इलाहाबाद हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: पुलिस की जवाबदेही तय, विवेचना और चार्जशीट में लापरवाही पर होगी विभागीय कार्रवाई

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आगरा/प्रयागराज २४ मई ।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपराध विवेचना और चार्जशीट/पुलिस रिपोर्ट दाखिल करने में पुलिस की जवाबदेही तय करते हुए एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि निर्देशों का पालन न करने वाले विवेचना अधिकारियों से लेकर जिले के शीर्ष पुलिस अधिकारियों तक पर विभागीय जांच की कार्रवाई की जाएगी। इसके साथ ही, बढ़ते डिजिटल और साइबर अपराधों से निपटने के लिए पुलिस को तकनीकी प्रशिक्षण देने का भी निर्देश दिया गया है।

न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की एकलपीठ ने सुभाष चंद्र और छह अन्य के खिलाफ चल रही आपराधिक केस कार्यवाही को रद्द करते हुए यह महत्वपूर्ण आदेश दिया। इस मामले में मात्र 18 दिनों में विवेचना पूरी कर पुलिस रिपोर्ट दाखिल कर दी गई थी।

मुख्य निर्देश और जवाबदेही के बिंदु:

* तकनीकी प्रशिक्षण अनिवार्य: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश की अपराध विवेचना पुलिस को बढ़ते साइबर अपराध और डिजिटल साक्ष्य इकट्ठा करने की चुनौतियों से निपटने के लिए तकनीकी प्रशिक्षण देने का निर्देश दिया है।

* डीजीपी सर्कुलर का कड़ाई से पालन: सभी विवेचना अधिकारियों को चार्जशीट या पुलिस रिपोर्ट पेश करने से पहले डीजीपी के 19 फरवरी 2018 को जारी सर्कुलर और कोर्ट के दिशा-निर्देशों का कड़ाई से पालन करने को कहा गया है।

* जवाबदेही तय: कोर्ट ने पहली बार विवेचना अधिकारी से लेकर जिले के शीर्ष पुलिस अधिकारियों की चार्जशीट या पुलिस रिपोर्ट पेश करने में लापरवाही बरतने की जवाबदेही तय की है।

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* न्यायिक अधिकारियों को निर्देश: सभी न्यायिक अधिकारियों को निर्देश दिया गया है कि वे पुलिस रिपोर्ट में निर्देशों का पालन न होने की जानकारी संबंधित अनुशासनिक अधिकारियों को दें, ताकि लापरवाही के लिए ऐसे पुलिस अधिकारियों के खिलाफ विभागीय जांच की जा सके।

* तत्काल कार्रवाई का निर्देश: कोर्ट ने अपने फैसले के निर्देश 33.5 और 33.8 का पालन करने का निर्देश दिया है। यदि इनका पालन किए बगैर पुलिस रिपोर्ट या चार्जशीट दाखिल की जाती है, तो सक्षम न्यायिक अधिकारी तुरंत पुलिस कमिश्नर, एसएसपी/एसपी को सूचित करें और विवेचना अधिकारी के खिलाफ विभागीय कार्यवाही करने का निर्देश जारी करें।

* शीर्ष अधिकारियों को सूचना: यदि निर्देश 33.6 का विवेचना अधिकारी और पुलिस कमिश्नर, एसएसपी/एसपी द्वारा पालन नहीं किया जाता है, तो संबंधित न्यायिक अधिकारी तुरंत अपर मुख्य सचिव (गृह) और डीजीपी को कार्यवाही के लिए सूचना भेजें।

* एसएचओ की प्राथमिक जवाबदेही: उम्रकैद की सजा वाले अपराध की विवेचना पूरी होने और चार्जशीट या फाइनल रिपोर्ट पेश करने से पहले अभियोजन अधिकारी को पुनर्विलोकन के लिए नहीं भेजी गई, तो इस लापरवाही की प्राथमिकता जवाबदेही एसएचओ की होगी।

* मासिक रिपोर्ट: पुलिस कमिश्नर/एसएसपी/एसपी को निर्देश दिया गया है कि वे 19 फरवरी 2018 के सर्कुलर के अनुपालन की मासिक रिपोर्ट तैयार कर डीजीपी उत्तर प्रदेश और महानिदेशक अभियोजन को भेजें।

* नया सर्कुलर जारी करने का निर्देश: कोर्ट ने गृह विभाग, डीजीपी और महानिदेशक अभियोजन को नए सिरे से सर्कुलर जारी करने का भी निर्देश दिया है।
यह फैसला पुलिस विवेचना प्रणाली में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है, जिससे आपराधिक न्याय प्रणाली को मजबूत बनाने में मदद मिलेगी।

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मनीष वर्मा
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