धोखाधड़ी और धमकी के आरोप में गिरफ्तार दिलशाद को वरिष्ठ अधिवक्ता अमीर अहमद के ठोस तर्कों से मिली जमानत

न्यायालय मुख्य सुर्खियां
न्यायालय ने माना कि प्रकरण एग्रीमेंट के अनुपालन में बैनामा निष्पादित न किए जाने से संबंधित होने के कारण पूर्ण रूप से है सिविल प्रकृति का

आगरा १८ जुलाई ।

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, न्यायालय संख्या-1 आगरा माननीय राजेंद्र प्रसाद ने एक महत्वपूर्ण फैसले में धोखाधड़ी और जान से मारने की धमकी के आरोप में गिरफ्तार दिलशाद पुत्र स्वर्गीय श्री खलीलुलरहमान को सशर्त जमानत दे दी है।

दिलशाद को यह जमानत 1 लाख रुपये के व्यक्तिगत मुचलके और इतनी ही राशि के दो जमानती पेश करने के बाद मिली है। यह मामला मुख्यतः एक संपत्ति विवाद से जुड़ा है, जिसमें अभियोजन पक्ष ने आपराधिक साजिश और धोखाधड़ी के आरोप लगाए थे।

मामले की पृष्ठभूमि:

यह मामला मुअसं-28/2025 के तहत धारा 316(2), 318(4), 338, 336(3), 340, 351(2), 61(2) बी.एन.एस. के अंतर्गत थाना नाई की मंडी, जिला आगरा में दर्ज किया गया था।

शिकायतकर्ता राकेश कुमार ने आरोप लगाया था कि दिलशाद और अन्य सह-अभियुक्तों ने उनकी पैतृक संपत्ति बेचने की पेशकश की थी। वादी और उनके मित्र राकेश शर्मा ने 10 लाख रुपये में 1037 वर्ग मीटर जमीन खरीदने का समझौता किया और 5 लाख रुपये का भुगतान भी किया।

शिकायतकर्ता के अनुसार, राकेश शर्मा की मृत्यु 16/05/2024 को हो गई, जिसके बाद वादी ने मुख्तारनामा अपने नाम कराने का अनुरोध किया। हालांकि, अभियुक्तों ने टालमटोल की।

बाद में, वादी को पता चला कि अभियुक्तों ने उसी जमीन को सौरभ बंसल और शाहिद रजा को 26/06/2024 को एक फर्जी इकरारनामा बनाकर बेच दिया था। जब वादी ने इस बारे में बात की, तो आरोप है कि अभियुक्तों ने उन्हें 18/02/2025 को अपने निवास पर बुलाया और जान से मारने की धमकी दी।

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बचाव पक्ष का तर्क:

दिलशाद के वरिष्ठ अधिवक्ता अमीर अहमद ने तर्क दिया कि उनके मुवक्किल निर्दोष हैं और उन्हें झूठा फंसाया गया है। वकील ने जोर देकर कहा कि न तो कोई कूटरचित दस्तावेज तैयार किया गया और न ही कोई छल या धोखाधड़ी की गई।

उन्होंने यह भी तर्क दिया कि 02/03/2020 को निष्पादित कथित इकरारनामे की मियाद छह महीने थी, जिसका पालन खरीदारों द्वारा नहीं किया गया, जिससे इकरारनामा निष्प्रभावी हो गया। इसके बाद ही दिलशाद और अन्य अभियुक्तों ने सौरभ बंसल और शाहिद रजा के पक्ष में जमीन का इकरारनामा निष्पादित किया।

बचाव पक्ष ने यह भी कहा कि मामला पूरी तरह से सिविल प्रकृति का है, क्योंकि वादी पक्ष ने इकरारनामे की शर्त के अनुसार बैनामा कराने के लिए किसी अदालत में वाद दायर नहीं किया।

न्यायालय का अवलोकन:

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने मामले के तथ्यों और उपलब्ध दस्तावेजों की जांच की। न्यायालय ने पाया कि कथित संपत्ति के संबंध में वादी और उनके मित्र राकेश शर्मा के पक्ष में निष्पादित इकरारनामे के पृष्ठ-6 में यह स्पष्ट था कि यदि विक्रेता छह महीने के भीतर बैनामा करने में असमर्थ रहते हैं, तो खरीदारों को अदालत के माध्यम से बैनामा पंजीकृत कराने का अधिकार होगा।

हालांकि, वादी की ओर से ऐसा कोई अभिलेख दाखिल नहीं किया गया, जिससे यह प्रतीत होता हो कि वादी ने इस संबंध में सक्षम न्यायालय में वाद दायर किया था। न्यायालय ने यह भी नोट किया कि अभियोजन पक्ष द्वारा दिलशाद का कोई आपराधिक इतिहास दाखिल नहीं किया गया था, और अभियुक्त 01/07/2025 से जिला कारागार में निरूद्ध था।

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अंतिम निर्णय:

समस्त तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, न्यायालय ने कहा कि प्रकरण एग्रीमेंट के अनुपालन में बैनामा निष्पादित न किए जाने से संबंधित पूर्ण रूप से सिविल प्रकृति का प्रतीत होता है। न्यायालय ने तथ्यों के गुण-दोष पर कोई राय व्यक्त किए बिना, दिलशाद की जमानत याचिका को सशर्त स्वीकार कर लिया।

जमानत की शर्तें:

दिलशाद को निम्न शर्तों के अधीन जमानत पर रिहा किया गया है:

* वह विवेचना/विचारण में सहयोग करेगा।

* वह विचारण के दौरान मामले के साक्ष्य के साथ छेड़छाड़ नहीं करेगा और साक्षियों को प्रभावित नहीं करेगा।

* वह विचारण के दौरान न्यायालय के समक्ष नियमित रूप से उपस्थित रहेगा और अनावश्यक स्थगन नहीं देगा।न्यायालय ने स्पष्ट किया कि उपरोक्त शर्तों के उल्लंघन की दशा में संबंधित न्यायालय जमानत निरस्त करने के लिए स्वतंत्र होगा।

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विवेक कुमार जैन
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