अदालत ने टिप्पणी की, “वह सुधारने योग्य नहीं है,बिल्कुल सुधारने योग्य नहीं है”
आगरा/नई दिल्ली 24 फ़रवरी ।
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक किशोर को जमानत देने से इंकार करते हुए कहा कि वह बार-बार अपराध करता है और अपनी उम्र के आधार पर कानून के शिकंजे से बच नहीं सकता।
न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की खंडपीठ ने इस तथ्य पर गौर किया कि नाबालिग के खिलाफ चार समान मामले दर्ज हैं।
अदालत ने टिप्पणी की,
“वह सुधारने लायक नहीं है,बिल्कुल सुधारने लायक नहीं है।”
अदालत ने कहा,
“उसे अपने कृत्य के परिणामों को समझना चाहिए। नाबालिग होने के नाम पर वह लोगों को लूट नहीं सकता। वास्तव में, उसके साथ नाबालिग जैसा व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए था। ये गंभीर अपराध हैं और हर बार नाबालिग होने के नाम पर वे बच निकलते हैं।”
जबरन वसूली और आपराधिक धमकी के मौजूदा मामले में, किशोर को राजस्थान उच्च न्यायालय ने पहले जमानत देने से इंकार कर दिया था।गौरतलब है कि वह तीन मामलों में जमानत पर है।
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शीर्ष अदालत ने कहा,
“हमें पता है कि वह 1 साल और 8 महीने से हिरासत मे है। आखिरकार अगर किशोर न्यायालय उसे दोषी ठहराता है, तो अधिकतम सजा तीन साल हो सकती है। हालांकि, हम उसके पक्ष में अपने विवेक का इस्तेमाल करने के लिए राजी नहीं हैं।”
इसने यह भी उल्लेख किया कि उसके खिलाफ आरोप तय किए गए हैं और यद्यपि गवाहों को बुलाया गया है, लेकिन वे ट्रायल कोर्ट के समक्ष उपस्थित होने में विफल रहे हैं।
न्यायालय ने कहा,
“यदि गवाह नहीं आ रहे हैं, तो इसका याचिकाकर्ता के त्वरित सुनवाई के अधिकार से कुछ लेना-देना है। किशोर न्यायालय के पीठासीन अधिकारी को इसका ध्यान रखना चाहिए और देखना चाहिए कि अभियोजन पक्ष गवाहों को पेश करे।”
किशोर को जमानत देने से इंकार करने के अपने फैसले पर विचार करते हुए, न्यायालय ने उसके शीघ्र परीक्षण का आदेश दिया।
न्यायालय ने निर्देश दिया कि
“हम ट्रायल कोर्ट को ट्रायल पूरा करने के लिए चार महीने का समय देते हैं और यदि आवश्यक हो तो इसे दिन-प्रतिदिन के आधार पर संचालित करें।”
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साभार: बार & बेंच