न्यायिक अधिकारियों की जिला जज के रूप में नियुक्ति का मुद्दा, सुप्रीम कोर्ट ने संविधान पीठ को भेजा

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आगरा/नई दिल्ली: १२ अगस्त।

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण संवैधानिक मुद्दे को पांच जजों की संविधान पीठ के पास भेज दिया है।

यह मुद्दा इस बात से संबंधित है कि क्या एक न्यायिक अधिकारी, जिसने वकील के रूप में सात साल पूरे कर लिए हैं, बार कोटे (वकील रिक्ति) से जिला जज के पद पर नियुक्ति के लिए योग्य है।

यह मामला चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बीआर गवई, जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस एनवी अंजारिया की बेंच के सामने आया था, जिन्होंने इस पर एक संदर्भ आदेश (रिफरेन्स ऑर्डर ) पारित किया।

बेंच ने इस बात पर भी विचार किया कि जिला जज के पद के लिए योग्यता की शर्तें – सात साल का अनुभव – नियुक्ति के समय, आवेदन के समय या दोनों समय पूरी होनी चाहिए।

संवैधानिक प्रावधान क्या कहता है ?

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को इसलिए संविधान पीठ को भेजा, क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद 233(2) की व्याख्या से जुड़ा है। यह अनुच्छेद कहता है कि कोई भी व्यक्ति, जो पहले से ही केंद्र या राज्य सरकार की सेवा में नहीं है, उसे जिला जज के रूप में तभी नियुक्त किया जा सकता है, जब वह कम से कम सात वर्षों तक एक अधिवक्ता (एडवोकेट) रहा हो।

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केरल हाईकोर्ट के फैसले पर सवाल:

यह संदर्भ आदेश केरल हाईकोर्ट के एक फैसले के खिलाफ दायर अपील में आया है। हाईकोर्ट ने एक व्यक्ति की जिला जज के रूप में नियुक्ति को इस आधार पर रद्द कर दिया था कि नियुक्ति के समय वह एक प्रैक्टिसिंग एडवोकेट नहीं था, बल्कि न्यायिक सेवा में एक मुंसिफ के रूप में कार्यरत था।

अपीलकर्ता का मामला:

इस मामले में अपीलकर्ता रेजानिश के.वी. हैं। उनके पास वकील के रूप में सात साल का अनुभव था और उन्होंने जिला जज के पद के लिए आवेदन किया था। इसी दौरान, उनका चयन मुंसिफ/मजिस्ट्रेट के पद पर भी हो गया और उन्हें 28 दिसंबर 2017 को नियुक्त कर दिया गया।

जब रेजानिश को जिला जज का नियुक्ति आदेश मिला, तब वह मुंसिफ के रूप में कार्यरत थे। बाद में, उन्हें अधीनस्थ न्यायपालिका से कार्यमुक्त कर दिया गया और उन्होंने 24 अगस्त 2019 को जिला जज के रूप में कार्यभार संभाला।

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हाईकोर्ट में चुनौती:

एक अन्य उम्मीदवार के. दीपा ने रेजानिश की नियुक्ति को केरल हाईकोर्ट में चुनौती दी। दीपा ने तर्क दिया कि जब रेजानिश को जिला जज के रूप में नियुक्त किया गया था, तब वह एक वकील नहीं थे, बल्कि सरकारी सेवा (न्यायिक सेवा) में थे, इसलिए वे इस पद के लिए पात्र नहीं थे।

हाईकोर्ट की एकल पीठ ने धीरज मोर बनाम दिल्ली हाईकोर्ट मामले में सुप्रीम कोर्ट के एक पिछले फैसले का हवाला देते हुए दीपा की याचिका स्वीकार कर ली। उस फैसले में यह माना गया था कि सीधी भर्ती से जिला जज के लिए आवेदन करने वाले वकील को नियुक्ति की तारीख तक वकील बने रहना चाहिए।

यद्यपि हाईकोर्ट की खंडपीठ ने एकल पीठ के फैसले को बरकरार रखा, लेकिन उसने इस मामले को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपील करने की अनुमति दी। खंडपीठ ने यह टिप्पणी की कि इस मुद्दे का देश भर में व्यापक प्रभाव हो सकता है, क्योंकि कई राज्यों में जिला जजों की नियुक्तियाँ अलग-अलग नियमों के आधार पर की गई हैं, जो धीरज मोर मामले में दिए गए कानून से भिन्न हो सकती हैं।

सुप्रीम कोर्ट का यह कदम इस बात को सुनिश्चित करेगा कि पूरे देश में जिला जज के पद पर नियुक्ति के लिए एक स्पष्ट और समान कानूनी स्थिति स्थापित हो सके। इस मामले पर संविधान पीठ की सुनवाई जल्द ही शुरू होने की उम्मीद है।

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विवेक कुमार जैन
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