दिल्ली रोहिणी कोर्ट ने चेक अनादर मामले में दिल्ली के वरिष्ठ अधिवक्ता के के शर्मा के तर्क और दलीलों के आधार पर आरोपी को किया बरी

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आगरा/दिल्ली17 मई 2025।

न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी – 02, उत्तर पश्चिम जिला, रोहिणी कोर्ट, दिल्ली की अदालत ने सविता सिंह मीणा बनाम नवाब सिंह के मामले में अपना फैसला सुनाते हुए पराक्रम्य लिखत अधिनियम, (एन आई एक्ट)की धारा 138 के तहत खुर्जा जिला बुलंदशहर उत्तर प्रदेश निवासी आरोपी नवाब सिंह को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया।

न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी – 02, न्यायाधीश माननीय अपूर्व भारद्वाज की अदालत ने मामले की सुनवाई के बाद धारा 138 के तहत दर्ज शिकायत के मामले में दोषी नहीं पाया और उन्हें बरी कर दिया।

मामले के अनुसार शिकायतकर्ता सविता सिंह मीणा मैसर्स जीए एंटरप्राइजेज की मालिक हैं, जो यू.पी. और दिल्ली में प्लास्टिक कूलर का निर्माण करती हैं।

आरोप था कि नवाब सिंह ने 69 कूलर का ऑर्डर दिया था और भुगतान के लिए पांच चेक जारी किए जो बैंक में जमा करने के बाद “धनराशि अपर्याप्त” के कारण बाउंस हो गए। इसके बाद, शिकायतकर्ता ने आरोपी को कानूनी नोटिस भेजा, लेकिन 15 दिनों के भीतर भुगतान न होने के कारण मामला अदालत में पहुंचा।

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अदालत ने आरोपी के खिलाफ एन.आई. अधिनियम की धारा 138 के तहत अपराध का संज्ञान लिया और उसे समन भेजा। आरोपी ने चेक पर हस्ताक्षर करने, चेक जारी करने और कानूनी नोटिस प्राप्त करने की बात स्वीकार की, लेकिन आरोपों से इंकार किया।

उसने अदालत को बताया कि उसको जो प्लास्टिक कूलर सप्लाई किए गए थे उनकी गुणवत्ता दोष पूर्ण थी जिस कारण उसने शिकायत कर्ता को कुछ भुगतान किया था और अभी कुछ भुगतान देना बाकी था ।

जिन चेक के संबंध में शिकायत कर्ता ने अदालत में वाद प्रस्तुत किया है वो चेक उसके द्वारा दिए गये सिक्योरिटी चेक थे । शिकायत कर्ता ने भी जिरह के दौरान बताया कि वह 12 वी पास है और घर से ही फैक्ट्री का कार्य देखती है ।

व्यापार उसके पति करते है । वह व्यक्तिगत रूप से भी आरोपी से कभी नहीं मिली है ।वह अदालत भी पहली बार आई है और उसे यह भी मालूम नहीं है कि उसने द्वारा दिए गए शपथ पत्र में क्या क्या लिखा है ।

अभियुक्त नबाव सिंह के अधिवक्ता के के शर्मा की ओर से अदालत में यह दलील दी गई कि शिकायतकर्ता ने स्पष्ट रूप से कहा है कि उसे अपने शपथ पत्र की सामग्री की जानकारी नहीं है और उसका अभियुक्त के साथ कोई सीधा संवाद नहीं हुआ।

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यह दर्शाता है कि उसका शपथ पत्र केवल सुनी-सुनाई बात है और इस पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। उन्होंने आगे तर्क दिया कि चूंकि शिकायतकर्ता को घटना के बारे में व्यक्तिगत जानकारी नहीं थी, इसलिए ऐसे गवाह की कोई प्रभावी जिरह नहीं की जा सकती थी और इस प्रकार अभियुक्त को अपनी बचाव के संबंध में प्रभावी जिरह के अपने बहुमूल्य अधिकार से वंचित कर दिया गया।

उन्होंने आगे कहा कि शिकायतकर्ता आसानी से अपने पति की जांच करवा सकती थी, जिसे उसने किन कारणों से नहीं किया, यह उसे ही पता होगा। उन्होंने इस आधार पर आरोपी को बरी करने की प्रार्थना की।

अदालत ने कहा कि शिकायतकर्ता के पति, जो इस लेनदेन के प्रत्यक्ष गवाह थे, को गवाही के लिए पेश नहीं किया गया । इसके अलावा, शिकायतकर्ता ने अपने हलफनामे को स्वीकारने से इंकार कर दिया और लेनदेन के बारे में व्यक्तिगत रूप से जानकारी होने से इंकार किया था।

अदालत ने सबूतों, दस्तावेजों और तर्कों पर विचार करने के बाद निष्कर्ष निकाला कि आरोपी ने अपने खिलाफ आरोपों को सफलतापूर्वक खंडित किया और शिकायतकर्ता दोष साबित करने में असफल रही।

इस आधार पर, अदालत ने नवाब सिंह को बरी कर दिया। न्यायाधीश माननीय अपूर्व भारद्वाज ने इस केस का फैसला सुनाते हुए कहा कि मजबूत और विश्वसनीय सबूतों की अनुपस्थिति में आरोपी को दोषी ठहराना संभव नहीं है।

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विवेक कुमार जैन
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