आगरा/ नई दिल्ली 1 अक्टूबर।
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के पुलिस सब-इंस्पेक्टर पर अपने कर्तव्यों का पालन न करने और निर्धारित समय सीमा के भीतर सौंपी गई जांच पूरी न करने के लिए लगाई गई निंदा की सजा बरकरार रखी।
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अपीलकर्ता को कारण बताओ नोटिस दिया गया था, जो पुलिस स्टेशन हनुमानगंज, जिला खुशीनगर, उत्तर प्रदेश में सब-इंस्पेक्टर के पद पर तैनात था। इसमें अपीलकर्ता को अपने कर्तव्यों का पालन करते समय घोर लापरवाही, उदासीनता और स्वार्थ के लिए दोषी ठहराया गया था।
कारण बताओ नोटिस के जवाब में अपीलकर्ता ने बताया कि उसका अधिकांश समय वीआईपी ड्यूटी और उसे सौंपी गई अन्य बाहरी ड्यूटी को संभालने में चला गया, जिसके परिणामस्वरूप, वह अपने पास लंबित 13 मामलों की जांच पूरी नहीं कर सका।
हालांकि, अपीलकर्ता के स्पष्टीकरण से असंतुष्ट होने के बाद उसे पुलिस अधीक्षक द्वारा जारी पत्र के माध्यम से निंदा की सजा दी गई।
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अपीलकर्ता ने निंदा के दंड का विरोध करते हुए दावा किया कि हाईकोर्ट के समक्ष निंदा का दंड देने से पहले उसे सुनवाई का कोई अवसर नहीं दिया गया। उन्होंने आग्रह किया कि पुलिस अधीक्षक, जिला खुशीनगर द्वारा जारी किया गया विवादित आदेश और उसके परिणामस्वरूप संचार उत्तर प्रदेश अधीनस्थ रैंक के पुलिस अधिकारी (दंड और अपील) नियम, 1991 के प्रावधानों का स्पष्ट उल्लंघन है।
हालांकि, रिट याचिका को एकल पीठ के साथ-साथ हाईकोर्ट की खंडपीठ ने भी खारिज कर दिया।
अपीलकर्ता ने नियम 1991 के नियम 14(2) के साथ नियम 5 का हवाला दिया और आग्रह किया कि निंदा के दंड के अधीन करने से पहले अपीलकर्ता को कोई लिखित नोटिस जारी नहीं किया गया।
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपील की गई।
हाईकोर्ट के निर्णय की पुष्टि करते हुए जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि अपीलकर्ता को निंदा का दंड देते समय एसपी द्वारा कोई त्रुटि नहीं की गई।
न्यायालय ने अपीलकर्ता का तर्क खारिज कर दिया कि एसपी द्वारा दंड देने से पहले उसे कोई अवसर नहीं दिया गया। न्यायालय ने दर्ज किया कि अतिरिक्त डीजीपी द्वारा जारी आदेश जिसके आधार पर एसपी ने अपीलकर्ता को दंडित करने का निर्णय लिया, वह अपीलकर्ता द्वारा दिए गए स्पष्टीकरण पर आधारित था।
जस्टिस संदीप मेहता द्वारा लिखित निर्णय में कहा गया,
“स्पष्टतः इस प्रकार, दिनांक 7 मार्च, 2022 के पत्र द्वारा दर्ज की जाने वाली निन्दा प्रविष्टि पुलिस अधीक्षक, जिला खुशीनगर द्वारा प्रदान की गई थी, जो नियम, 1991 के नियम 7(2) के अनुसार ऐसा करने के लिए सक्षम थे। दिनांक 16 नवंबर, 2021 का आदेश अतिरिक्त मुख्य सचिव, गृह (पुलिस) द्वारा अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक द्वारा अग्रेषित विस्तृत तथ्यात्मक रिपोर्ट सहित रिकॉर्ड पर संपूर्ण सामग्री पर विचार करने के बाद पारित किया गया, जिसमें अपीलकर्ता का स्पष्टीकरण और इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए कारण बताए गए थे कि अपीलकर्ता ने जांच के निपटान में रुचि नहीं दिखाई, जिसे कर्तव्यों का पालन करते समय घोर लापरवाही, उदासीनता और स्वार्थ का संकेत माना गया। इस प्रकार यह अत्यधिक निंदनीय है। इसलिए अपीलकर्ता के वकील द्वारा प्रस्तुत यह तर्क कि निंदा प्रविष्टि को ऐसे अधिकारी द्वारा दर्ज करने का निर्देश दिया गया, जो सक्षम नहीं था। यह प्रकृति न्याय के नियमों/सिद्धांतों का पालन न करने के दोष से ग्रस्त है, मान्य नहीं है।”
परिणामस्वरूप, अपील खारिज कर दी गई और आरोपित निर्णय बरकरार रखा गया।
केस टाइटल: उपनिरीक्षक संजय कुमार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य
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साभार: लाइव लॉ