मामले की अगली सुनवाई 14 जून को
आगरा २१ मई ।
आगरा के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत ने राजेंद्र गुप्ता “धीरज” बनाम डॉ. अरुण श्रीवास्तव और अन्य के मामले में एक महत्वपूर्ण आदेश पारित किया है। कोर्ट ने धारा 156 (3) दंड प्रक्रिया संहिता (अब धारा 173 (4) बी.एन.एस.एस.) के तहत दायर आवेदन को परिवाद (शिकायत) के रूप में दर्ज करने का निर्देश दिया है। यह आदेश 13 मई, 2025 को पारित किया गया था।
मामले की पृष्ठभूमि
मामले की शुरुआत राजेंद्र गुप्ता “धीरज” द्वारा अपनी बेटी के पुलिस विभाग में मृतक आश्रित कोटे के तहत उपनिरीक्षक (गोपनीय) के पद पर आवेदन से हुई। प्रार्थी की पत्नी, श्रीमती निर्मल गुप्ता, जो उत्तर प्रदेश पुलिस में एक निरीक्षक थीं, का 4 अप्रैल, 2020 को ड्यूटी के दौरान अचानक निधन हो गया था।
गुप्ता की पुत्री गर्विता राज गुप्ता का 15 अप्रैल, 2024 को ए.एन.एम. कार्यालय में मेडिकल हुआ, जहाँ उनकी लंबाई 147 सेमी दर्ज की गई, जबकि प्रार्थी का दावा है कि उनकी बेटी की वास्तविक लंबाई 148 सेमी है। जब प्रार्थी ने इस पर आपत्ति जताई, तो महिला चिकित्सक कथित तौर पर भड़क गईं और उन्होंने पैसे की मांग की। प्रार्थी ने आरोप लगाया कि सी.एम.ओ. कार्यालय के बाबू मनीष ने बार-बार फोन कर पैसे की मांग की और पैसे न देने पर उसे कार्यालय से बाहर निकाल दिया।
प्रार्थी ने 28 मई, 2024 को सी.एम.ओ. से मुलाकात की, जहाँ डिप्टी सी.एम.ओ. और अन्य विपक्षीगण भी मौजूद थे। प्रार्थी ने आरोप लगाया कि सी.एम.ओ. ने बाबू मनीष से “सेवा” (पैसे) के बारे में पूछा और सेवा न मिलने पर प्रार्थी को डांटते हुए कहा कि सही लंबाई तभी दर्ज की जाएगी जब सी.एम.ओ. की “सेवा” की जाएगी।
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न्यायिक प्रक्रिया का घटनाक्रम
प्रार्थी द्वारा पूर्व में धारा 156 (3) दंड प्रक्रिया संहिता के तहत दायर प्रार्थनापत्र को पूर्व पीठासीन अधिकारी ने 3 अगस्त, 2024 को सुनवाई के क्षेत्राधिकार के अभाव में खारिज कर दिया था। इस आदेश से असंतुष्ट होकर, प्रार्थी ने दांडिक निगरानी संख्या-78/2024 विशेष न्यायाधीश (दं.प्र.क्षे. अधि.) / अपर सत्र न्यायाधीश, न्यायालय संख्या-03, आगरा के समक्ष दायर की। माननीय निगरानी न्यायालय ने 7 फरवरी, 2025 को 3 अगस्त, 2024 के आदेश को रद्द करते हुए प्रार्थनापत्र पर पुनः सुनवाई करने और विधि सम्मत आदेश पारित करने का निर्देश दिया था।
न्यायालय का निर्णय
मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट आगरा माननीय मृत्युंजय श्रीवास्तव ने मामले का अवलोकन करने के बाद पाया कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सुखवासी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य के निर्णय (ए.सी.सी. 2007 (59) पेज 739) में यह स्पष्ट किया गया है कि यदि प्रार्थनापत्र में संज्ञेय अपराध प्रकट होता है, लेकिन मामला विश्वसनीय नहीं है, तो मजिस्ट्रेट प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करने का आदेश देने के लिए बाध्य नहीं है। ऐसे मामलों में, प्रार्थनापत्र को परिवाद के रूप में दर्ज कर न्यायालय स्वयं जांच कर सकता है।
वर्तमान मामले में, न्यायालय ने पाया कि आवेदक को सभी तथ्यों की व्यक्तिगत जानकारी है, जिन्हें वह अपने साक्ष्य के माध्यम से साबित कर सकता है। इन परिस्थितियों और उच्च न्यायालय के दिशानिर्देशों को ध्यान में रखते हुए, न्यायालय ने राजेंद्र गुप्ता “धीरज” के प्रार्थनापत्र को धारा 156 (3) दंड प्रक्रिया संहिता (वर्तमान धारा 173 (4) बी.एन.एस.एस.) के तहत परिवाद के रूप में दर्ज करने का आदेश दिया।
अब इस मामले की अगली सुनवाई 14 जून, 2025 को होगी, जब प्रार्थी के बयान धारा 200 दंड प्रक्रिया संहिता के तहत दर्ज किए जाएंगे। इसके बाद पत्रावली नियमानुसार सक्षम न्यायालय में स्थानांतरित की जाएगी।
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