सुप्रीम कोर्ट की सक्रियता से सड़क हादसे के घायलों को मिला जीवनदान, कैशलेस इलाज योजना हुई लागू

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 गोल्डन ऑवर में अब नहीं जाएगा कोई घायल इलाज से वंचित, केन्द्र सरकार ने लागू की ऐतिहासिक योजना
 5 मई से पूरे देश में लागू, सड़क हादसों में घायल को ₹1.5 लाख तक का मुफ्त इलाज मिलेगा
 आगरा के अधिवक्ता के0सी0 जैन की जनहित याचिका बनी जीवन रक्षक योजना

आगरा/नई दिल्ली १३ मई ।

हर सड़क दुर्घटना एक परिवार को तोड़ देती है, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा । सरकार ने सुन ली है पीड़ितों की पुकार। देशभर के सड़क हादसों में घायल होने वाले हजारों निर्दोष लोगों को आखिरकार वह अधिकार मिल गया है, जिसका इंतजार वर्षों से किया जा रहा था। गोल्डन ऑवर के दौरान बिना किसी देरी, बिना किसी खर्च के, घायल व्यक्ति को नकद रहित (कैशलेस) इलाज मिलेगा । यह सपना अब साकार हुआ है।

मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 162(2) के अंतर्गत भारत सरकार ने 5 मई 2025 को अधिसूचना जारी कर इस योजना को लागू कर दिया है। आज मंगलवार यह योजना माननीय सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत की गई, जिसके साथ केंद्र सरकार के सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय की ओर से एक शपथपत्र भी दाखिल किया गया। जिसमें सरकार ने इस ऐतिहासिक पहल के प्रति अपनी पूर्ण प्रतिबद्धता दिखाई । यह योजना कोई साधारण निर्णय नहीं, बल्कि मानव जीवन की रक्षा के लिए उठाया गया एक ऐतिहासिक और करुणामय कदम है, जो उन हजारों परिवारों को राहत देगा जो केवल समय पर इलाज न मिलने से अपनों को खो चुके हैं।

इस योजना का श्रेय जाता है आगरा के वरिष्ठ अधिवक्ता के.सी. जैन को, जिन्होंने अक्टूबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर इस योजना के क्रियान्वयन की माँग की थी। आज मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति अभय एस. ओका एवं न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयाँ की पीठ के समक्ष इसकी सुनवाई हुई। न्यायमित्र गौरव अग्रवाल की भूमिका भी इस प्रकरण में विशेष थी जिनके सकारात्मक नजरिये ने इस प्रकरण में विशेष भूमिका निभाई।

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मामले की पृष्ठभूमि  

मोटर वाहन (संशोधन) अधिनियम, 2019 में धारा 162 और 164बी को जोड़ा गया था, जिसके तहत सड़क दुर्घटना पीड़ितों को गोल्डन ऑवर के दौरान नकद रहित चिकित्सा सहायता प्रदान करने और मोटर वाहन दुर्घटना निधि स्थापित करने का प्रावधान है। यह प्रावधान 1 अप्रैल 2022 से लागू हो चुका है।किन्तु केंद्रीय सरकार की ओर से इस योजना को अधिसूचित नहीं किया गया। इसकी वजह से दुर्घटना पीड़ितों को समय पर चिकित्सा सहायता नहीं मिल पा रही थी और गोल्डन ऑवर के दौरान उपचार की अनुपलब्धता के कारण कई अनमोल जानें जा रही थीं। सड़क दुर्घटनाओं के पीड़ितों को समय पर चिकित्सा सहायता नहीं मिल पाने के कारण उनकी जान पर बन आती है। विशेषज्ञों के अनुसार, यदि गोल्डन ऑवर के दौरान पीड़ित को उचित चिकित्सा सहायता मिले, तो 50 प्रतिशत मौतों को टाला जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामला  

वरिष्ठ अधिवक्ता के0सी0 जैन ने सर्वोच्च न्यायालय में रिट याचिका संख्या 295/2012 में एक आवेदन संख्या 202442/2023 दायर किया है। यह आवेदन नकद रहित उपचार योजना को शीघ्र अधिसूचित करने की मांग की। इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 08 जनवरी 2025 को अपना आदेश पारित कर केन्द्र सरकार को यह योजना 14 मार्च 2025 तक लागू करने के लिये आदेश दिया लेकिन योजना केन्द्र सरकार द्वारा निर्धारित तिथि तक नहीं लागू की जा सकी ।

इस पर नाराज होकर न्यायालय ने सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के सचिव को 28  अप्रैल 2025 को तलब कर लिया। जब मंत्रालय के सचिव न्यायालय के समक्ष उपस्थित हुए तो न्यायालय ने एक सप्ताह के अंदर योजना लागू करने के आदेश दिये। जिसको लेकर मंत्रालय द्वारा 5 मई को योजना लागू करने की अधिसूचना जारी कर दी और मंत्रालय की ओर से शपथ पत्र भी अधिसूचना की प्रति के साथ प्रस्तुत हुआ।

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मंगलवार को क्या हुई सुनवाई

मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष सुनवाई के दौरान यह बात आयी कि योजना के तहत पीड़ित को अधिकतम ₹1.5 लाख तक का नकद रहित उपचार 7 दिनों तक प्रदान किया जाएगा। इसको लेकर अधिवक्ता जैन द्वारा अपनी आपत्ति प्रस्तुत की गयी और न्यायालय के 08 जनवरी 2025 के आदेश का सन्दर्भ देते हुए कहा गया कि धनराशि और समय की सीमा नहीं निर्धारित होनी चाहिए।

न्यायालय ने आपत्ति का उल्लेख अपने आदेश में करते हुए केन्द्र सरकार को अपना शपथ पत्र अगस्त 2025 में प्रस्तुत करने के लिये कहा है जिसमें योजना की प्रगति के बारे में और लाभार्थियों की संख्या बतानी हैं।

योजना लागू करने में क्यों हुई देरी ?

कैशलेस इलाज की योजना में अनेक स्टेक होल्डर हैं। जब सड़क मंत्रालय के सचिव सुप्रीम कोर्ट के समक्ष 28 अप्रैल को उपस्थित हुए तो उन्होंने बताया कि जनरल इन्श्योरेन्स काउंसिल इस योजना में अड़चन बनी हुई है उसके द्वारा दिल्ली उच्च न्यायालय में रिट भी दायर की गयी थी जिसके कारण यदि सड़क हादसे ऐसे मोटर वाहनों से हुये हैं जिनका बीमा नहीं है तो केन्द्र सरकार उसमें इलाज के लिये स्वयं पैसा व्यय करेगी जिसको लेकर रू 406 करोड़ का बजट सड़क मंत्रालय द्वारा स्वीकृत कराया गया इसके बावजूद भी जनरल इन्श्योरेन्स काउंसिल तरह-तरह की मुश्किलें उत्पन्न कर रहा था जिसको लेकर सुप्रीम कोर्ट नाराज हुआ और उसकी सभी याचिकाओं को वापिस करा दिया इस प्रकार सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप से कैशलेस इलाज की योजना लागू करने का मार्ग प्रशस्त हुआ।

क्या है योजना ?

* दुर्घटना की तिथि से 7 दिन के अन्दर रू 1,50,000/- तक का इलाज सड़क हादसे में घायल व्यक्ति को कैशलेस होगा।

* यह इलाज निर्दिष्ट अस्पताल में होगा।

* योजना के आधीन निर्दिष्ट अस्पताल के अतिरिक्त अन्य अस्पताल में उपचार केवल स्थिरीकरण प्रयोजनों के लिये किया जायेगा।

* राज्य स्वास्थ्य एजेन्सी अस्पताल के क्लेम को सत्यापित करेगी जिसके सत्यापन के उपरान्त 10 दिन के अन्दर पोर्टल से भुगतान होगा।

* राज्य सड़क सुरक्षा परिषद् राज्य अथवा केन्द्र शासित प्रदेश में योजना के कार्यान्वयन के लिये नोडल एजेन्सी होगी।    

* नोडल एजेन्सी योजना के कार्यान्वयन को लेकर शिकायतों के निवारण के लिये एक तंत्र विकसित करेगी और मॉनिटर करेगी।

* सड़क हादसा मोटर वाहन से होना चाहिए।

अधिवक्ता किशन चंद जैन का तर्क

यह केवल एक योजना नहीं, बल्कि हर सड़क पर घायल होने वाले निर्दोष नागरिक के जीवन को बचाने की एक राष्ट्रीय जिम्मेदारी है। इस योजना की शुरुआत एक मील का पत्थर है, और मैं मानता हूँ कि अनुभवों के आधार पर समय-समय पर इसमें सुधार किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप और केन्द्र सरकार की कार्यवाही उन हजारों परिवारों के लिए आशा की किरण है जो एक दुर्घटना के बाद टूट जाते थे। मेरी याचिका तो केवल एक विनम्र प्रयास था, असली श्रेय उन सभी को है जिन्होंने इसे जमीनी हकीकत बनाया।

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विवेक कुमार जैन
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