बेटे, बहू और पोते-पोतियों को उस घर को खाली करने का निर्देश दिया है, जिसमें वे एक साथ रह रहे थे।
आगरा/ नई दिल्ली 1 सितंबर।
साहब बेटा-बहू परेशान करते हैं….
एक 80 वर्षीय बुजुर्ग महिला ने अपने बेटे और बहू पर उत्पीड़न और दुर्व्यवहार का आरोप लगाते हुए
“माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरणपोषण तथा कल्याण अधिनियम’ के प्रावधानों का उल्लेख करते हुए”
दिल्ली उच्च न्यायालय से प्रार्थना करते हुए कहा कि वह संपत्ति की इकलौती और पंजीकृत स्वामी हैं और उनके बेटे और बहू किसी ने भी उनकी या उनके पति की देखभाल नहीं की है।
Also Read – सहवास से इनकार करना और लगातार उत्पीड़न करना क्रूरता के बराबर है: इलाहाबाद हाईकोर्ट
उसने आरोप लगाया कि धीमी मौत उनके पुत्र और पुत्रवधू के बीच वैवाहिक मनमुटाव से भी उन्हें लगातार असुविधा और तनाव होता है जो ‘धीमी मौत’ की तरह है।
हाई कोर्ट की चौखट में जब इस बुजुर्ग महिला का केस पहुंचा, तो कलियुगी बेटे-बहू की बेशर्मी से पूरे समाज का चेहरा शर्म से गड़ गया। सरकार सीनियर सिटीजन को सुविधाएं देने के लिए कई नियम-कायदे और योजनाएं बनाती है।
Also Read – 15 की थी जब बनाए संबंध, 21 सालों तक होता रहा नर्स के साथ बलात्कार
इसके बावजूद कुछ कलियुगी बेटे जन्म देने वाले मां-बाप का बुढ़ापा खराब करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। मां बाप की देखभाल न करना और उन पर अत्याचार करना कानूनन गलत है। ऐसा करने पर दोषी को जेल हो सकती है। इसके बावजूद आए दिन सभ्य समाज को शर्मसार करने वाली खबरें आना बंद नहीं हुई हैं।
इस मामले की सुनवाई करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने वरिष्ठ नागरिकों यानी बुजुर्ग नागरिकों के रहने के लिए सुरक्षित, सम्मानजनक और उपेक्षा मुक्त माहौल की आवश्यकता पर बल देते हुए 80 वर्षीय बुजुर्ग महिला के बेटे, बहू और पोते-पोतियों को उस घर को खाली करने का निर्देश दिया है, जिसमें वे एक साथ रह रहे थे।
न्यायमूर्ति संजीव नरूला ने 27 अगस्त को पारित निर्णय में कहा कि पुत्रवधू का निवास कोई अपरिहार्य अधिकार नहीं है, तथा इस अधिकार पर वरिष्ठ नागरिक अधिनियम के तहत वरिष्ठ नागरिकों को प्रदत्त संरक्षण के साथ विचार किया जाना चाहिए, जो उन्हें कष्ट पहुंचाने वाले निवासियों को बेदखल करने की अनुमति देता है।
Also Read – जिला न्यायिक अधिकारियों के मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण पर खुलकर चर्चा की जानी चाहिए: सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़
जज ने कहा,
“ये मामला एक बार-बार होने वाले सामाजिक मुद्दे को उजागर करता है, जहां वैवाहिक कलह न केवल दंपति के जीवन को बाधित करता है, बल्कि वरिष्ठ नागरिकों को भी काफी प्रभावित करता है। इस मामले में, बुजुर्ग याचिकाकर्ताओं को अपने जीवन के नाजुक चरण में लगातार पारिवारिक विवादों के कारण अनावश्यक संकट का सामना करना पड़ा। यह स्थिति पारिवारिक विवादों के बीच वरिष्ठ नागरिकों के कल्याण पर ध्यान देने की आवश्यकता को दर्शाती है।”