ट्रांसजेंडर नीति तैयार करने पर भारत सरकार, यूपी सरकार से इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मांगा जवाब

उच्च न्यायालय मुख्य सुर्खियां

आगरा /प्रयागराज 9 सितंबर।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश में ट्रांसजेंडर नीति तैयार करने की मांग करने वाली जनहित याचिका पर राज्य सरकार तथा केंद्र सरकार से जवाब मांगा है।

किन्नर शक्ति फाउंडेशन के अध्यक्ष शुभम गौतम के माध्यम से दायर जनहित याचिका में राज्य में जागरूकता कार्यक्रम और ट्रांसजेंडर सुरक्षा सेल की स्थापना के साथ ट्रांसजेंडर आयुष्मान टीजी प्लस कार्ड योजना के त्वरित कार्यान्वयन की भी मांग की गई है।

Also Read - हमास का समर्थन व भारत के विरोध में ट्वीट करने के आरोपी की जमानत मंजूर

जनहित याचिका में राज्य भर में गरिमा गृह सुविधाओं की स्थापना और संचालन के लिए संसाधनों का उचित आवंटन, राज्य में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की स्वास्थ्य संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए व्यापक नीतियां तैयार करने, ट्रांसजेंडर शौचालयों की स्थापना और शिक्षण संस्थानों में ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों को प्रवेश प्रदान करने और विशेष अभियान चलाकर सरकारी क्षेत्रों में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की भर्ती करने की मांग की गई है।

जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली तथा न्यायमूर्ति विकास बुधवार की खंडपीठ ने दिया है।

 

याचिका की अगली सुनवाई 16 अक्टूबर को होगी।

कहा गया कि भारत में ट्रांसजेंडर लोगों के कई सामाजिक-सांस्कृतिक समूह हैं। जैसे कि हिजड़ा/किन्नर, और अन्य ट्रांसजेंडर पहचान जैसे – शिव-शक्ति, जोगता, जोगप्पा, आराधी, सखी, आदि जो सभी मामलों में ‘गंभीर भेदभाव और उत्पीड़न’ का सामना करते हैं। उन्हें मौखिक दुर्व्यवहार, शारीरिक और यौन हिंसा, झूठी गिरफ्तारी, अपनी पैतृक संपत्ति, सेवाओं और शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश से वंचित करने जैसे ‘अनुचित व्यवहार’ का सामना करना पड़ता है और परिवार, शैक्षणिक संस्थानों, कार्यस्थल, सार्वजनिक स्थानों जैसी कई सेटिंग्स में उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है।

Also Read - बड़े भाई पर आपराधिक केस दर्ज करने वाले छोटे भाई को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दी कलियुगी भरत की संज्ञा

जनहित याचिका में कहा गया, “भारत में ट्रांसजेंडर लोगों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यह भेदभाव न केवल ट्रांसजेंडर लोगों को रोजगार, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और आवास जैसी प्रमुख सामाजिक वस्तुओं तक समान पहुंच से वंचित करता है बल्कि यह उन्हें समाज में हाशिए पर डाल देता है। उन्हें उन कमजोर समूहों में से एक बना देता है, जिनके सामाजिक रूप से बहिष्कृत होने का खतरा है।”

याचिका में कहा गया कि याचिकाकर्ता संगठन ने स्वास्थ्य, कानूनी सहायता, शिक्षा, स्वच्छता, भोजन और मनोरंजन सुविधाओं सहित ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को प्रभावित करने वाले जीवन के लगभग सभी पहलुओं में उचित राहत की मांग करते हुए विभिन्न अधिकारियों और उच्च पदस्थ अधिकारियों को कई अभ्यावेदन प्रस्तुत किए हैं।

जनहित याचिका में कहा गया कि इन प्रयासों के बावजूद कोई संतोषजनक प्रतिक्रिया नहीं मिली है।

ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के उद्देश्यों और प्रयोजनों को लागू करने के लिए कोई सार्थक कदम नहीं उठाए गए हैं।

Stay Updated With Latest News Join Our WhatsApp Group – Click Here

 

मनीष वर्मा
Follow Me

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *