आगरा/प्रयागराज 24 अगस्त ।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में उत्तर प्रदेश के जिला अदालतों में वकीलों की लगातार हो रही हड़तालों पर कड़ी निर्देश जारी किए हैं। अदालत ने स्पष्ट किया कि वकीलों द्वारा हड़ताल करने या हड़ताल का आह्वान करने का कोई भी कार्य आपराधिक अवमानना के रूप में माना जाएगा। इस फैसले में न्यायपालिका के सुचारू संचालन की आवश्यकता पर जोर दिया गया है और न्याय प्रशासन पर बार-बार की जाने वाली हड़तालों के गंभीर प्रभाव को संबोधित किया गया है।
मामले की पृष्ठभूमि:
अवमानना की कार्रवाई प्रयागराज के जिला न्यायाधीश की रिपोर्ट से उत्पन्न हुई, जिसमें खुलासा किया गया कि जुलाई 2023 से अप्रैल 2024 के बीच, प्रयागराज जिला अदालत के वकीलों ने 218 कार्य दिवसों में से 127 दिनों में काम से अनुपस्थित रहे, जिसके कारण न्यायिक गतिविधियों में महत्वपूर्ण व्यवधान उत्पन्न हुआ। हाईकोर्ट ने इस मामले का संज्ञान लिया और इसके परिणामस्वरूप आपराधिक अवमानना आवेदन संख्या 12/2024 की शुरुआत हुई। न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्र और न्यायमूर्ति गौतम चौधरी के नेतृत्व वाली पीठ ने इन हड़तालों के न्याय प्रशासन पर व्यापक प्रभाव की जांच की।
शामिल कानूनी मुद्दे:
इस मामले में प्रमुख कानूनी मुद्दा वकीलों के हड़ताल पर जाने की वैधता के इर्द-गिर्द घूमता है, विशेष रूप से उन सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के प्रकाश में जो स्पष्ट रूप से कहते हैं कि वकीलों को हड़ताल करने का कोई अधिकार नहीं है। अदालत ने कई सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला दिया, जिनमें ‘Ex. Captain Harish Uppal vs. Union of India (2003)’ और ‘Supreme Court Bar Association vs. Union of India (1998)’ शामिल हैं, जिनमें कहा गया कि ऐसी हड़तालें अदालत की अवमानना और पेशेवर कदाचार का गठन करती हैं।
अदालत का निर्णय और टिप्पणियाँ:
अदालत ने हड़तालों की निरंतरता के खिलाफ एक कड़ा रुख अपनाते हुए, उत्तर प्रदेश में न्याय वितरण प्रणाली पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव को उजागर किया। अदालत ने कई महत्वपूर्ण निर्देश जारी किए:
1. हड़ताल के लिए आपराधिक अवमानना: किसी भी वकील या उनके संघ द्वारा हड़ताल करना या हड़ताल का आह्वान करना आपराधिक अवमानना के रूप में माना जाएगा।
Also Read – सर्वोच्च अदालत ने कहा की यह बहुत दुःखद है कि अदालतें आज तक विश्वासघात और धोखाधड़ी में अंतर को नहीं समझ पाई
2. अनिवार्य रिपोर्टिंग: जिला न्यायाधीशों को हड़तालों की रिपोर्ट इलाहाबाद हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को देने का निर्देश दिया गया है, जिसमें हड़ताल के लिए जिम्मेदार वकीलों या पदाधिकारियों के नाम शामिल होंगे, ताकि उचित अवमानना की कार्यवाही शुरू की जा सके।
3. शिकायत निवारण समितियाँ: अदालत ने वकीलों की वास्तविक शिकायतों को बिना हड़ताल के निपटाने के लिए हाईकोर्ट और जिला न्यायालय स्तर पर शिकायत निवारण समितियों की आवश्यकता पर जोर दिया।
4. शोक सभाएँ: अदालत ने निर्देश दिया कि किसी वकील या अदालत के अधिकारी की मृत्यु के मामले में शोक सभाएँ केवल 3:30 बजे के बाद ही आयोजित की जाएं, ताकि अदालत का कार्य बाधित न हो।
अदालत ने स्थिति की गंभीरता को रेखांकित करते हुए कहा, “यदि अदालतों को वकीलों की बार-बार हड़तालों के कारण अपने सर्वोत्तम स्तर पर कार्य करने की अनुमति नहीं दी जाती है, तो पूरा सिस्टम जिस आधार पर टिका है, वह ढह सकता है।”
Original Order Copy – In_Re_District_Bar_Association_Of_Prayagraj
- पंद्रह वर्ष बाद डाक्टर की गवाही एवं अधिवक्ता के तर्क पर चाचा की हत्या का 75 वर्षीय आरोपी बरी - December 23, 2024
- दो सगे भाइयों के दुहरे हत्याकांड को अंजाम देने वाले हत्या एवं आयुध अधिनियम के आरोपी पुलिस की लापरवाही पर बरी - December 23, 2024
- श्रीकृष्ण विग्रह केस की अगली सुनवाई 20 फरवरी को होगी - December 23, 2024