आजीवन कारावास की सजा बरकरार रखी
आगरा/ चंडीगढ़ 28 अगस्त ।
यह मामला पंजाब के राजपुरा के एक याचिका लेखक गुरमेल सिंह की नृशंस हत्या के इर्द-गिर्द घूमता है। यह घटना 13 सितंबर, 1999 की रात को हुई थी, जब गुरमेल सिंह को गंदाखेड़ी गांव में अपने मोटर कोठे (पंप हाउस) में सिर और मुंह पर गंभीर चोटों के साथ मृत पाया गया था।
हत्या के पीछे मुख्य मकसद गुरमेल सिंह और उनके भाई संतोख सिंह और उनके भतीजों दलजिंदर सिंह, मंजीत सिंह और अन्य के बीच कृषि और आबादी भूमि के बंटवारे को लेकर लंबे समय से चल रहे पारिवारिक विवाद से उपजा था।
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रिश्तेदारों द्वारा कराए गए समझौते के जरिए विवाद को सुलझा लिया गया था, लेकिन तनाव बना रहा। दलजिंदर सिंह, मंजीत सिंह, नरिंदर सिंह, जसपाल सिंह और अन्य सहित प्रतिवादियों के खिलाफ आरोप साजिश और हत्या में उनकी भूमिका पर आधारित थे। भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 120-बी और 302 के साथ धारा 120-बी के तहत आरोप दायर किए गए।
शामिल कानूनी मुद्दे
मामले में प्राथमिक कानूनी मुद्दे शामिल थे:
1. साजिश और हत्या के आरोप: क्या आरोपी ने गुरमेल सिंह की हत्या की साजिश रची थी और उसमें भाग लिया था।
2. गवाहों की गवाही की विश्वसनीयता: विभिन्न गवाहों की गवाही की विश्वसनीयता, जिसमें अंतिम बार देखे गए साक्ष्य और न्यायेतर स्वीकारोक्ति शामिल हैं।
3. बरामदगी का साक्ष्य मूल्य: बरामद किए गए भौतिक साक्ष्यों का महत्व, जिसमें आरोपी से जुड़े हथियार और कपड़े शामिल हैं।
4. सजा और जुर्माने की उपयुक्तता: ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई सजा की पर्याप्तता, विशेष रूप से लगाए गए जुर्माने के संबंध में।
न्यायालय का निर्णय और महत्वपूर्ण अवलोकन
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति सुरेश्वर ठाकुर और न्यायमूर्ति सुदीप्ति शर्मा ने ट्रायल कोर्ट द्वारा दोषियों को दी गई आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा।
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हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के उस निर्णय की आलोचना की जिसमें उसने प्रत्येक दोषी पर धारा 302 आईपीसी के तहत हत्या के लिए आजीवन कारावास और धारा 120-बी आईपीसी के तहत छह महीने के कठोर कारावास के अलावा 1,000 रुपये का “बेहद मामूली” जुर्माना लगाया।
न्यायालय की मुख्य टिप्पणियाँ:
1. अपर्याप्त जुर्माना: हाईकोर्ट ने दोषियों पर लगाए गए 1,000 रुपये के मामूली जुर्माने की आलोचना की और कहा कि अपराध की गंभीरता को देखते हुए यह बहुत अपर्याप्त है। न्यायालय ने कहा, “विद्वान ट्रायल जज द्वारा लगाया गया जुर्माना किए गए अपराध की गंभीरता के अनुरूप नहीं है। इस तरह के क्रूर प्रकृति के मामलों में मामूली जुर्माना लगाना निवारक के रूप में नहीं देखा जा सकता है।”
2. साक्ष्य की विश्वसनीयता: हाईकोर्ट ने पीडब्लू-8 (जगदीप सिंह), पीडब्लू-9 (गुरमीत सिंह) और पीडब्लू-11 (अमर सिंह) सहित प्रमुख गवाहों की गवाही का सावधानीपूर्वक विश्लेषण किया। इसने जगदीप सिंह और गुरमीत सिंह जैसे गवाहों की गवाही में विसंगतियों को नोट किया, जिन्होंने दावा किया कि उन्होंने आरोपी को आखिरी बार अपराध स्थल के पास देखा था, लेकिन पाया कि पीडब्लू-11 (अमर सिंह) की गवाही ने अपराध के पीछे के मकसद को प्रभावी ढंग से स्थापित किया। न्यायालय ने कहा, “अभियोजन पक्ष द्वारा अपराध के मकसद को पुख्ता तौर पर साबित किया गया है, जो आरोपी के खिलाफ आरोपों की वैधता को पुख्ता करता है।”
3. बरामदगी की वैधता: हथियारों और खून से सने कपड़ों की बरामदगी आरोपी को अपराध से जोड़ने में महत्वपूर्ण थी। न्यायालय ने इन बरामदगी के साक्ष्य मूल्य को बरकरार रखा, और उन्हें जांच अधिकारियों द्वारा रचा या रचा हुआ कहकर खारिज करने का कोई आधार नहीं पाया।
4. न्यायेतर स्वीकारोक्ति को खारिज करना: हाईकोर्ट ने नरिंदर सिंह और जसपाल सिंह द्वारा पीडब्लू-14 (अजैब सिंह) के समक्ष दिए गए कथित न्यायेतर स्वीकारोक्ति को विश्वसनीयता की कमी के कारण खारिज कर दिया, यह इंगित करते हुए कि अजैब सिंह का जांच अधिकारी के साथ पहले से ही संबंध था, जिससे स्वीकारोक्ति अविश्वसनीय हो गई।
5. परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर जोर: न्यायालय ने परिस्थितिजन्य साक्ष्य की मजबूती पर जोर दिया, जिसे उसने दोषसिद्धि को कायम रखने के लिए पर्याप्त पाया। इसने निष्कर्ष निकाला कि अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत घटनाओं और साक्ष्यों की श्रृंखला ने हत्या में अभियुक्तों की संलिप्तता को पुख्ता तौर पर स्थापित किया।
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शामिल पक्ष और वकील
अपीलकर्ताओं के लिए डॉ. अनमोल रतन सिद्धू, वरिष्ठ अधिवक्ता, भीष्म किंगर द्वारा पैरवी की गई।
अपीलकर्ता की ओर से अनमोल प्रताप सिंह मान और नवजोत सिंह सिद्धू ने पैरवी की।
याचिका कर्ता और शिकायतकर्ता की ओर से सुधीर शर्मा और आर.के. राणा उपस्थित रहे।
पंजाब राज्य की ओर से: मनिंदरजीत सिंह बेदी, अतिरिक्त महाधिवक्ता, पंजाब
पक्ष:
अपीलकर्ता: दलजिंदर सिंह, मनजीत सिंह, नरिंदर सिंह, जसपाल सिंह, हरजिंदर सिंह बब्बू और अन्य।
प्रतिवादी: पंजाब राज्य।
याचिकाकर्ता: प्रभजीत सिंह (शिकायतकर्ता)।
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