इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आर्थिक लाभ के लिए एससी एसटी एक्ट के दुरूपयोग को रोकने का निगरानी तंत्र विकसित करने के दिए निर्देश

उच्च न्यायालय मुख्य सुर्खियां
कोर्ट ने कहा झूठी शिकायत करने वालों की जवाबदेही तय कर दंड देने की हो कार्यवाही
निगरानी तंत्र बनने तक एफआईआर से पहले घटना का सत्यापन करने का निर्देश
पुलिस व न्यायिक अधिकारियों को किया जाए प्रशिक्षित
आदेश की प्रति सभी जिला जजों व डीजीपी को भेजें

आगरा /प्रयागराज 23 सितंबर

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने व्यक्तिगत आर्थिक लाभ की लालच में हाशिए पर बैठे समाज के कमजोर लोगों की सुरक्षा के लिए बने एससी एसटी एक्ट के दुरूपयोग पर चिंता जताई है। राज्य सरकार को निगरानी तंत्र विकसित करने का निर्देश दिया है और कहा है कि तब तक एफआईआर दर्ज करने से पहले घटना व आरोप का सत्यापन किया जाय।

ताकि वास्तविक पीड़ित को ही सुरक्षा व मुआवजा मिल सके तथा झूठी शिकायत कर सरकार से मुआवजा लेने वालों को धारा 182 अब धारा 214 में कार्यवाही कर दंडित किया जा सके।

कोर्ट ने कहा कि सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने वाले कानून का दुरूपयोग होने से न्याय प्रणाली पर संदेह व जन विश्वास को नुक्सान पहुंचता है। इसलिए एफआईआर का सत्यापन जरूरी है। इसके लिए पुलिस व न्यायिक अधिकारियों को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।

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प्रश्नगत मामले में झूठी शिकायत कर सरकार से लिया गया 75 हजार रूपए का मुआवजा कोर्ट ने सरकार को वापस लौटाया और दोनों पक्षों में समझौते की पुष्टि के कारण अपर सत्र न्यायाधीश/विशेष अदालत में चल रही एससी एसटी एक्ट की केस कार्यवाही रद्द कर दी है।

यह आदेश न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान ने विहारी व दो अन्य की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है।

मामले के अनुसार थाना कैला देवी संभल में दर्ज एससी एसटी एक्ट की एफआईआर पर पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की। सरकार ने पीड़ित को 75 हजार रुपये मुआवजा दिया। दोनों पक्षों में समझौता हो गया तो आपराधिक केस रद्द करने की याचिका दायर की गई।

कोर्ट ने शिकायतकर्ता को तलब कर सरकार से लिया मुआवजा वापस करने का आदेश दिया। जिला समाज कल्याण अधिकारी के नाम डिमांड ड्राफ्ट जिलाधिकारी को जमा कर रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया गया।

कोर्ट ने कहा सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि संज्ञेय व असंज्ञेय दोनों अपराध को समझौते से समाप्त किया जा सकता है। इसलिए पक्षकारों के बीच समझौते को सही माना और आदेश दिया कि शेष बकाया मुआवजा 25 हजार का भुगतान न किया जाय। शिकायतकर्ता ने हाईकोर्ट में आने पर कहा कि गांव वालों के उकसावे में उसने झूठी रिपोर्ट लिखाई थी। भविष्य में सतर्क रहेगा।

कोर्ट ने कहा एक्ट पीड़ित कमजोर तबके को तुरंत न्याय देने का साधन है। किंतु कई केस में पता चला है कि सरकार से मुआवजा लेने के लिए झूठे केस दर्ज हो रहे हैं। कोर्ट ने झूठा केस दर्ज कर सरकारी मुआवजा लेने वाले की जवाबदेही तय की जाय और उसे दंडित किया जाय। साथ ही निगरानी तंत्र विकसित किया जाय ताकि सुरक्षा प्रदान करने के लिए बने कानून का दुरूपयोग न हो सके और वास्तविक पीड़ित को राहत मिल सके।

कोर्ट ने कहा झूठे केस वास्तव में हुई घटना को चोट पहुंचा रहे हैं। न्याय प्रक्रिया पर संदेह पैदा कर रहे हैं। लोगों का भरोसा खत्म कर रहे हैं।जिसपर रोक चाहिए। कोर्ट ने आदेश की प्रति सभी जिला जजों व डीजीपी को भेजने का आदेश दिया है।

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मनीष वर्मा
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