नालों के कारण गंगा जल की गुणवत्ता में गिरावट -नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल

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उत्तर प्रदेश सरकार को नालों के गंगा में गिरने से रोकने की कार्य-योजना पेश करने का निर्देश
एनजीटी ने प्रदेश के मुख्य सचिव से चार हफ्ते में मांगा हलफनामा

आगरा /नई दिल्ली/प्रयागराज 10 नवंबर ।

राष्ट्रीय हरित अधिकरण नई दिल्ली ने गंगा प्रदूषण मामले में कहा है कि प्रयागराज सहित प्रदेश में गंगा किनारे स्थित शहरों के गंदे नाले सीधे गंगा में गिरने से जल की गुणवत्ता में गिरावट आ रही है।

प्रदेश के मुख्य सचिव से चार हफ्ते में हलफनामा दाखिल कर प्रस्तावित सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के ब्योरे सहित नालों को गंगा में गिरने से रोकने की सरकार की समयबद्ध कार्ययोजना की जानकारी मांगी है।

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अधिकरण ने मुख्य सचिव से कहा है कि अभी तक 41 एसटीपी में से अभी तक चालू नहीं हुए छः एसटीपी कब तक क्रियाशील करेंगे और सभी एस टी पी द्वारा निर्धारित मानकों का पालन सुनिश्चित किया जाय। सीपीसीबी की 22 अक्टूबर 24 की रिपोर्ट के अनुसार अभी तक 35 एसटीपी में से केवल एक ही नियम का पालन करती पाई गई है।

याचिका की अगली सुनवाई 20 जनवरी 25 को होगी।

यह आदेश न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव चेयरपर्सन, न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल न्यायिक सदस्य एवं डॉ ए सैंथल विशेषज्ञ सदस्य की पीठ ने समाज सेवी एम.सी. मेहता की याचिका की सुनवाई करते हुए दिया है।

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अधिकरण ने सीपीसीबी की रिपोर्ट के हवाले से कहा कि प्रयागराज नगर निगम क्षेत्र में 468.28 एम एल डी सीवेज उत्सर्जित होता है। जिसमें से 394.48 एम एल डी शोधित होता है। एसटीपी की शोधन क्षमता केवल 340 एम एल डी ही है।

25 नाले गंगा व 15 नाले यमुना में सीधे गिर रहे हैं। कानपुर देहात, अयोध्या एवं कई शहरों में एसटीपी नहीं है। प्रदेश में गंगा में गिरने वाले कुल 326 नाले है। 247 नाले 3513.16 एम एल डी सीवेज उत्सर्जित कर रहे हैं।

कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को नालों को गंगा में जाने से रोकने व एसटीपी निर्माण की समयबद्ध कार्ययोजना पेश करने का आदेश दिया है।

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मनीष वर्मा
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