कानूनी पेशे में सच्चाई की कमी मुझे परेशान करती है: न्यायमूर्ति संजीव खन्ना

उच्चतम न्यायालय मुख्य सुर्खियां
सीजेआई खन्ना ने सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) द्वारा आयोजित विदाई समारोह में व्यक्त किए अपने विचार
सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजीव खन्ना हुए सेवानिवृत्त

आगरा/नई दिल्ली १४ मई ।

सर्वोच्च न्यायालय के निवर्तमान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने कहा कि न्यायाधीश के रूप में अपने 20 वर्ष के कार्यकाल के बारे में उनके मन में कोई मिश्रित भावना नहीं है। भारत के निवर्तमान मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना ने कहा कि कानूनी पेशे में सच्चाई की कमी उन्हें बहुत परेशान करती है।

उन्होंने बताया कि एक न्यायाधीश सत्य की खोज करता है, लेकिन आज, यह गलत धारणा है कि जब तक सबूतों को नहीं जोड़ा जाता, तब तक मामला सफल नहीं होगा।

उन्होंने कहा,

“मैं एक ऐसी बात के बारे में बात करना चाहूंगा जो मुझे परेशान करती है वो है हमारे पेशे में सत्य की कमी। एक न्यायाधीश सबसे पहले सत्य का खोजी होता है और महात्मा गांधी का मानना था कि सत्य ही ईश्वर है और इसके लिए प्रयास करना चाहिए। फिर भी, हम तथ्यों को छिपाने और जानबूझकर गलत बयान देने के मामले देखते हैं। यह गलत धारणा से उपजा है कि जब तक सबूतों में कुछ जोड़-तोड़ नहीं की जाती, तब तक कोई मामला सफल नहीं होगा। यह मानसिकता न केवल गलत है, बल्कि यह काम भी नहीं करती। इससे अदालत का काम और कठिन हो जाता है।”

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सीजेआई खन्ना सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) द्वारा आयोजित अपने विदाई समारोह में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि उन्होंने 20 साल तक न्यायाधीश के रूप में काम किया और अपने कार्यकाल को लेकर उनके मन में कोई मिश्रित भावना नहीं है।

“मैं बस खुश हूं। मैं भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में सेवानिवृत्त होने पर खुद को धन्य महसूस करता हूं। दिल्ली उच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनना अपने आप में एक सपना सच होने जैसा था।”

हालांकि, उन्होंने कहा कि वह अपने अंदर के न्यायाधीश से छुटकारा पाने के लिए उत्सुक हैं।

“ऐसा लगता है कि जैसे एक नई ज़िंदगी की शुरुआत हो गई है। मैं 42 साल से वकील और जज रहा हूँ। मेरे माता-पिता सादगी और नैतिक ईमानदारी का जीवन जीते थे। मेरी माँ लेडी श्री राम कॉलेज में हिंदी साहित्य की प्रोफेसर थीं। वह कभी नहीं चाहती थीं कि मैं वकील बनूँ। उन्होंने कहा कि सादगी और सीधेपन की वजह से मैं पैसे नहीं कमा पाऊँगा। मैं कभी भी व्यावसायिक सोच वाला नहीं रहा। मेरी माँ को खुशी होगी कि मेरा फैसला सही था।”

उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि न्याय सर्वोच्च न्यायालय में ही मिलता है।

“यह एक ऐसी जगह है जिसे हम सर्वोच्च न्यायालय कहते हैं। यह एक ऐसी जगह है जहाँ न्याय को घर मिलता है।”

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साभार: बार & बेंच

विवेक कुमार जैन
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