झारखंड ने उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति को मंजूरी न देने पर केंद्र के खिलाफ सर्वोच्च अदालत का किया रुख

उच्चतम न्यायालय मुख्य सुर्खियां
कॉलेजियम ने 11 जुलाई को न्यायमूर्ति एमएस रामचंद्र राव की नियुक्ति की सिफारिश की थी, लेकिन केंद्र सरकार द्वारा अभी तक नहीं दी गई है मंजूरी

आगरा /नई दिल्ली 18 सितंबर ।

झारखंड सरकार ने न्यायमूर्ति एमएस रामचंद्र राव को झारखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की कॉलेजियम की सिफारिश को मंजूरी नहीं देने पर केंद्र सरकार के खिलाफ अदालत की अवमानना की कार्रवाई की मांग करते हुए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है।

कॉलेजियम ने 11 जुलाई को न्यायमूर्ति राव की नियुक्ति की सिफारिश की थी, लेकिन अभी तक इस पर मंजूरी नहीं मिली है।

न्यायमूर्ति सुजीत नारायण प्रसाद वर्तमान में उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्य कर रहे हैं।

याचिका में कहा गया है, “प्रतिवादियों द्वारा तैयार किए गए प्रक्रिया ज्ञापन के अनुसार, कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति सामान्यतः एक महीने से अधिक समय तक जारी नहीं रहनी चाहिए।”

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गौरतलब है कि याचिका में यह भी कहा गया है कि पिछले मुख्य न्यायाधीश के मामले में भी कॉलेजियम की सिफारिश को मंजूरी देने में अत्यधिक देरी हुई थी।

याचिका के अनुसार, कॉलेजियम ने 27 दिसंबर, 2023 को झारखंड के मुख्य न्यायाधीश के रूप में उड़ीसा उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति बीआर सारंगी के नाम की सिफारिश की थी।

याचिका में बताया गया हालांकि, केंद्र सरकार ने 3 जुलाई, 2024 को ही नियुक्ति को मंजूरी दी और न्यायमूर्ति सारंगी 19 जुलाई को पद से सेवानिवृत्त हो गए। इस प्रकार वे केवल 15 दिनों के लिए मुख्य न्यायाधीश के रूप में सेवा कर पाए।

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याचिकाकर्ता झारखंड के माननीय उच्च न्यायालय के साथ-साथ देश भर के अन्य माननीय उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति में असाधारण देरी से बहुत चिंतित है, जो न्यायपालिका की स्वतंत्रता के पोषित सिद्धांत के लिए हानिकारक है।

राज्य ने आरोप लगाया है कि कॉलेजियम ने मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति की सिफारिश पहले ही कर दी थी, लेकिन केंद्र ने इस पर कार्रवाई नहीं की।

इसमें कहा गया है कि इससे न्याय प्रशासन प्रभावित हुआ है और केंद्र सरकार द्वारा की गई देरी द्वितीय न्यायाधीश और तृतीय न्यायाधीश मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों का उल्लंघन है तथा न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर सीधा हमला है।

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विवेक कुमार जैन
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