कोर्ट ने कहा जोड़े एक दूसरे के साथ खड़े हो करें समाज का सामना
आगरा/प्रयागराज १५ अप्रैल ।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि अपनी मर्जी से शादी करने मात्र से जोड़े को सुरक्षा की मांग करने का कोई विधिक अधिकार नहीं है, यदि उनके साथ दुर्व्यवहार या मार-पीट की जाती तो कोर्ट व पुलिस उनके बचाव में आयेगी। उन्हें एक दूसरे के साथ खड़े हो समाज का सामना करना चाहिए।
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के हवाले से कहा कि कोर्ट ऐसे युवाओं को सुरक्षा प्रदान करने के लिए नहीं बनी है जिन्होंने अपनी मर्जी से शादी कर ली हो। सुरक्षा गुहार लगाने के लिए उन्हें वास्तविक खतरा होना चाहिए।
कोर्ट ने कहा याचियों ने एस पी चित्रकूट को प्रत्यावेदन दिया है, पुलिस वास्तविक खतरे की स्थिति कानून के मुताबिक जरूरी कदम उठाए।
यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्रीवास्तव ने श्रीमती श्रेया केसरवानी व अन्य की याचिका को निस्तारित करते हुए दिया है।
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याचिका पर अधिवक्ता बी डी निषाद व रमापति निषाद ने बहस की।
याचिका में याचियों के शांतिपूर्ण वैवाहिक जीवन में विपक्षियों को हस्तक्षेप करने से रोकने की मांग की गई थी।
कोर्ट ने कहा याचिका के तथ्यों से कोई गंभीर खतरा नहीं दिखाई देता जिसके आधार पर उन्हें पुलिस संरक्षण दिलाया जाय।
विपक्षियों द्वारा याचियों पर शारीरिक या मानसिक हमला करने कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं है।
कोर्ट ने कहा याचियों ने विपक्षियों के किसी अवैध आचरण को लेकर एफआईआर दर्ज करने की पुलिस को कोई अर्जी नहीं दी है और न ही बीएनएसएस की धारा 173(3)के तहत केस करने का ही कोई तथ्य है। इसलिए पुलिस सुरक्षा देने का कोई केस नहीं बनता।
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