करने के लिए अधिवक्ता महमूद प्राचा पर एक लाख का हर्जाना लगाया है।
कोर्ट ने प्राचा के आचरण पर भी आपत्ति जताई कि वे (वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से) कोट और बैंड पहनकर आए और अपने केस में कोर्ट को सूचित किए बिना मामले पर बहस की। वे व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हुए।
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कोर्ट ने उन्हें भविष्य में ‘सतर्क’ रहने और यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि वे न्यायालय की मर्यादा और गरिमा बनाए रखेंगे।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति शेखर बी. सराफ तथा न्यायमूर्ति मंजीव शुक्ल की खंडपीठ ने कहा कि
प्राचा ने पहले भी दिल्ली हाईकोर्ट में समान विषय पर दो याचिकाएं दायर की थीं। जिनमें उनकी संतुष्टि के अनुसार आदेश पारित किए गए थे। इसके बावजूद उन्होंने इसी तरह की राहत की मांग करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट का रुख किया।
कोर्ट ने कहा कि
कोर्ट के यह समझ से परे है कि जब उन्होंने एक ही विषय वस्तु (वर्ष 2024 के लिए उत्तर प्रदेश में 7-रामपुर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के चुनाव) के संबंध में पहली दो रिट याचिकाएं दिल्ली हाईकोर्ट में दायर करने का विकल्प चुना था, तो उन्होंने उत्तर प्रदेश राज्य के हाईकोर्ट का रुख क्यों किया।
अधिवक्ता प्राचा के कोट और बैंड पहनकर व्यक्तिगत रूप से दाखिल मामले पर बहस करने के उनके आचरण के संबंध में कोर्ट ने आश्चर्य व्यक्त किया। यह देखते हुए कि अधिवक्ता प्राचा ने बहस करने से पहले अपना बैंड नहीं उतारा था।
नियमानुसार अधिवक्ता बैड व्यक्तिगत बहस में नहीं पहना जाता। कोर्ट ने इस बात पर ज़ोर दिया कि यह व्यवहार बार के एक वरिष्ठ सदस्य के लिए अनुचित था, जिसे व्यक्तिगत रूप से बेंच को संबोधित करते समय आवश्यक बुनियादी शिष्टाचार के बारे में पता होना चाहिए।
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हाईकोर्ट ने कहा
बार के वरिष्ठ सदस्य से इस तरह के व्यवहार की उम्मीद नहीं की जाती है, जिनसे व्यक्तिगत रूप से बेंच को संबोधित करते समय पालन किए जाने वाले बुनियादी शिष्टाचार के बारे में जानकारी होने की उम्मीद की जाती है।
कोर्ट ने कहा
ध्यान देने योग्य एक और पहलू यह है कि याचिकाकर्ता ने यह याचिका एक वकील (श्री उमर जामिन) के माध्यम से दायर की थी। ऐसा करने के बाद वह अपने वकील को हटाए बिना या न्यायालय से अनुमति लिए बगैर व्यक्तिगत रूप से उपस्थित नहीं हो सकते थे।
कोर्ट ने इस तथ्य के मद्देनजर कि याचिका गलत तरीके से दायर की गई थी और इसके परिणामस्वरूप इस न्यायालय का बहुमूल्य समय नष्ट हुआ। साथ ही व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने के दौरान उनके द्वारा अपनाई गई ‘अनुचित कार्यप्रणाली ‘ के कारण, न्यायालय ने उनकी याचिका को एक लाख रुपये के हर्जाने के साथ खारिज कर दिया।
जिसे उन्हें 30 दिनों के भीतर उत्तर प्रदेश राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को भुगतान करना है।
भुगतान न करने पर राजस्व प्रक्रिया के तहत वसूली का भी आदेश दिया गया है।
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