आगरा ३० मई उत्तर प्रदेश:
आगरा के कागारौल थाना क्षेत्र के अकोला गांव में 24 जून 1990 को हुए जाट-जाटव जातीय संघर्ष के मामले में 35 साल बाद विशेष न्यायाधीश एससी/एसटी एक्ट माननीय पुष्कर उपाध्याय की अदालत ने 33 आरोपियों को पांच साल कैद और ₹13.53 लाख के जुर्माने की सजा सुनाई है।
यह फैसला 21 जून 1990 को सिकंदरा के पनवारी गांव से शुरू हुए जातीय संघर्ष की कड़ी का एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जिसकी तपिश पूरे देश में महसूस की गई थी।
घटना का विवरण:
कागारौल थाने में दर्ज मुकदमे के अनुसार, तत्कालीन थानाध्यक्ष ने 24 जून 1990 को अकोला गांव में हुए जातीय संघर्ष पर मुकदमा दर्ज किया था। यह संघर्ष 19 जून 1990 को पनवारी गांव में दलित युवक की बारात चढ़ने को रोकने के बाद जाट-जाटव समुदाय के बीच हुए तनाव का नतीजा था।
अकोला में जाटव समुदाय की बस्ती में लाठी-डंडों, फरसा, बल्लम आदि से लैस होकर हमला किया गया, जिसमें कई लोग घायल हुए और घरों में तोड़फोड़ की गई। इस घटना में दलित उत्पीड़न की धाराओं के तहत 79 आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया गया था।
लंबी न्यायिक प्रक्रिया:
35 साल तक चले इस विचारण के दौरान अभियोजन पक्ष ने अदालत में 29 गवाह पेश किए। कई आरोपियों की मुकदमे की सुनवाई के दौरान मृत्यु हो गई, जिसके बाद उनके खिलाफ कार्यवाही समाप्त कर दी गई। 28 मई को अदालत ने 15 आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया, जबकि 35 को दोषी पाया था।
तीन आरोपी गोपाल सिंह पुत्र लीलाधर, नंगा पुत्र तेजपाल, और राजकुमार पुत्र विपत्ति सिंह अदालत में गैरहाजिर रहे, जिसके बाद उनके खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किए गए थे। 28 मई को 32 आरोपियों को दोषी पाते हुए जेल भेजने के आदेश दिए गए थे और सजा सुनाने के लिए 30 मई की तारीख तय की गई थी। गुरुवार को फरार आरोपी गोपाल सिंह ने भी अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया।
सजा और अर्थदंड:
विशेष न्यायाधीश एससी/एसटी एक्ट माननीय पुष्कर उपाध्याय ने 33 आरोपियों जयदेव, राजेंद्र, पप्पू, तेजवीर सिंह, बन्नो, जीतू, कुंवर पाल, कल्लो, श्याम वीर, लीलाधर, भूपेंद्र, सत्तो, महेश, नाहर सिंह, रामवीर, सुरेंद्र, रामजीत, निरंजन, हरभान, पूरन, देवी सिंह, उम्मेदी, विज्जो, रामजीत, महेंद्र सिंह, संतो उर्फ संत राम, सुजान, सुदान उर्फ सौदान, महताब, दंगल, रज्जो उर्फ राजू, संपत, और गोपाल सिंह को पांच साल की कैद और ₹13,53,000/- के अर्थदंड से दंडित किया।
अदालत ने भारतीय दंड संहिता की धारा 452 (घर में घुसकर मारपीट) में पांच साल कैद और ₹10,000/- का जुर्माना; धारा 427 (तोड़फोड़) में दो साल कैद और ₹10,000/- का जुर्माना; धारा 323 (मारपीट) में एक साल कैद और ₹1,000/- का जुर्माना; धारा 504 (गाली-गलौज) में दो साल कैद और ₹5,000/- का जुर्माना; धारा 148 (बलवा) में दो साल कैद और ₹5,000/- का जुर्माना; और दलित उत्पीड़न की धाराओं के तहत पांच साल की कैद और ₹10,000/- का जुर्माना लगाया है।
अदालत ने सभी सजाओं को एक साथ चलाने का आदेश दिया है, जिसका अर्थ है कि सभी आरोपियों को कुल मिलाकर पांच साल की कैद और ₹13.53 लाख का अर्थदंड भुगतना होगा।
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पनवारी कांड से संबंध:
अकोला कांड की शुरुआत 21 जून 1990 को सिकंदरा के पनवारी गांव में भरत सिंह कर्दम की बहन मुंद्रा की बारात चढ़ने को लेकर हुई थी। जाट समुदाय ने दलित युवक की बारात को घोड़ी पर चढ़ाने का विरोध किया था, जिसकी अगुवाई चौधरी बाबूलाल ने की थी।
इस जातीय संघर्ष की गूंज पूरे देश में सुनाई दी थी और पनवारी कांड तथा चौधरी बाबूलाल रातोंरात प्रसिद्ध हो गए थे। पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को कड़ी सुरक्षा के बीच दलित युवक की बारात की रस्म पूरी करानी पड़ी थी, और प्रशासन को जातीय संघर्ष को रोकने के लिए सेना बुलाने और कई थाना क्षेत्रों में कर्फ्यू लगाने के लिए मजबूर होना पड़ा था।
समाजवादी पार्टी की सरकार के दौरान हुई इस घटना के पीड़ितों से मिलने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और सोनिया गांधी भी आगरा आए थे। दिलचस्प बात यह है कि पनवारी कांड के सभी आरोपी, जिसमें चौधरी बाबूलाल भी शामिल थे, पहले ही बरी हो चुके हैं, जिसमें तत्कालीन डीएम, एसएसपी और बसपा से जुड़े कई नेताओं की गवाही हुई थी।
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