आगरा/नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड को बड़ी राहत देते हुए उस पर लगाए गए ₹273.5 करोड़ के भारी-भरकम जीएसटी जुर्माने की वसूली पर रोक लगा दी।
यह मामला केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम, 2017 (सीजीएसटी अधिनियम) के तहत लगने वाले जुर्माने के दायरे और अधिकारियों के अधिकार क्षेत्र पर महत्वपूर्ण कानूनी सवाल खड़े करता है।
क्या है पूरा मामला ?
यह जुर्माना वस्तु एवं सेवा कर खुफिया महानिदेशालय (डीजीजीआई ) द्वारा शुरू की गई एक जांच का परिणाम है। डीजीजीआई ने पतंजलि के लेनदेन में कुछ कथित अनियमितताओं का पता लगाया था। विभाग का आरोप था कि पतंजलि ने बिना किसी वास्तविक वस्तु की आपूर्ति के “सर्कुलर ट्रेडिंग” में हिस्सा लिया, जिससे इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी ) का गलत तरीके से लाभ उठाया गया।
डीजीजीआई ने 19 अप्रैल, 2024 को पतंजलि को कारण बताओ नोटिस जारी कर सीजीएसटी अधिनियम की धारा 122(1) के तहत ₹273.5 करोड़ का जुर्माना लगाने का प्रस्ताव दिया। हालांकि, दिलचस्प बात यह है कि 10 जनवरी, 2025 को दिए गए एक आदेश में विभाग ने धारा 74 के तहत रखी गई कर मांगों को खारिज कर दिया था।
विभाग ने यह स्वीकार किया कि बेची गई वस्तुओं की मात्रा खरीदी गई मात्रा से अधिक थी और पतंजलि ने सारा आईटीसी आगे हस्तांतरित कर दिया था। इसके बावजूद, अधिकारियों ने यह तर्क देते हुए धारा 122 के तहत दंडात्मक कार्यवाही जारी रखने का फैसला किया कि यह रद्द की गई कर मांग से स्वतंत्र है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला:
पतंजलि ने इस दंडात्मक कार्यवाही को इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। कंपनी ने तर्क दिया कि धारा 122 के तहत जुर्माना आपराधिक प्रकृति का है और इसे केवल एक आपराधिक अदालत ही लगा सकती है, न कि विभागीय अधिकारी।
29 मई, 2025 को न्यायमूर्ति शेखर बी. सराफ और न्यायमूर्ति विपिन चंद्र दीक्षित की पीठ ने इस तर्क को खारिज कर दिया। हाई कोर्ट ने कहा कि धारा 122 के तहत लगने वाला जुर्माना दीवानी प्रकृति का है और उचित जीएसटी अधिकारियों द्वारा इसका निर्णय किया जा सकता है।
कोर्ट ने गुजरात त्रावणकोर एजेंसी मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया, जिसमें दीवानी और आपराधिक दायित्वों के बीच अंतर स्पष्ट किया गया था। हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि धारा 74 की कार्यवाही समाप्त होने से धारा 122 की कार्यवाही स्वतः समाप्त नहीं हो जाती, क्योंकि वे अलग-अलग प्रकार के उल्लंघनों से संबंधित हैं।
सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप और आगे का रास्ता:
इसके बाद, पतंजलि ने हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद पी. दातार और अधिवक्ता राज किशोर चौधरी ने पतंजलि का प्रतिनिधित्व करते हुए दंडात्मक शक्तियों के दायरे और जीएसटी अधिकारियों के अधिकार क्षेत्र पर सवाल उठाए।
शुक्रवार को न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति एएस चंदुरकर की पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार और डीजीजीआई को नोटिस जारी किया।
सुप्रीम कोर्ट ने अगले आदेश तक ₹273.5 करोड़ के जुर्माने की वसूली पर अंतरिम रोक लगा दी है।
यह मामला अब यह तय करेगा कि क्या सीजीएसटी अधिनियम की धारा 122 के तहत अधिकारियों को जुर्माना लगाने का अधिकार है, खासकर जब संबंधित कर मांगें पहले ही रद्द कर दी गई हों।
सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला भारत में जीएसटी कानून के तहत दंडात्मक प्रावधानों की व्याख्या और उनके अनुप्रयोग पर एक महत्वपूर्ण मिसाल स्थापित करेगा।
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