सुप्रीम कोर्ट में सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि मांस आधारित उत्पादों के अलावा अन्य उत्पादों के हलाल प्रमाणित के रूप में बेचे जाने पर उन्हें है “हैरानी”

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उन्होंने बताया कि सीमेंट, सरिया (लोहे की छड़ें), पानी की बोतलें गेहूं का आटा,बेसन को भी किया जा रहा है हलाल प्रमाणित

आगरा /नई दिल्ली 20 जनवरी ।

हलाल सर्टिफिकेट प्राप्त उत्पादों पर उत्तर प्रदेश सरकार के प्रतिबंध को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष आग्रह किया कि हलाल सर्टिफिकेट प्राप्त उत्पाद महंगे हैं और न्यायालय को इस मुद्दे पर विचार करना पड़ सकता है कि देश भर के लोगों को महंगे हलाल सर्टिफिकेट प्राप्त उत्पाद सिर्फ इसलिए खरीदने पड़ रहे हैं, क्योंकि कुछ लोगों ने उनकी मांग की है।

जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की खंडपीठ ने जमीयत उलमा-ए-हिंद हलाल ट्रस्ट बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य मामले की सुनवाई की और इसे 24 मार्च से शुरू होने वाले सप्ताह में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया।

जिसमें कहा गया कि न्यायालय के पिछले आदेश के आधार पर याचिकाकर्ता पहले से ही बलपूर्वक कार्रवाई से सुरक्षित हैं। प्रतिवादी-संघ से याचिकाकर्ताओं को अपने हलफनामे की प्रतियां देने के लिए कहते हुए न्यायालय ने प्रति उत्तर दाखिल करने के लिए समय दिया।

सुनवाई के दौरान, एसजी मेहता ने मांस आधारित उत्पादों के अलावा अन्य उत्पादों पर “हैरानी” जताई, जिन्हें हलाल प्रमाणित के रूप में बेचा जाना है।

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उन्होंने कहा,

“जहां तक हलाल मांस आदि का सवाल है, किसी को कोई आपत्ति नहीं हो सकती। लेकिन आपके माननीय सदस्यों को आश्चर्य होगा, जैसा कि मुझे हुआ, यहां तक कि इस्तेमाल किए जाने वाले सीमेंट को भी हलाल प्रमाणित किया जाना चाहिए ? इस्तेमाल की जाने वाली सरिया (लोहे की छड़ें) को भी हलाल प्रमाणित किया जाना चाहिए ? हमें जो पानी की बोतलें मिलती हैं, उन्हें भी हलाल प्रमाणित किया जाना चाहिए ?

यह आरोप लगाते हुए कि हलाल प्रमाणन एजेंसियों ने प्रमाणन प्रक्रिया से “कुछ लाख करोड़” कमाए हैं, एसजी ने कहा,

“यहां तक कि आटा (गेहूं का आटा), बेसन (चना आटा) को भी हलाल प्रमाणित किया जाना चाहिए। बेसन हलाल या गैर-हलाल कैसे हो सकता है ?”

इस पर जवाब देते हुए याचिकाकर्ताओं की ओर से सीनियर एडवोकेट एमआर शमशाद ने कहा कि केंद्र सरकार की नीति में हलाल को विस्तृत रूप से परिभाषित किया गया और हलाल सर्टिफिकेट केवल मांसाहारी भोजन से संबंधित नहीं है।

उन्होंने कहा,

“केंद्र सरकार की नीति खुद कहती है कि यह जीवनशैली का मामला है।”

अपने तर्कों का समर्थन करने के लिए सीनियर एडवोकेट ने उत्पादों में परिरक्षक के रूप में इस्तेमाल की जाने वाली अल्कोहल सामग्री और इसे चमकदार/चमकदार प्रभाव देने के लिए पानी के माध्यम से चारकोल गैस को पारित करने का उदाहरण दिया।

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इसके बाद एसजी ने एक बड़े मुद्दे पर प्रकाश डाला, जिस पर न्यायालय को विचार करना पड़ सकता है । देश के बाकी हिस्सों में गैर-विश्वासियों (जो हलाल का सेवन नहीं करते) को हलाल-सर्टिफाइड उत्पादों के लिए अधिक कीमत क्यों चुकानी चाहिए, क्योंकि बहुत कम लोग चाहते हैं कि वे इस तरह सर्टिफाइ़ड हों ?

याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने इसका विरोध करते हुए कहा कि हलाल-सर्टिफाइड उत्पादों का सेवन अनिवार्य नहीं है। बल्कि यह पसंद का मामला है।

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साभार: लाइव लॉ

विवेक कुमार जैन
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