आगरा/नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई ) को बिहार में चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के दौरान मतदाता सूची से हटाए गए 65 लाख मतदाताओं की पूरी सूची ऑनलाइन प्रकाशित करने का निर्देश दिया है।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने आयोग को यह भी आदेश दिया है कि वह इन नामों को हटाने के पीछे के कारणों का भी खुलासा करे।
अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि यह प्रक्रिया पूरी तरह से पारदर्शी और निष्पक्ष होनी चाहिए, क्योंकि यह सीधे तौर पर नागरिकों के वोट देने के मौलिक अधिकार को प्रभावित करती है।
प्रमुख निर्देश और न्यायालय की टिप्पणियाँ सुप्रीम कोर्ट ने ईसीआई को निर्देश दिया है कि:
* 65 लाख मतदाताओं की पूरी सूची, जिनके नाम 2025 की मसौदा सूची में शामिल नहीं हैं, जिला निर्वाचन अधिकारियों की वेबसाइटों पर प्रदर्शित की जाए।
* यह जानकारी बूथ-वार और ईपीआईसी संख्या के आधार पर उपलब्ध होनी चाहिए, और इसे मुख्य निर्वाचन अधिकारी, बिहार की वेबसाइट पर भी प्रकाशित किया जाए।
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* हटाए गए नामों के पीछे के कारणों का भी खुलासा किया जाए, जैसे कि ‘मृत’, ‘स्थानांतरित’ या ‘डुप्लिकेट’।
* इस सूची को अपलोड करने के बारे में समाचार पत्रों, टेलीविजन और रेडियो चैनलों के माध्यम से व्यापक प्रचार किया जाए।
* सार्वजनिक सूचना में यह भी स्पष्ट रूप से बताया जाए कि कोई भी प्रभावित व्यक्ति आधार कार्ड की प्रति के साथ अपना दावा प्रस्तुत कर सकता है।
* यह सूची पंचायत और प्रखंड विकास अधिकारियों के कार्यालयों में भी प्रदर्शित की जाएगी।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने टिप्पणी की,
“एक कहानी है [जो] मुझे नहीं पता… अगर आप इसे सार्वजनिक कर देते हैं तो वह कहानी गायब हो जाती है।”
अदालत ने यह भी कहा कि इस प्रक्रिया से लोग अब बूथ स्तर के अधिकारियों (बीएलओ ) या राजनीतिक दलों की दया पर निर्भर नहीं रहेंगे।
चुनाव आयोग और याचिकाकर्ताओं के तर्क
इस मामले में, याचिकाकर्ताओं में से एक, एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर ) ने तर्क दिया कि एसआईआर की प्रक्रिया मनमाने ढंग से की जा रही है, जो बिना उचित प्रक्रिया के लाखों नागरिकों को उनके मताधिकार से वंचित कर सकती है।
दूसरी ओर, चुनाव आयोग की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने अदालत को बताया कि आयोग के पास संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत मतदाता सूचियों का पुनरीक्षण करने की पूरी शक्तियाँ हैं। उन्होंने कहा कि यह प्रक्रिया शहरी प्रवास और जनसांख्यिकीय परिवर्तनों के कारण आवश्यक हो गई थी।
उन्होंने यह भी तर्क दिया कि अभी तक किसी भी मतदाता का नाम अंतिम रूप से नहीं हटाया गया है। द्विवेदी ने गोपनीयता का हवाला देते हुए इसे खोज योग्य बनाने के सुझाव पर आपत्ति जताई और कहा कि खोज केवल ईपीआईसी नंबर के आधार पर होगी।
उन्होंने यह भी कहा कि राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के कारण आयोग को अक्सर निशाना बनाया जाता है।
उन्होंने कहा,
“हारने वालों को कोई न कोई बहाना ढूँढ़ना ही पड़ता है। दुर्भाग्य से हम राजनीतिक दलों के संघर्षों के बीच फँसे हुए हैं।”
याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता निजाम पाशा ने कहा कि मतदाता पहचान पत्र धारकों को मतदाता सूची से बाहर नहीं रखा जा सकता और यह प्रक्रिया निचले स्तर के अधिकारियों के विवेक पर बहुत अधिक निर्भर करती है, क्योंकि आवेदन जमा करने की कोई रसीद नहीं दी जाती है।
अधिवक्ता फौज़िया शकील ने इस प्रक्रिया को ‘मनमाना और जल्दबाज़ी’ वाला बताते हुए कहा कि बिहार में सितंबर और अक्टूबर में आने वाली बाढ़ के समय में यह प्रक्रिया अव्यावहारिक है।
मामले की अगली सुनवाई 22 अगस्त को होगी, जब सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे पर आगे विचार करेगा। यह आदेश बिहार में आसन्न विधानसभा चुनावों से पहले मतदाता सूची की शुद्धि और पारदर्शिता को सुनिश्चित करने के लिए एक मील का पत्थर साबित हो सकता है।
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