10 वर्षीय बालिका के साथ अश्लील हरकत करने, लज्जा भंग करने के आरोपी को 5 वर्ष का सश्रम कारावास एवम दस हजार के जुर्माने से दंडित

अपराध न्यायालय मुख्य सुर्खियां
आरोपी को लैंगिक अपराधों से बालकों का सरंक्षण अधिनियम, 2012 की धारा-9 (ड) सपठित धारा 10 के अंतर्गत दोषी माना

आगरा 1 सितंबर ।

आगरा के विशेष न्यायाधीश (पास्को एक्ट )अपर सत्र न्यायाधीश कोर्ट संख्या 28 माननीय परवेज अख्तर ने 10 वर्षीय बालिका के साथ अश्लील हरकत करने, लज्जा भंग करने के आरोपी को 5 वर्ष का सश्रम कारावास एवम दस हजार के जुर्माने से दंडित किया है। अर्थदण्ड की समस्त धनराशि पीड़िता को बतौर क्षतिपूर्ति के रूप में दी जाएगी।

मामले के अनुसार वादी मुकदमा / पीड़िता के पिता द्वारा दिनांक 12.10.2016 की रात्रि 02.30 बजे की घटना के सम्बन्ध में थाना खेरागढ़, जिला आगरा में एक लिखित तहरीर देकर शिकायत की गई कि दिनांक 12.10.2016 को ताजिया की रात्रि होने की वजह से प्रार्थी की पत्नी घर में जग रही थी और प्रार्थी मदरसे में सो रहा था तथा प्रार्थी की दस वर्षीय पुत्री/पीड़िता भी अपने घर के दरवाजे पर सो रही थी, कि समय करीब ढाई बजे रात्रि में प्रार्थी के मोहल्ले का ही खालिद पुत्र इकबाल अहमद ने प्रार्थी की पुत्री/पीडिता के साथ अश्लील हरकतें करते हुए उसके साथ दुराचार का प्रयास किया बच्ची रोने लगी तो उसकी मम्मी आवाज सुनकर बाहर आयी, तब पर बच्ची ने रोते-रोते सारी बात बतायी।

वादी मुकदमा की उपरोक्त तहरीर आधार पर धारा-354ए, 354बी भा.द.सं. एवं धारा-7/8 लैगिंक अपराधो से बालको का संरक्षण अधिनियम, 2012 के अंतर्गत अभियुक्त खालिद के विरूद्ध दर्ज किया गया।

Also Read – आगरा में इंजिनियरिंग की छात्रा से दुराचार के आरोपी की जमानत खारिज

 

Also Read – अपहरण एवं दुराचार का आरोपी बरी

सुनवाई के दौरान आरोपी खालिद की ओर से यह तर्क प्रस्तुत किया गया है कि वह 34-35 वर्ष का नवयुवक है और उसका यह प्रथम अपराध है, उसका अन्य कोई आपराधिक इतिहास नहीं है।

वह अत्यन्त ही निर्धन मजदूरी पेशा व्यक्ति है, जो अपने माँ-बाप एवं परिवार की देख भाल करने वाला भी अकेला व्यक्ति है। अतः उसकी सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति तथा भविष्य को ध्यान में रखते हुये निर्णय लिए जाने की प्रार्थना की गयी।

न्यायालय की सुनवाई के दौरान इस मामले में शिकायत कर्ता और उसकी बेटी पीड़िता द्वारा अभियोजन कथानक का समर्थन नही किया गया और उनके द्वारा अभियुक्त से समझौता कर लिया गया था जिस कारण वह न्यायालय में पक्ष द्रोही हो गए थे। लेकिन राज्य की ओर से विशेष अभियोजन अधिकारी माधव शर्मा द्वारा तर्क दिया गया है कि आरोपी द्वारा वादी मुकदमा की दस वर्षीय अबोध पुत्री/पीड़िता के साथ ऐसी वीभत्स एवं घृणित हरकत की गयी है, जो न केवल अबोध बालिका के लिये मानसिक से एक आघात है, बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी दोषसिद्ध का अपराध अक्षम्य है, ऐसे गम्भीर अपराध के अपराधी के साथ किसी भी प्रकार की नरमी बरता जाना न्याय की मंशा के अनुरूप नहीं होगा। अतः दोषसिद्ध को अधिक से अधिक दण्ड से दण्डित किये जाने की प्रार्थना की गयी है।

दोनों पक्षों को सुनने एवं पत्रावली के अवलोकन के आधार पर विशेष न्यायाधीश (पास्को एक्ट )अपर सत्र न्यायाधीश कोर्ट संख्या 28 माननीय परवेज अख्तर ने अपने विस्तृत निर्णय में कहा कि

विदित है कि दोषसिद्ध के विरूद्ध अपने घर के बाहर अर्धरात्रि में अकेले सो रही वादी मुकदमा की दस वर्षीय अबोध पुत्री/पीडिता के साथ अश्लील हरकते करते हुये पीड़िता की लज्जा भंग कर उस पर गुरुत्तर लैंगिक प्रहार किया गया। इस प्रकार दोषसिद्ध द्वारा किया गया अपराध न केवल गम्भीर है बल्कि वह अबोध बालिका/पीडिता की गरिमा को भंग करने के साथ-साथ समाज में भी गलत संदेश देने वाला है।

Also Read – अधिवक्ताओं के हक एवं अधिकारों पर हाई कोर्ट द्वारा प्रतिबंध लगाने के विरुद्ध एवम अधिवक्ता प्रोटेक्शन एक्ट लागू करने के लिए राष्ट्रपति के नाम दिया ज्ञापन

इस सन्दर्भ में माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा विधि व्यवस्था सत्यनरायन तिवारी उर्फ जॉली व अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, MANU@ SC@ 910@2010 (2010) 13 एस०सी०सी० 689 में अवधारित किया गया है कि महिलाओं के विरूद्ध जो अपराध कारित किया जाता है, वह मात्र महिलाओं के विरूद्ध कारित अपराध न होकर सम्पूर्ण समाज के विरूद्ध होता है।

इस प्रकार के अपराध से समाज का तानाबाना छिन्न भिन्न हो जाता है। अतः ऐसे अपराधों में अभियुक्त कठोरतम दण्ड से दण्डित किया जाना चाहिए। माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा स्टेट ऑफ एम० पी० बनाम नजब खान एवं अन्य ए० आई० आर0 1913 सुप्रीम कोर्ट 2013 पेज 2997 में अवधारित किया है कि किसी अपराधी को समुचित दण्ड देते समय न्यायालय कह अभियुक्त के व्यक्तिगत हित एवं संपूर्ण समाज पर पडने वाले प्रभाव के मध्य एक संतुलन स्थापित करना चाहिए तथा समाज पर पड़ने वाले व्यापक प्रभाव को हमेशा ज्यादा महत्व देना चाहिए।

यह भी उल्लेखनीय है कि दण्ड देते समय न्यायालय को आपराधिक प्रवृत्ति, हेतुक, अपराध का समाज पर प्रभाव, दोषसिद्ध की संलिप्तता, समाज की संरचना एवं सभी बिन्दुओं पर विचार करना चाहिए। उपरोक्त के अनुकम में उल्लेखनीय है कि लैंगिक अपराधों से बालकों का सरंक्षण अधिनियम, 2012 की धारा-42 में दण्ड के सम्बन्ध में दिये गये प्रावधान के आलोक में दोषसिद्ध खालिद को धारा-93/10 लैगिक अपराधों से बालको का संरक्षण अधिनियम, 2012 व धारा-354 (ए), 354 (बी) भारतीय दण्ड संहिता में तत्समय प्रावधानित अनुकल्पित दण्ड के दृष्टिगत धारा-93/10 लैगिक अपराधों से बालको का संरक्षण अधिनियम, 2012 में दण्ड की मात्रा गुरुतत्तर होने के कारण उसे धारा- 354 (ए), 354 (बी) भारतीय दण्ड संहिता में दण्डित न कर उसे धारा- 93/10 लैगिंक अपराधो से बालको का संरक्षण अधिनियम, 2012 में दण्डित किया जाना न्यायोचित व विधिक प्रतीत होता है। अतः दोषसिद्ध खालिद को धारा-364 (ए), 354 (बी) भारतीय दण्ड संहिता के आरोप में दण्डित किए जाने की आवश्यकता नहीं है।

Also Read – 15 की थी जब बनाए संबंध, 21 सालों तक होता रहा नर्स के साथ बलात्कार

अतः मामले के समस्त तथ्य एवं परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए न्यायालय के विचार में दोषसिद्ध खालिद को धारा-9 (ड) सपठित धारा 10 लैंगिक अपराधों से बालकों का सरंक्षण अधिनियम, 2012 के आरोप में पाँच वर्ष के सश्नम कारावास से एवं मु०-दस हजार रूपये के अर्थदण्ड से दण्डित किया जाता है।

अर्थदण्ड न अदा करने की दशा में दो माह के अतिरिक्त साधारण कारावास की सजा भुगतनी होगी।दोषसिद्ध द्वारा जेल में बितायी गयी अवधि सजा की अवधि में समायोजित की जायेगी।

विवेक कुमार जैन
Follow me

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *