आगरा/गुवाहाटी:
गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि धार्मिक कट्टरवाद और उग्रवाद जैसे संवेदनशील मुद्दों पर पत्रकारिता करना अपराध नहीं है।
न्यायालय ने एक पत्रकार के खिलाफ दायर आपराधिक कार्यवाही को रद्द करते हुए कहा कि अवैध प्रवासन और धार्मिक कट्टरवाद पर समाचार रिपोर्टिंग को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 153 ए के तहत समुदायों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने के समान नहीं माना जा सकता है।
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न्यायमूर्ति प्रांजल दास ने यह फैसला पत्रकार कोंगकोन बोरठाकुर के खिलाफ दायर एक याचिका की सुनवाई करते हुए सुनाया। यह याचिका अखिल असम मुस्लिम छात्र संघ (शिवसागर) के अध्यक्ष द्वारा 2016 में एक असमिया दैनिक ‘दैनिक जन्मभूमि’ में प्रकाशित एक लेख के संबंध में दायर की गई थी। याचिका में आरोप लगाया गया था कि लेख ने एक शांतिपूर्ण क्षेत्र में वैमनस्य पैदा करने का प्रयास किया था।
फैसले के मुख्य बिंदु:
* पत्रकारिता का कर्तव्य: न्यायालय ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि समाज से जुड़े ज्वलंत मुद्दों को उठाना पत्रकारिता का मूल कर्तव्य है।
* धारा 153 ए की व्याख्या: न्यायालय ने कहा कि आईपीसी की धारा 153 ए के तहत मुकदमा चलाने के लिए यह दिखाना आवश्यक है कि लेख का उद्देश्य जानबूझकर दो समुदायों के बीच घृणा या हिंसा भड़काना था। केवल सामाजिक मुद्दों को उजागर करना या आलोचना करना इस धारा के दायरे में नहीं आता।
* रिपोर्टिंग जनहित में: न्यायालय ने पाया कि पत्रकार की रिपोर्ट जमीनी स्तर के शोध पर आधारित थी और इसका उद्देश्य जनसांख्यिकीय परिवर्तन, सीमा पार प्रवासन और कट्टरपंथी गतिविधियों जैसी चिंताओं को जनता के ध्यान में लाना था।
* कोई विशेष समुदाय को निशाना नहीं: न्यायमूर्ति दास ने इस बात पर जोर दिया कि लेख में किसी विशिष्ट धार्मिक या जातीय समुदाय को निशाना नहीं बनाया गया था, बल्कि यह पत्रकार के पेशेवर कर्तव्य का पालन था।
अदालत ने कहा,
“पत्रकार ने किसी भी जातीय या धार्मिक समूह पर आक्षेप नहीं लगाया है।”
इस फैसले से यह स्पष्ट होता है कि जनहित के मुद्दों को उजागर करने के लिए पत्रकारिता को दंडित नहीं किया जा सकता, जब तक कि उसका उद्देश्य जानबूझकर घृणा फैलाना न हो। यह निर्णय प्रेस की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति के अधिकार को मजबूत करता है।
Attachment/Order/Judgement – Kongkon_Borthakur_vs__The_State_of_Assam___Anr_
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