सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से यह स्पष्ट करने को कहा कि क्या भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 479 – दंड प्रक्रिया संहिता की जगह – देश भर के विचाराधीन कैदियों पर पूर्वव्यापी रूप से लागू होगी। यह प्रावधान अधिकतम अवधि प्रदान करता है, जिसके लिए किसी विचाराधीन कैदी को हिरासत में रखा जा सकता है।
धारा 479 BNSS धारा 436ए सीआरपीसी के अनुरूप है।
यह मुद्दा तब उठा जब जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच भारत में जेलों में भीड़भाड़ के मुद्दे को संबोधित करने के लिए शुरू की गई जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई कर रही थी।
एमिक्स क्यूरी सीनियर एडवोकेट गौरव अग्रवाल ने बताया कि विचाराधीन समीक्षा समिति के आदेशों में से एक यह है कि अगर कैदी ने आधी सजा काट ली है तो उसे रिहा कर दिया जाए। इस पर उन्होंने बताया कि पहली बार अपराध करने वालों (जिन्हें पहले कभी किसी अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया गया) के लिए छूट है। यदि वह उस अपराध के लिए निर्धारित अधिकतम अवधि (धारा 479) के एक तिहाई तक की अवधि तक हिरासत में रहा है तो उसे रिहा कर दिया जाएगा।
- आखिरकार 41 वर्ष बाद न्यायालय ने दिलाया 16 बीघा भूमि पर कब्जा - August 18, 2024
- क्या विचाराधीन कैदियों की अधिकतम हिरासत अवधि को सीमित करने वाली धारा 479 BNSS पूर्वव्यापी रूप से लागू होगी? सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा - August 14, 2024
- यथास्थिति के आदेश की अनदेखी कर इमारतें गिराने वाले अधिकारियों से मुआवज़ा वसूलें: सुप्रीम कोर्ट ने पटना के अधिकारियों की खिंचाई की - August 14, 2024