आगरा /प्रयागराज 24 सितंबर।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने न्यायमूर्ति सुनीता अग्रवाल (पूर्व न्यायाधीश, इलाहाबाद हाईकोर्ट (वर्तमान में मुख्य न्यायाधीश, गुजरात उच्च न्यायालय) के खिलाफ आपराधिक अवमानना याचिका खारिज कर दी है।
कोर्ट ने कहा याचिका दिग्भ्रमित, अर्थहीन, गैर जिम्मेदाराना व मेरिट रहित होने के कारण खारिज होने योग्य है। याची एक अधिवक्ता है उसे संस्था के हित में जिम्मेदारी से कार्य करना चाहिए।

कोर्ट ने कहा विपक्षी ने जो भी आदेश दिए हैं अवमानना अधिनियम के तहत अवमानना की श्रेणी में नहीं आते।
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यह आदेश न्यायमूर्ति राजीव गुप्ता और न्यायमूर्ति सुरेन्द्र सिंह की खंडपीठ पीठ ने अधिवक्ता अरूण मिश्र की हाईकोर्ट जज के खिलाफ दाखिल आपराधिक अवमानना याचिका पर दिया है।
कोर्ट ने कहा कि संस्थान के समुचित कामकाज के हित में इस तरह के आवेदनों को हर तरह से हतोत्साहित किया जाना चाहिए।
अधिवक्ता अरुण मिश्रा का कहना था कि वर्ष 2020 में उनके द्वारा दायर एक रिट याचिका को न्यायमूर्ति सुनीता अग्रवाल की खंडपीठ ने (7 दिसंबर, 2020 को) उन्हें अपनी दलीलें पेश करने की अनुमति दिए बिना खारिज कर दिया था और उन पर 15,000/-रुपये का हर्जाना भी लगाया गया था।
अधिवक्ता 23 फरवरी 2021 को न्यायमूर्ति अग्रवाल की खंडपीठ द्वारा पारित एक अन्य आदेश से भी व्यथित थे जिसमें एक मामले में वह याचिकाकर्ता की ओर से पेश हो रहे थे जिसे ‘अभियोजन के अभाव ‘ के कारण खारिज कर दिया गया था।
उनका कहना था कि उसी दिन हालांकि अन्य वकीलों के मामलों को अभियोजन के अभाव के कारण खारिज नहीं किया गया था और दूसरी तारीख लगा दी गई थी।
उन्होंने तर्क दिया कि यह आदेश जानबूझकर पक्षपातपूर्ण तरीके से पारित किया गया था जिसका उद्देश्य उन्हें परेशान करना और नुकसान पहुंचाना था जो वास्तव में अपने कोर्ट की अवमानना के समान है।
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हाईकोर्ट ने उनकी दलील में कोई गुण नहीं पाते हुए उनकी याचिका को खारिज कर दिया। कहा कि किसी भी तरह से न्यायमूर्ति अग्रवाल का कृत्य और आदेश पारित करने का आचरण अधिनियम में परिभाषित “आपराधिक अवमानना” के दायरे में नहीं आता है।
न्यायालय ने आगे कहा कि एक अधिवक्ता के रूप में कोर्ट, न्यायालय के एक अधिकारी के रूप में उससे एक निश्चित सीमा तक जिम्मेदारी और संयम की अपेक्षा करता है।
न्यायालय ने इस तथ्य पर भी ध्यान दिया कि आवेदक-अधिवक्ता ने पहले भी न्यायमूर्ति अग्रवाल के खिलाफ आपराधिक अवमानना कार्यवाही शुरू करने के लिए लिखित सहमति मांगते हुए यूपी के महाधिवक्ता कार्यालय में एक आवेदन प्रस्तुत करके अपनी शिकायत उठाई थी। हालांकि, उक्त आवेदन 7 मई, 2024 को खारिज कर दिया गया था।

हाईकोर्ट ने आपराधिक अवमानना कार्यवाही शुरू करने की अनुमति देने से महाधिवक्ता के इनकार को चुनौती देने वाली रिट याचिका को खारिज कर दिया था।
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इसलिए न्यायालय ने आगे कहा कि ऐसी स्थिति से बचने के लिए अधिनियम निर्माताओं ने ऐसे आवेदनों को सीधे दायर करने पर प्रतिबंध लगाना आवश्यक समझा तथा उन्हें महाधिवक्ता की लिखित सहमति से दायर करने की आवश्यकता बताई।
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