ओडिशा हाई कोर्ट ने अनैतिक लेनदेन से जुड़े चेक बाउंस मामले में आपराधिक शिकायत की रद्द

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आगरा/कटक, ओडिशा

ओडिशा हाई कोर्ट ने हाल ही में श्रीमती अनुपमा बिस्वाल के खिलाफ नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट (एन आई एक्ट ) की धारा 138 के तहत दायर एक आपराधिक शिकायत को रद्द कर दिया है। यह मामला एक ‘अनैतिक ऋण’ से जुड़ा था, जिसमें शिकायतकर्ता ने मेडिकल कॉलेज में सीट दिलाने के लिए याचिकाकर्ता के बेटे को नकद राशि दी थी।

मामले का विवरण:

शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि उसने याचिकाकर्ता के बेटे को सरकारी मेडिकल कॉलेज में अपने बेटे के लिए सीट की व्यवस्था करने के आश्वासन पर नकद राशि दी थी। हालांकि, याचिकाकर्ता का बेटा सीट की व्यवस्था करने में विफल रहा।

इस देनदारी को चुकाने के लिए, याचिकाकर्ता अनुपमा बिस्वाल ने शिकायतकर्ता को अपने खाते से दो चेक जारी किए, जो बाद में बैंक द्वारा अनादृत हो गए। इसके बाद शिकायतकर्ता ने याचिकाकर्ता के खिलाफ धारा 138 एन आई एक्ट के तहत आपराधिक शिकायत (ICC Case No.208 of 2021) शुरू की।

याचिकाकर्ता का तर्क:

याचिकाकर्ता के वकील, दीप्ति रंजन महापात्रा ने तर्क दिया कि जारी किया गया चेक कानूनी रूप से वसूली योग्य ऋण के खिलाफ नहीं था, क्योंकि यह एक अनैतिक और सार्वजनिक नीति के खिलाफ लेनदेन से उत्पन्न हुआ था।

उन्होंने मद्रास हाई कोर्ट और दिल्ली हाई कोर्ट के विभिन्न निर्णयों का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि ‘इन पारी डेलिक्टो’ का सिद्धांत ऐसे मामलों पर लागू होता है जहां दोनों पक्ष अवैध लेनदेन में समान रूप से दोषी होते हैं, और ऐसे ऋण कानूनी रूप से लागू करने योग्य नहीं होते हैं।

कोर्ट का फैसला और तर्क:

माननीय न्यायमूर्ति सिबो शंकर मिश्रा की पीठ ने पाया कि याचिकाकर्ता द्वारा शिकायतकर्ता के पक्ष में जारी किए गए चेक कानूनी रूप से लागू करने योग्य ऋण नहीं थे, क्योंकि वे ‘अनैतिक ऋण’ थे।

कोर्ट ने जोर दिया कि एन आई एक्ट की धारा 138 के तहत कार्यवाही शुरू करने के लिए एक आवश्यक शर्त यह है कि जारी किए गए चेक एक कानूनी रूप से लागू करने योग्य ऋण या देनदारी के लिए होने चाहिए।

कोर्ट ने कहा कि शिकायतकर्ता भी इस अवैध कार्य में भागीदार था। कोर्ट ने टिप्पणी की कि “महत्वाकांक्षी माता-पिता योग्यता और शिक्षा में निष्पक्षता की कीमत पर अपने बच्चों को अच्छे कॉलेज में प्रवेश दिलाने के लिए अवैध तरीकों का सहारा लेते हैं, यह वास्तव में एक अपराध है।” कोर्ट ने यह भी कहा कि पुलिस विभाग में सेवारत शिकायतकर्ता का ऐसा कृत्य “अत्यधिक निंदनीय” है।

न्यायालय ने ‘एक्स टर्पी कॉसा नॉन ओरिटुर एक्टियो’ (Ex turpi causa non oritur actio) के सिद्धांत को लागू किया, जिसका अर्थ है कि एक अनैतिक या अवैध कारण से कोई कार्रवाई उत्पन्न नहीं होती है। इसलिए, कोर्ट ने ऐसे ऋण की वसूली में सहायता करने से इंकार कर दिया जो अवैध या अनैतिक गतिविधि से उत्पन्न हुआ हो।

निर्णय का प्रभाव:

हाई कोर्ट ने सीआरएलएमसी (CRLMC No.3881 of 2023) को स्वीकार कर लिया और याचिकाकर्ता के खिलाफ एसडीजेएम, भद्रक की अदालत में लंबित ICC Case No.208 of 2021 U/s.138 of the N.I. Act की कार्यवाही को रद्द कर दिया।

हालांकि, कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि इस राय को याचिकाकर्ता के बेटे से जुड़े अन्य लंबित मामलों या याचिकाकर्ता के खिलाफ किसी अन्य अपराध के संबंध में राय नहीं माना जाएगा। विपक्षी पार्टी नंबर 2 को कानून के अनुसार याचिकाकर्ता के खिलाफ आगे बढ़ने की स्वतंत्रता दी गई है, यदि कोई अन्य अपराध बनता है।

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विवेक कुमार जैन
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