इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने निर्देश दिए है कि जमानत के बाद आरोपियों की शीघ्र रिहाई के लिए उत्तर प्रदेश में “फास्टर” तकनीक की जाए लागू

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फास्टर एक ऐसी तकनीक है जो अदालतों के लिए आदेशों को अदालतों तक पहुंचाना बनाती है आसान
वर्ष 2022 में भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई ) एनवी रमना किया था इस तकनीक को लॉन्च

आगरा /प्रयागराज 24 जनवरी।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में उत्तर प्रदेश के प्राधिकारियों को निर्देश दिया कि वे राज्य में फास्टर (इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड का तीव्र एवं सुरक्षित प्रसारण) प्रणाली के क्रियान्वयन के लिए उठाए जा रहे कदमों के बारे में उसे सूचित करें।

फास्टर एक ऐसी तकनीक है जो अदालतों के लिए आदेशों को अदालतों तक पहुंचाना आसान बनाती है। इसे 2022 में भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई ) एनवी रमना ने लॉन्च किया था।

हाईकोर्ट के जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल ने इस तथ्य पर ध्यान दिया कि सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में निर्देश दिया है कि एक बार संबंधित अदालत द्वारा जमानत आदेश जारी किए जाने के बाद, कैदियों की रिहाई में देरी से बचने के लिए इसे तुरंत जेल अधिकारियों को सूचित किया जाना चाहिए।

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पीठ ने कहा,

“इसलिए यह उचित होगा कि दिल्ली की तरह ही उत्तर प्रदेश में भी जमानत आदेशों सहित अदालतों के आदेश कैदियों की जल्द रिहाई के लिए जेलों में इलेक्ट्रॉनिक रूप से भेजे जाएं।”

न्यायालय एक ऐसे मामले की सुनवाई कर रहा था जिसमें उसने जिला न्यायपालिका को प्रक्रिया रजिस्टर बनाए रखने और न्यायालय की प्रक्रिया (समन, वारंट आदि) के उचित क्रियान्वयन के संबंध में पहले ही निर्देश जारी कर दिए थे।

9 जनवरी को न्यायालय को बताया गया कि राष्ट्रीय कैदी सूचना पोर्टल उत्तर प्रदेश में ठीक से काम नहीं कर रहा है। न्यायालय ने संबंधित अधिकारियों को इस मामले की जांच करने का निर्देश दिया।

न्यायालय ने जिला न्यायालयों में कर्मचारियों की कमी का भी संज्ञान लिया और रजिस्ट्रार जनरल से रिक्तियों को भरने के लिए की जा रही कार्रवाई से अवगत कराने को कहा। न्यायालय इस मामले की अगली सुनवाई 31 जनवरी को करेगा।

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साभार: बार & बेंच

विवेक कुमार जैन
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