आगरा /नई दिल्ली सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार 20 अगस्त को उत्तर प्रदेश के कारागार प्रशासन एवं सुधार विभाग के प्रधान सचिव को दोषी की स्थायी छूट की याचिका पर कार्रवाई में देरी के संबंध में अदालत के समक्ष दायर हलफनामे में गलत बयान देने के लिए फटकार लगाई।
कोर्ट ने कहा कि हलफनामे में ऐसे बयान शामिल हैं, जो उनके पहले के रुख के विपरीत हैं कि मुख्यमंत्री सचिवालय ने आदर्श आचार संहिता के कारण फाइल पर कार्रवाई में देरी की।
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सर्वोच्च अदालत ने कहा,
“14 अगस्त 2024 को शपथ पर लिए गए उक्त हलफनामे में लिया गया रुख उसी अधिकारी द्वारा दिए गए गंभीर बयानों से पूरी तरह अलग है, जिन्हें इस कोर्ट के 12 अगस्त 2024 के आदेश में दर्ज किया गया था। वास्तव में हलफनामे में दिए गए कुछ बयान, जिसमें हलफनामे के पैराग्राफ 5 के खंड (जी) में दिए गए बयान शामिल हैं, झूठे प्रतीत होते हैं ”
जस्टिस अभय ओक और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की खंडपीठ ने चेतावनी दी कि वह हलफनामे में गलत बयान देने के लिए अवमानना नोटिस जारी करने पर विचार कर सकती है। प्रधान सचिव को अनुमति दी कि यदि वह अपनी स्थिति स्पष्ट करना चाहते हैं तो अतिरिक्त हलफनामा दाखिल कर सकते हैं।
अदालत ने आगे कहा,
“27 अगस्त 2024 को सूचीबद्ध करें जब प्रधान सचिव व्यक्तिगत रूप से उपस्थित रहेंगे। आज भी प्रधान सचिव न्यायालय में उपस्थित हैं। हम उन्हें नोटिस दे रहे हैं कि हम उन्हें आपराधिक अवमानना का नोटिस जारी करने पर विचार कर सकते हैं। यदि वह आगे हलफनामा दाखिल करना चाहते हैं, तो वह अगली तारीख तक इसे दाखिल करने के लिए स्वतंत्र हैं।”
न्यायालय ने पिछले सप्ताह (12 अगस्त 2024) प्रधान सचिव को हलफनामे में अपना मौखिक रुख रखने का निर्देश दिया था कि यूपी मुख्यमंत्री सचिवालय ने आदर्श आचार संहिता का हवाला देते हुए याचिकाकर्ता अशोक कुमार की छूट याचिका से संबंधित फाइल को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था।
हलफनामे में प्रमुख सचिव राजेश कुमार सिंह ने कहा कि यूपी के सरकारी वकील ने उन्हें 13 मई 2024 का कोर्ट का आदेश नहीं बताया। इस आदेश के जरिए कोर्ट ने यूपी सरकार को छूट याचिका पर फैसला करने के लिए एक महीने का समय दिया और स्पष्ट किया कि एमसीसी छूट तय करने में आड़े नहीं आएगी। सिंह ने हलफनामे में कहा कि यह आदेश 25 मई 2024 को जेल अधीक्षक के कार्यालय के जरिए ईमेल के जरिए उनके कार्यालय को सूचित किया गया, लेकिन संबंधित अनुभाग अधिकारी ने 06 जून 2024 को इसका संज्ञान लिया। हालांकि, पीठ ने बताया कि सिंह ने पिछले हफ्ते वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए कोर्ट में पेश होने पर यह बयान नहीं दिया था।
जस्टिस ओक ने बताया कि पिछले हफ्ते जब वह कोर्ट में पेश हुए थे तो सिंह ने कहा था कि आदेश सूचित कर दिया गया। एमसीसी के कारण सीएम सचिवालय ने फाइल स्वीकार नहीं की।
उन्होंने कहा,
“उन्होंने झूठा बयान दिया है। उन्होंने हमें यह नहीं बताया कि आदेश सूचित नहीं किया गया। हम झूठा बयान दर्ज करने के लिए अवमानना नोटिस जारी करेंगे। हम उनके द्वारा सरकारी वकील को दोषी ठहराने की सराहना नहीं करते।”
सुप्रीम कोर्ट ने सिंह के हलफनामे और राज्य सरकार की ओर से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल द्वारा प्रस्तुत फाइल का अवलोकन किया। कोर्ट ने पाया कि 13 मई 2024 को कोर्ट के निर्देश के बाद भी फाइल स्थिर रही। कोर्ट ने नोट किया कि एमसीसी समाप्त होने के चार दिन बाद यानी 6 जून 2024 तक फाइल में कोई हलचल नहीं दिखी।
न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि हलफनामे से ऐसा आभास मिलता है कि फाइल संबंधित मंत्री से राज्यपाल को भेजी गई, लेकिन इसमें यह उल्लेख नहीं किया गया कि फाइल 5 अगस्त 2024 को मुख्यमंत्री कार्यालय को भेजी गई थी। फाइल के रिकॉर्ड से न्यायालय ने पाया कि फाइल 5 अगस्त 2024 को मुख्यमंत्री को भेजी गई और उसी दिन उन्होंने इस पर हस्ताक्षर किए। इसके बाद राज्यपाल ने 13 अगस्त 2024 को फाइल पर हस्ताक्षर किए।
न्यायालय ने टिप्पणी की कि पिछले सप्ताह सिंह का मौखिक बयान कि एमसीसी के कारण सीएम सचिवालय द्वारा फाइल में देरी की गई, फाइल के रिकॉर्ड के आधार पर सटीक प्रतीत होता है।
न्यायालय ने कहा,
“इस प्रकार, फाइल पर 13 मई 2024 के आदेश का पूर्ण उल्लंघन स्पष्ट रूप से लिखा हुआ है। वास्तव में पिछली तिथि को प्रधान सचिव द्वारा मौखिक रूप से दिया गया बयान कि आचार संहिता के कारण फाइल को लंबित रखा गया था, पूरी तरह से सही प्रतीत होता है, जैसा कि फाइल से देखा जा सकता है।”
न्यायालय ने याचिकाकर्ता को अस्थायी जमानत प्रदान करते हुए उसे उचित जमानत शर्तें निर्धारित करने के लिए ट्रायल कोर्ट के समक्ष उपस्थित होने का निर्देश दिया तथा उसे अपनी छूट याचिका को खारिज करने के आदेश को चुनौती देने के लिए एक सप्ताह के भीतर अपनी याचिका में संशोधन करने की स्वतंत्रता प्रदान की।
न्यायालय ने मामले की अगली सुनवाई 27 अगस्त 2024 को निर्धारित की तथा प्रमुख सचिव को न्यायालय में उपस्थित रहने का निर्देश दिया।
केस टाइटल- अशोक कुमार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य।
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