ससुर से भरण-पोषण का दावा करने के लिए विधवा बहू का ससुराल में रहना अनिवार्य नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

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आगरा के प्रिंसिपल जज फैमिली कोर्ट के निर्णय को दी थी हाईकोर्ट में चुनौती

आगरा /प्रयागराज 5 सितंबर।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि ससुर से भरण-पोषण मांगने का दावा करने के लिए विधवा बहू का ससुराल में रहना अनिवार्य नहीं हैं। यह देखा गया कि विधवा महिला द्वारा अपने माता-पिता के साथ रहने का विकल्प चुनने से यह निष्कर्ष नहीं निकलता कि वह अपने ससुराल से अलग हो गई है।

न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति डोनाडी रमेश की पीठ ने कहा,

“कानून की यह अनिवार्य शर्त नहीं है कि भरण-पोषण का दावा करने के लिए बहू को पहले अपने ससुराल में रहने के लिए सहमत होना चाहिए। जिस सामाजिक संदर्भ में कानून लागू होना चाहिए, उसमें विधवा महिलाओं का विभिन्न कारणों और परिस्थितियों के चलते अपने माता-पिता के साथ रहना असामान्य नहीं है। केवल इसलिए कि महिला ने वह विकल्प चुना है, हम न तो इस निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं कि वह बिना किसी उचित कारण के अपने वैवाहिक घर से अलग हो गई थी और न ही यह कि उसके पास अपने दम पर जीने के लिए पर्याप्त साधन होंगे।”

 

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प्रतिवादी के पति/अपीलकर्ता के बेटे की 1999 में हत्या कर दी गई। उसके बाद वह अविवाहित रही। आगरा के फैमिली कोर्ट के प्रिंसिपल जज के समक्ष भरण-पोषण के लिए अपने मुकदमे में उसने दलील दी कि उसे अपने पति के नियोक्ता से केवल 80,000 रुपये टर्मिनल बकाया के रूप में मिले थे। उसने ससुर की संपत्ति पर भी अपना हक जताया, जिस पर उसके पति का हक था।

दूसरी ओर, अपीलकर्ता ने दावा किया कि प्रतिवादी लाभकारी रूप से कार्यरत था। उसने उसके अकाउंट में 20,000/- रुपये जमा किए। इसके अलावा, यह कहा गया कि उसे टर्मिनल बकाया से कोई हिस्सा नहीं मिला।

इस दावे पर विश्वास न करते हुए कि प्रतिवादी ने दोबारा शादी की और लाभकारी रूप से कार्यरत थी, फैमिली कोर्ट ने प्रतिवादी को 20,000/- रुपये का मुआवजा दिया।

प्रतिवादी को 3,000/- प्रतिमाह भरण-पोषण के रूप में देने का आदेश दिया। इस आदेश को अपीलकर्ता-ससुर ने हाईकोर्ट में चुनौती दी।

न्यायालय ने पाया कि यह दिखाने के लिए कोई दस्तावेजी साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया कि प्रतिवादी ने टर्मिनल बकाया राशि का दुरुपयोग किया, केवल मौखिक कथन किए गए।

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यद्यपि प्रतिवादी के पक्ष में अपीलकर्ता द्वारा 20,000/- रुपये की सावधि जमा का साक्ष्य था। न्यायालय ने पाया कि टर्मिनल बकाया राशि के दुरुपयोग के संबंध में कोई सबूत नहीं था।

इसके अलावा, न्यायालय ने पाया कि अपीलकर्ता द्वारा दावा किए गए पुनर्विवाह और लाभकारी रोजगार के तथ्य को उसके द्वारा अपने दावे के समर्थन में कोई सबूत पेश करके कभी साबित नहीं किया गया।

तदनुसार, न्यायालय ने माना कि प्रतिवादी अपने ससुर से भरण-पोषण पाने की हकदार है, क्योंकि ससुराल वालों से अलग अपने माता-पिता के साथ रहने से वह भरण-पोषण का दावा करने से वंचित नहीं होती।

केस टाइटल: राजपति बनाम भूरी देवी

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विवेक कुमार जैन
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